एक बार फिर से बदायूं चर्चा में हैं, फिर से एक महिला की इज्जत तार-तार हो गई है। गैंगरेप के बाद महिला को जान से भी मार दिया गया। एक बार फिर से पुलिस भाग-दौड़ में लगी है। सियासी अखाड़ों में पहलवानी शुरु हो गई है और सत्ता और विपक्ष के बीच में फिर से कबड्डी हो रही है। लेकिन इसके बाद क्या होगा? धीरे-धीरे मरने वाली महिला के घर वालों की आंखों के आंसू सूखने लगेंगे। पुलिस पर पर्दा डाल दिया जाएगा। अपराधी को कोर्ट से सजा मिलने में दशकों का वक्त लग जाएगा। और सबकुछ चला जाएगा ठंडे बस्ते में। चार दिन बाद नेता भी चुप हो जाएंगे और मीडिया फिर से अपने पुरान राग अलापने में लग जाएगी।
दिल्ली की सड़कों पर दौड़ती बस में निर्भया के साथ हुई हैवानियत को अभी तक कोई नहीं भूला है। दरिंदों ने न सिर्फ बस में उस लड़की की इज्जत लूटी थी बल्कि अपना मन भर जाने के बाद उसके गुप्तांग में लोहे की रॉड भी डाल दी थी। वही उसकी मौत की वजह बन गई थी। दिल्ली में निर्भया के साथ हुई हैवानियत के बाद संसद से सड़क तक खूब कोहराम मचा था। उस हैवानियत के खिलाफ जनता और विपक्षी दल दोनों ही आर-पार को बेताब थे। सरकार को क़ानून बनाकर रेप करने वालों के लिए फांसी की सजा तय करनी पड़ी थी। तब लगा था कि शायद अब इस देश की महिला सिर उठा कर चल सकेगी, अब एक पिता अपनी लड़की को जल्दी घर आने के लिए नहीं कहेगा। भाई को बहन की हिफाजत के लिए उसका चौकीदार बनकर नहीं रहना पड़ेगा। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ है।
क्योंकि कानून तो बने लेकिन इनका नतीजा क्या हुआ? क्या महिलाओं के हिस्से में सुरक्षा आई? क्या बलात्कारी डर से दहल गए? फांसी का फंदा आसाराम से लेकर कुलदीप सिंह सेंगर किसी को छू भी नहीं पाया है। यूपी में हर दिन दस बलात्कार होते हैं। और बदायूं का ताजा मामला ज्यादा भयावाह इसलिए है क्योंकि ये गैंगरेप एक 50 साल की आंगनबाड़ी महिला के साथ हुआ है। गैंगरेप का इल्जाम महंत, उसके शिष्य और ड्राइवर पर है।
गैंगरेप के बाद उसके गुप्तांग में लोहे की रॉड डालकर उसकी किडनी और फेफड़ों को नुक्सान पहुंचा दिया गया है। पत्थरों से उसकी पसली, फेफड़ें और और उसके पैरों को तोड़ दिया गया है। महिला की मौत के बाद महंत की बोलेरो में लाश रखकर महिला के दरवाजे पर ही फेंक दी गई।
उत्तर प्रदेश की मुस्तैद पुलिस ने इस भयावाह घटना के बाद 18 घंटे तक घटनास्थल पर जाना भी उचित नहीं समझा और जब हंगामा बढ़ा तो 3 डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट बताती है कि महिला के गुप्तांग में रॉड या सब्बल डाला गया था। उसकी मौत ज्यादा खून बहने और सदमा लगने से हुई थी। इतनी बड़ी वारदात के बाद भी महंत सत्यनारायण, चेला वेदराम और ड्राइवर जसपाल में से दो पकड़ में आये हैं जबकि मुख्य आरोपि तो अभी भी खुली हवा में सांस ले रहा है। पुलिसिया भाषा में कहें तो दबिश जारी है।
साल 2014 के जून महीने में उत्तर प्रदेश में अखिलेश यादव की सरकार थी। इसी बदायूं में 2 सगी बहनों के साथ गैंगरेप के बाद उनकी हत्या कर लाशें पेड़ पर टांग दी गई थीं। उन बहनों को इंसाफ दिलाने के लिए नेताओं ने रात-दिन एक कर दिया था। सरकार ने घबराकर सीबीआई जांच की सिफारिश कर दी थी। अलीगढ़ में महिला जज के सरकारी आवास में घुसकर बदमाशों ने रेप की कोशिश की थी। रेप नहीं कर पाए तो जज को कीटनाशक पिला दिया था। उन पर चाकू से वार भी किये गए थे। यह सब तब हो गया जबकि जज के घर के बाहर सुरक्षा के लिए पीएसी की गार्ड लगी थी।
महिला जज के साथ इतनी शर्मनाक वारदात के बाद भी पुलिस के कानों पर जूं तक न रेंगी। महिला जज के साथ हुए रेप और हत्या के प्रयास के बाद पुलिस की रिपोर्ट पढ़कर किसी को भी शर्म आ जाएगी। पुलिस ने लिखा कि ये पारिवारिक विवाद का मामला लगता है। अदालत के मुंह से भी इंसाफ की आवाज नहीं आई और इसी का नतीजा दिखा हाथरस गैंगरेप केस। और अब आज बदायूं की गूंज में भी वही दम है लेकिन आखिर कब तक? सवाल ये ही रहेगा कि कितने दिनों तक ये मामला रहेगा?
बदायूं में दो बहनें पेड़ पर लटकी मिली थीं तब मेनका गांधी ने खूब हंगामा मचाया था। उस वक्त राम विलास पासवान बदायूं पहुंच गए थे। उन्होंने मामला लोकसभा में भी उठाया था और तब आईजी एसटीएफ ने बताया था कि यूपी में हर दिन 10 बलात्कार होते हैं। मतलब साफ है कि 10 बलात्कार तो यूपी का रूटीन है। इसे पुलिस कैसे बदल सकती है। यूपी में तो कांग्रेस की भी हुकूमत में रही है।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी की भी हुकूमत रही। अब भाजपा की हुकूमत है तो शोर क्यों हो इसकी तो पहले भी हुकूमत रही है। पहले वाली हुकूमतों को कुछ नहीं कहा और पुराने थानेदारों को कुछ नहीं कहा। पुराने बलात्कारियों को फांसी नहीं दी। तो अब भी क्यों होगा। कुछ दिन के लिए चिल्लाओ, थोड़ा ज्यादा चिल्लाओगे तो मामला भी सीबीआई को मिल जाएगा। जांच तो पहले भी होती ही थी, इस बार भी हो जाएगी।