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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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हमारे देश में गृह मंत्री से हिंसा पर सवाल करना सिर्फ इतिहास में दर्ज है

Logic Taranjeet 28 January 2021
हमारे देश में गृह मंत्री से हिंसा पर सवाल करना सिर्फ इतिहास में दर्ज है

अब हमारे देश में जब गृहमंत्री के काम की बात होगी तो उसमें देश के अंदर आंतरिक सुरक्षा का पाठ हटा दिया जाएगा। क्योंकि 2014 के बाद जो भारत का निर्माण हुआ है उसमें दंगों, हिंसक घटनाओं के लिए गृह मंत्री से जवाब नहीं मांगा जाता है। 26 जनवरी पर जो हिंसक घटनाएं किसान आंदोलन के दौरान हुई उसके लिए गृह मंत्री अमित शाह से किसी ने भी सवाल करने की हिम्मत नहीं की। अमित शाह ने उच्च स्तरीय बैठक कर दिल्ली में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के आदेश दे दिए। किसानों की परेड होनी थी, जानकारी बहुत पहले से थी।

दिल्ली हरियाणा और यूपी के पुलिस अधिकारी किसान नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे। लेकिन क्या गृह मंत्री ने उन अधिकारियों के साथ बैठक की थी? क्या हालात की गंभीरता का जायजा लिया गया था? क्या पहले ऐसी कोई खबर आई थी? इन सब सवालों के जवाब गृह मंत्री से पूछे जाने होते हैं। जो 2014 से पहले वाले भारत में पूछे भी जाते थे, इस्तीफे लिए जाते थे। लेकिन मित्रों मेरा देश बदल रहा है।

2 महीने से किसानों को दिल्ली आने से रोका, परेड से पहले ही लग रहा था कि एक धड़ा दिल्ली आने पर तुला है। तो क्यों योजना नहीं बनाई गई थी? इतनी बड़ी संख्या में किसान दिल्ली की सीमाओं पर आ चुके थे, उनमें से किसी भी हिस्से के तय कार्यक्रम से छिटकने की आशंका तो रही ही होगी। ऐसी स्थिति में दिल्ली के अंदर सुरक्षा की क्या तैयारी थी? दिल्ली पुलिस को अतिरिक्त बलों की कितनी तैनाती की?

गृह मंत्री से कब मिलेंगे जवाब

क्या लाल किला से लेकर आईटीओ तक एक धड़े को आने दिया गया? इन सब सवालों के जवाब गृह मंत्री को देने होते थे, लेकिन अब पता नहीं मिलेंगे की नहीं। कल पूरे दिन में जो भी हुआ वो गलत था खासकर जो कुछ भी लाल किले में हुआ वो शर्मनाक था। देश के ऐतिहासिक धरोहर को नुकसान पहुंचाना बिलकुल स्वीकार्य नहीं है। लेकिन मुद्दा बना तिरंगा। तिरंगा के बहस में आने के बाद गिद्द गोदी मीडिया और आईटी सेल जाग उठता है। हालांकि हिंसा हिंसा है और ये हर आंदोलन को कमजोर करता है। हिंसा से किसी का भी मकसद नहीं पूरा होता है।

दोपहर के वक्त एक वीडियो आया जिसमें पुलिस लाल किले के बाहर कुर्सियों पर बैठी नजर आ रही थी। दिल्ली दंगों के वक्त भी पुलिस लाचार नजर आ रही थी जो हिंसा करने वाली भीड़ थी उन्हें छूट मिली थी और उस हिंसा के नाम पर कौन लोग पकड़े गए ये आप जानना भी नहीं चाहेंगे। दिल्ली दंगों में साफ आदेश नहीं मिले और पुलिस ही शिकार होती रही। जब आंखों पर हिन्दू मुस्लिम का चश्मा चढ़ा हो तो साफ नजर नहीं आता है।

कैसे हर बार दिल्ली पुलिस इतनी लाचार हो जाती है

सवाल है कि दिल्ली पुलिस एक साल में 2 बार इतनी लाचार हो गई है, क्योंकि सेना का बैकअप नहीं दिया गया। दिल्ली दंगों के दौरान भी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सेना बुलाने की मांग करते रहे। लेकिन क्या सच में पुलिस इतनी लाचार थी या ऐसा होने दिया जा रहा है। दिल्ली दंगों के वक्त एस एन श्रीवास्तव एक्टिंग पुलिस कमिश्नर बनाए गए थे। तब सवाल उठे थे कि तात्कालीन कमिश्नर हिंसा को रोकने में असफल रहे। आज तक दिल्ली पुलिस के पास एक्टिंग कमिश्नर ही है।

किसान आंदोलन के लिए हिंसा की ये घटना सीधे जाल में जाकर फंसने जैसी है। जो आंदोलन 2 महीनों से ये दर्शा रहा था कि वो शांति बनाए रखेगा। गणतंत्र दिवस के दिन ही उसकी इस स्थिरता को गहरा धक्का लग गया। बेशक बड़े हिस्से में परेड शांति से हुई होगी। जिस तादाद में किसान ट्रैक्टर लेकर आए अगर सब अराजक होते तो हालात बिगड़ जाते। हिंसक भीड़ के बीच भी कई किसान थे जो समझा रहे थे। उग्र लोगों को रोक रहे थे और पुलिस के भी कई जवान और मध्यम श्रेणी के अफसर उन्हीं के बीच में रह कर बात कर रहे थे।

किसान फिर बन गए आतंकवादी

आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर सरकार ने 26 जनवरी के दिन परेड की इजाजत दी ही क्यों तो इसका जवाब आप देख लो जो वीडियो आपके वॉट्सऐप पर आ रही होंगी, जिसमें किसानों की सारी गलती दिखाई जा रही होगी। हालांकि कोई नहीं कहेगा कि दीप सिद्धु जिसने ऊपर चढ़ कर झंडा फहराया था, वो मोदीजी के साथ फोटोशूट कराता है।

अब यही सारी वीडियो किसान आंदोलन पर भारी पड़ेगा। गोदी मीडिया के फैलाए आतंकवादी वाले एंगल से किसान बाहर निकले नहीं थे, अभी तक एक बड़ा तबका किसानों को आतंकवादी मान रहा है, तो ऐसे में लाल किले की हिंसा उनके सामने नई चुनौती है। लेकिन गृह मंत्री सुरक्षित है, उन पर कोई दबाव नहीं है। क्योंकि दबाव बनाने का काम विपक्ष का होता है और वो शायद अब सिर्फ नाम के लिए रह गया है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.