उत्तर प्रदेश की राजनीति हमेशा से ही बहुत अलग रही है। उत्तर प्रदेश ने राजनीतिक उतार-चढ़ाव बहुत देखे हैं। एक से एक राजनीतिक घटनाक्रम यहां हुए हैं। उत्तर प्रदेश में एक वक्त एक साथ दो मुख्यमंत्री भी हो गए थे। इस पर यकीन करना बहुत ही मुश्किल है। वह इसलिए कि संवैधानिक तौर पर यह संभव नहीं है। फिर भी उत्तर प्रदेश में एक बार ऐसा हुआ था। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश से एक ही समय में उत्तर प्रदेश में दो मुख्यमंत्री थे।
दो लोगों के साथ एक समय में मुख्यमंत्री जैसा व्यवहार किया जा रहा था। ये दो मुख्यमंत्री कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल थे। वैसे, जगदंबिका पाल आज भाजपा में हैं। डुमरियागंज लोकसभा सीट से वे भाजपा के सांसद हैं।
रोचक राजनीतिक घटनाक्रम वर्ष 1998 के फरवरी में हुआ था। तब लोकसभा चुनाव हो रहे थे। देश की जनता 12वीं लोकसभा के लिए वोट डाल रही थी। उस वक्त उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी। कल्याण सिंह तब मुख्यमंत्री थे।
मुलायम सिंह यादव तब देश के रक्षा मंत्री थे। अटल बिहारी वाजपेयी भी तब चुनाव मैदान में थे। मुजफ्फर अली के विरुद्ध वे चुनाव लड़ रहे थे। मुजफ्फर अली फिल्म निर्देशक थे। उस वक्त रोमेश भंडारी उत्तर प्रदेश के राज्यपाल थे।
21 फरवरी, 1998 को उत्तर प्रदेश में बहुत बड़े राजनीतिक घटनाक्रम हुए। इसके अगले ही दिन 22 फरवरी को चुनाव होने थे। मुलायम सिंह यादव तब चुनाव लड़ रहे थे। मैनपुरी में उनका मुकाबला भाजपा के दिग्गज नेता डीपी यादव से था। मुलायम सिंह नहीं चाहते थे कि चुनाव के दिन उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह की भाजपा सरकार रहे। इसी वजह से ये सारी चीजें तब हुई थीं।
मायावती ने 21 फरवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। इसके बाद वे दोपहर लगभग 2 बजे राजभवन पहुंच गई थीं। उनके साथ बसपा के विधायक थे। साथ में जनता दल के भी विधायक थे। अजीत सिंह की किसान कामगार पार्टी के विधायक भी पहुंचे थे। लोकतांत्रिक कांग्रेस के विधायक भी साथ चले गए थे। राज्यपाल से मिलकर उन्होंने जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री बनाने के लिए कहा था। उन्होंने कहा था कि सभी विधायक इनके समर्थन में हैं।
मुलायम सिंह यादव तक ने जगदंबिका पाल का समर्थन कर दिया था। राजभवन में मुलायम सिंह यादव की चिट्ठी भी पहुंच गई थी। कल्याण सिंह गोरखपुर में थे। उन्हें जानकारी मिली तो वे हड़बड़ा कर लखनऊ पहुंचे थे। राज्यपाल से मिलकर उन्होंने बहुमत साबित करने के लिए वक्त मांगा था। राज्यपाल ने इससे मना कर दिया था।
21 फरवरी को ही रात में 10 बजकर 16 मिनट पर एक बड़ी घटना घटी। कल्याण सरकार को राज्यपाल ने बर्खास्त कर दिया। जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई। बच्चा पाठक, राजाराम पांडे, नरेश अग्रवाल और हरिशंकर तिवारी भी मंत्री बने। अटल बिहारी वाजपेई 22 फरवरी को आमरण अनशन पर बैठ गए।
तब केआर नारायणन राष्ट्रपति थे। प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल को उन्होंने एक चिट्ठी भेजी। रोमेश भंडारी की भूमिका पर उन्होंने असंतोष व्यक्त किया। जगदंबिका पाल मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठ गए थे। दूसरी और कल्याण सिंह भी सचिवालय पहुंच गए थे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कल्याण सिंह की तरफ से याचिका डाली गई। हाईकोर्ट ने जगदंबिका सरकार को अवैध बता दिया।
जगदंबिका पाल के कैंप ने सुप्रीम कोर्ट में फैसले को चुनौती दे दी। हालांकि, हाईकोर्ट का फैसला आने के बाद सचिवालय के कर्मचारी जगदंबिका पाल को सीएम नहीं मान रहे थे। बताया जाता है कि पानी मांगने पर भी उन्हें एक घंटा बाद पानी दिया जा रहा था। नाश्ता वगैरह भी ठीक से नहीं दिया जा रहा था।
सुप्रीम कोर्ट भी कशमकश की स्थिति में था। एक और संवैधानिक प्रमुख राज्यपाल का निर्णय था। दूसरी ओर हाईकोर्ट का निर्णय था। सुप्रीम कोर्ट ने कंपोजिट फ्लोर टेस्ट 48 घंटे के भीतर कराने को कह दिया। यह कैमरे की निगरानी में होना था। सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया था कि तब तक कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल दोनों के साथ मुख्यमंत्री जैसा ही बर्ताव किया जाएगा। कंपोजिट फ्लोर टेस्ट में जीतने वाला मुख्यमंत्री रहेगा।
आखिरकार फ्लोर टेस्ट का नतीजा आया। 425 में से 225 विधायक कल्याण सिंह के पक्ष में थे। वहीं, 196 विधायकों ने जगदंबिका पाल के समर्थन में वोट डाला था। लोकसभा चुनाव में भाजपा बहुमत के करीब थी। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बन गई थी। राज्यपाल रोमेश भंडारी ने तब तक इस्तीफा दे दिया था।