भारत के संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी और उस पर लगने वाले प्रतिबंधों के बारे में बहुत ही साफ तरीके से लिखा हुआ है। पत्रकारिता, कला, साहित्य और किसी भी तरह की अभिव्यक्ति से जुड़े हुए लोग ये बेहतर तरीके से जानते हैं कि बिना जिम्मेदारी के भाव से वो कुछ भी नहीं बोल सकते हैं। उनकी हर अभिव्यक्ति सेल्फ रेगुलेशन (Self regulation ) से छनकर ही आनी चाहिए। इसलिए अभिव्यक्ति की आजादी को लेकर जो भी शिकायतें आती हैं, उनका हल तर्कसंगत और न्याय पूर्ण तरीके से होता है या नहीं, इस पर ये निर्भर करता है कि जिम्मेदार संस्थाएं सेल्फ रेगुलेशन अपनाएगी या नहीं।
लेकिन अभी तक के अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े मामले और सरकारों के जरिए हुई उनकी सुनवाई से तो यही साफ होता है कि सरकार जायज अभिव्यक्ति (Legitimate expression ) को भी नाजायज बताकर दबाने की कोशिश करती है और नाजायज अभिव्यक्ति को जायज बताकर उन्हें बढ़ावा देती है। ज्यादा दूर मत जाइये सिर्फ मौजूदा सरकार के आईटी सेल का काम ही देख लीजिये। इससे साफ हो जाएगा कि आखिर ऑनलाइन कंटेंट पर रेगुलेशन कर सरकार क्या साबित करना चाहती है।
अब सरकार की तरफ से सोशल मीडिया, डिजिटल न्यूज मीडिया और ओटीटी प्लेटफॉर्म (OTT Platform ) पर कंटेंट देने वालों के लिए इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 की धारा 69 के तहत नए नियम बनाए गए हैं। इन्हें नाम दिया है इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (Intermediate Guidelines and Digital Media Ethics Code ) रूल्स 2021 और इसमें ही सोशल मीडिया, OTT और डिजिटल न्यूज कंपनियों के लिए गाइडलाइन तय की है।
इन नियमों में भारत की एकता और अखंडता, सुरक्षा, संप्रभुता, दूसरे देशों के साथ दोस्ताना संबंध, लोक व्यवस्था जैसे विषयों पर हमला करने वाले कंटेंट को डिजिटल मीडिया पर प्रकाशित नहीं किए जाने की बात मुख्य रूप से कही गई है। इसके साथ ही बदनामी, अश्लील, पोर्नोग्राफिक, बाल यौन शोषण से संबंधित, दूसरों की निजता पर हमला करने वाले, शारीरिक निजता पर हमला करने वाले, लिंग के आधार पर बेइज्जत और प्रताड़ित करने वाले, लेबल लगाने वाले, नस्लीय और नृजातीय तौर पर आपत्तिजनक, मनी लॉन्ड्रिंग (Money laundering )और जुए जैसी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले और भारत के मौजूदा कानूनों के खिलाफ जाने वाले ऑनलाइन कंटेंट पर रेगुलेशन को नहीं दिखाया जा सकता है।
अगर इन नियमों का उल्लंघन होता है तो आईटी एक्ट से जुड़े दंड के प्रावधान और इंडियन पैनल कोड से जुड़े दंड के प्रावधान को लागू किया जाएगा। कुछ मामले तो ऐसे भी बन सकते हैं कि जिनमें ऑनलाइन कंटेंट देने वालों पर 10 लाख तक का जुर्माना और 7 साल तक की सजा हो सकती है। डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़ी कंपनियों को तीन महीने में चीफ कम्प्लायंस ऑफिसर, नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन, रेसिडेंट ग्रिवांस ऑफिसर अपॉइंट करने होंगे। चीफ कम्प्लायंस ऑफिसर ये देखेगा कि भारत के नियम-कायदों का पालन हो रहा है या नहीं। नोडल कॉन्टैक्ट पर्सन कानूनी एजेंसियों के साथ 24X7 कोऑर्डिनेट करेगा। रेसिडेंट ग्रिवांस ऑफिसर यूजर्स की शिकायतों पर सुनवाई करेगा। ग्रिवांस ऑफिसर को शिकायत मिलने के 24 घंटे के अंदर कार्रवाई करनी होगी और 15 दिनों में शिकायत को खत्म करना होगा।
डिजिटल न्यूज मीडिया के पब्लिशर्स को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (PCI) के नॉर्म्स ऑफ जर्नलिस्टिक कंडक्ट और केबल टेलीविजन नेटवर्क्स रेगुलेशन एक्ट के तहत प्रोग्राम कोड का पालन करना होगा। इससे ऑफलाइन (प्रिंट और टीवी) और डिजिटल मीडिया के लिए एक जैसा कानून होगा। सरकार ने डिजिटल न्यूज मीडिया पब्लिशर्स से प्रेस काउंसिल की तरह सेल्फ रेगुलेशन बॉडी बनाने के लिए भी कहा है। ठीक ऐसे ही OTT प्लेटफॉर्म के लिए कोड ऑफ एथिक्स की बात कही गई है। इसका पालन ऑनलाइन न्यूज के साथ-साथ OTT प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मीडिया कंपनियों को करना होगा।
कोई अदालत या सरकारी संस्था किसी आपत्तिजनक, शरारती ट्वीट या मैसेज के फर्स्ट ओरिजिनेटर (First originator) की जानकारी मांगती है, तो कंपनियों को देनी होगी। इसका मतलब है की इंटरनेट पर भले कोई भी एप्लीकेशन ये दावा करे कि मैसेज भेजने वाले और लेने वाले के सिवाय इसे कोई दूसरा नहीं देख सकता और पढ़ सकता तो ऐसा नहीं है।
हालांकि डिजिटल प्लेटफार्म के रेगुलेशन की जरूरत तो है। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये ऑनलाइन कंटेंट पर रेगुलेशन केवल नियम बना देने से होंगे? क्योंकि इन नियमों का सार तो पहले से ही अभिव्यक्ति की आजादी के अंदर हमारे संविधान में दर्ज है? अगर ये नियम न भी बनाए जाएं फिर भी सरकार को ये हक है कि वो रेगुलेशन करे। लेकिन सवाल इसी बात पर है कि क्या सरकार और सरकारी संस्थाएं न्याय की भावना के तहत रेगुलेशन करती हैं या नहीं? क्योंकि हमारे देश में हर दिन कानूनों का उल्लंघन होता है। जिन बातों को इस नियम में दर्ज किया गया है, उनका दायरा बहुत बड़ा है। इतना बड़ा कि अगर सरकार का इरादा ठीक न हो तो लोक व्यवस्था, राष्ट्रीय एकता और अखंडता जैसी बड़ी पवित्र अवधारणाओं के अंदर सरकार कुछ भी शामिल कर सकती है।