हमारा देश बहुत ही कमाल का है। यहां एक से बढ़कर एक रहस्यमई जगहें मौजूद हैं। प्राचीन काल से ही हमारे देश में बहुत सी गुफाएं भी मौजूद रही हैं। कई गुफाओं का रहस्य भी आज तक पता नहीं चल पाया है। कई गुफाओं के बारे में कहा जाता है कि ये महाभारत के समय से ही हैं। इसी तरह की एक गुफा उत्तराखंड में भी है।
इस गुफा को भी बड़ा ही रहस्यमई माना जाता है। आज तक इस गुफा के रहस्य के बारे में कोई जान नहीं पाया। यह भी कहा जाता है कि किसी के लिए भी इसका रहस्य जानना मुमकिन नहीं है। यह रहस्यमई गुफा उत्तराखंड में माना गांव में स्थित है। बद्रीनाथ के आगे यह पड़ता है। उत्तराखंड के आखिरी गांव के नाम से भी इसे जाना जाता है। यही नहीं, इसे तो हिंदुस्तान का भी आखिरी गांव कहते हैं।
व्यास गुफा के नाम से यह जाना जाता है। उत्तराखंड में बहुत सी पवित्र जगहें मौजूद हैं। चट्टान रखकर भीम ने जो यहां पुल बनाया था, वह यहां दिख जाता है। इसके अलावा स्वर्ग की यात्रा, जिस स्वर्गारोहिनी से पांडवों ने शुरू की थी, वह भी यहां पर मौजूद है।
भारत और चीन की सीमा पर यह गांव बसा हुआ है। माना गांव में पहुंचने पर आपको भारत का आखिरी गांव भी लिखा हुआ दिख जाएगा। बद्रीनाथ धाम से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर यह बसा हुआ है। बद्रीनाथ धाम हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थ स्थल है। इसके आसपास महाभारत से जुड़ी हुई बहुत सी जगहें मौजूद हैं।
गुफा के बारे में बताया जाता है कि हजारों साल पहले महर्षि वेदव्यास यहां रहे थे। यहीं पर उन्होंने पुराणों और वेदों का संकलन किया था। इस गुफा के बारे में यह भी बताया जाता है कि महाभारत की रचना यहीं हुई थी। भगवान गणेश की मदद से महर्षि वेदव्यास ने यहीं पर बैठकर रामायण लिखा था। गुफा बहुत ही छोटी है, मगर इसका बड़ा महत्व है। यह भी एक वजह है कि इसे व्यास गुफा के नाम से जाना जाता है।
इसकी आकृति बहुत ही अनोखी है। बहुत से पन्ने की आकृति में यह गुफा आपको नजर आएगी। इस गुफा को देखकर ऐसा लगेगा कि जैसे एक के ऊपर एक पन्ने यहां पर रखे हुए हैं। गुफा के बारे में कई तरह की बातें भी प्रचलित हैं। महाभारत की एक कहानी इससे जुड़ी हुई है। यह महर्षि वेदव्यास और भगवान गणेश से जुड़ी हुई है। इसके बारे में शायद ही कोई जानता है।
यह भाग उन्होंने भगवान गणेश से लिखवाया था, लेकिन महाभारत में महर्षि वेदव्यास ने इसे नहीं जोड़ा था। महाभारत की कहानी का यह एक अनसुना किस्सा है। अब आप सोच रहे होंगे कि महाभारत का ऐसा कौन सा भाग है, जिसे महर्षि वेदव्यास ने इसमें शामिल नहीं किया। इन पत्थरों को उन्होंने अपनी उर्जा से पत्थरों में बदल दिया था। ये रहस्यमई पन्ने पत्थर के रूप में यहां मौजूद हैं। इन्हें व्यास पोथी भी कहा जाता है।
महाभारत में बहुत से किस्से-कहानियां मौजूद हैं। महाभारत में जो लोग रुचि लेते हैं, वे इसकी सभी कहानियों के बारे में जानना चाहते हैं। हमेशा आपको महाभारत से जुड़ी नई-नई बातें पता चलती रहती हैं। फिर भी इस गुफा को देखने जो आते हैं, वे हैरान रह जाते हैं। वे जानना चाहते हैं कि आखिर इसके पीछे की कहानी क्या रही है। फिर भी किसी को पता ही नहीं चल पाता कि वह कौन सी कहानी थी, जिसे महर्षि वेदव्यास ने नहीं बताया। इनको महर्षि वेदव्यास ने पत्थरों में तब्दील कर दिया। हमेशा के लिए उन्होंने इस राज को इन पत्थरों में ही दफन कर दिया।
ये पत्थर के बने हैं। कभी ये खुलने वाले हैं नहीं। महाभारत का खोया हुआ अध्याय भी इन्हें कहा जा सकता है। अब यह अध्याय कितना सच है और कितना मिथक, इस बारे में कुछ भी कहना मुश्किल है। फिर भी यह गुफा बहुत कुछ कहती है। दूर से इसे देखकर इसके एक बड़ी पुस्तक होने का एहसास होता है। इस गुफा की संरचना अपने आप में बहुत ही अनूठी है। तभी तो केवल अपने देश से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी पर्यटक इसे देखने के लिए पहुंचते हैं। इस गुफा में छिपे रहस्य का पता हर कोई लगाना चाहता है। फिर भी किसी के लिए व्यास गुफा में छिपे राज को निकाल पाना संभव नहीं है।