ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने पश्चिमी बंगाल से लेफ्ट के शासन को उखाड़ फेंका था। ममता बनर्जी कभी कांग्रेस में हुआ करती थीं। कांग्रेस में भी ममता बनर्जी अच्छा काम कर रही थीं। युवा नेता के तौर पर ममता बनर्जी की पहचान बन गई थी।
ममता ने उस वक्त बड़ी सुर्खियां बटोरी थी, जब उन्होंने सोमनाथ चटर्जी को हरा दिया था। उस वक्त उनकी उम्र केवल 29 साल की हुआ करती थी। सोमनाथ चटर्जी बड़े कद के वामपंथी नेता हुआ करते थे। उन्हें हराना ममता बनर्जी की बड़ी उपलब्धि रही थी। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी बड़ी नेता बनती जा रही थीं।
उस वक्त पश्चिम बंगाल में सोमेन मित्रा बड़ा नाम हुआ करते थे। सबसे पहले ममता बनर्जी के हाथों में पश्चिम बंगाल युवक कांग्रेस की कमान थी। पश्चिम बंगाल कांग्रेस के अध्यक्ष सोमेन मित्रा थे। यह वर्ष 1996 की बात थी। वर्ष 1997 में कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव हो रहा था। इस दौरान बड़ी राजनीति हुई थी।
ममता और सोमेन मित्रा में नहीं पट रही थी। सीताराम केसरी कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव जीत गए थे। सोमेन मित्रा से उनकी बड़ी नजदीकी थी। ऐसा लगता था कि ममता बनर्जी को केसरी पसंद नहीं कर रहे थे। केसरी ने अध्यक्ष पद की जिम्मेवारी संभाल ली थी।
अब कांग्रेस का 80वां अधिवेशन होने वाला था। तारीख तय कर ली गई थी। वर्ष 1997 में 8, 9 और 10 अगस्त को कांग्रेस का अधिवेशन होने वाला था। पश्चिम बंगाल की प्रदेश कांग्रेस यूनिट को पूरी व्यवस्था करनी थी। ममता इस दौरान कुछ और ही सोच रही थीं। उन्होंने चौरंगी स्ट्रीट पर कार्यकर्ताओं की एक मीटिंग की घोषणा कर दी थी। इसके लिए उन्होंने 21 जुलाई, 1997 की तारीख तय की थी। यह एक शक्ति प्रदर्शन था।
इसमें केवल कांग्रेस के कार्यकर्ता ही नहीं आए थे, बल्कि लाखों की तादाद में लोग पहुंचे थे। सीताराम केसरी के विरोध वाले पोस्टर भी दिख रहे थे। ममता का उत्साह इसे देखकर बढ़ गया था। उनके दिमाग में तभी से कुछ चलने लगा था। उन्होंने ऐलान कर दिया कि 9 अगस्त को कोलकाता में वे बड़ी रैली करेंगी।
पूरा राजनीतिक ड्रामा उस वक्त चल रहा था। उसी दौरान पड़ोसी राज्य बिहार में लालू यादव के जेल जान का समय हो गया था। राबड़ी देवी मुख्यमंत्री बना दी गई थीं। कांग्रेस ने समर्थन कर दिया था। जगन्नाथ मिश्रा और राम लखन सिंह जैसे नेता इससे संतुष्ट नहीं थे। ममता तब पटना गई थीं। वहां पर उन्होंने कांग्रेस नेतृत्व पर खूब भड़ास निकाली थी। अब ममता बनर्जी के कांग्रेस से बाहर होने का वक्त नजदीक आने लगा था। इधर कोलकाता में अधिवेशन हो या ना हो, इसे लेकर खूब विचार-विमर्श चल रहा था।
आखिरकार अधिवेशन तय तारीख पर हुआ। कांग्रेस के हजारों नेता 8 अगस्त को कोलकाता पहुंच गए। नेताजी इनडोर स्टेडियम में अधिवेशन हुआ था। इस दौरान ममता बनर्जी अपनी ही रैली कर रही थीं। ब्रिगेड परेड ग्राउंड में यह कार्यक्रम हो रहा था। वहां पर वे कह रही थीं कि उनकी कांग्रेस ग्रासरूट कांग्रेस पार्टी है। मतलब कि उनके कार्यकर्ता ही असली कांग्रेसी हैं। वही तृणमूल कांग्रेस है। ममता बनर्जी अब कांग्रेस के लिए मुसीबत बनती जा रही थीं।
इसी दौरान सोनिया गांधी भी राजनीति में रुचि लेने लगी थीं। ममता सोनिया गांधी से मिलने के लिए पहुंची थीं। सोनिया गांधी से ममता बनर्जी को बहुत उम्मीदें थीं। हालांकि, 22 दिसंबर को यह उम्मीद बिखर गई। ममता बनर्जी अपने कार्यकर्ताओं के साथ कुछ चर्चा कर रही थीं। उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई को लेकर ही यह बात हो रही थी।
तभी टीवी पर समाचार प्रसारित होने लगा। इसका शीर्षक था कि 6 साल के लिए ममता बनर्जी कांग्रेस से निष्कासित कर दी गई हैं। ममता को इससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ा। उन्होंने अब अपनी पार्टी बनाने का कुछ समय बाद ऐलान कर दिया। तृणमूल कांग्रेस का गठन उन्होंने कर लिया।
एनडीए का भी हिस्सा ममता की पार्टी बनी थी। वे केंद्रीय मंत्री भी बनी थीं। वर्ष 2011 में ममता की पार्टी पश्चिम बंगाल में सत्ता में आ गई। तब से अब तक वे यहां राज कर रही हैं। लेफ्ट को उन्होंने उखाड़ फेंका था।
सोमेन मित्रा से कभी उनकी नहीं पट रही थी। आज यही सोमेन मित्रा तृणमूल कांग्रेस में हैं। यह साबित करता है कि राजनीति में कुछ भी निश्चित नहीं होता है।
इस तरह से कांग्रेस से निकाले जाने को ममता बनर्जी ने एक अवसर के रूप में लिया। शुरुआत में भले ही वे एनडीए के साथ जुड़ीं, मगर उनकी निगाहें पश्चिम बंगाल की सत्ता पर टिकी थीं। आखिरकार लेफ्ट के राज को उन्होंने समाप्त किया। उन्होंने चुनाव जीता। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री भी बन गईं। जो सोमेन मित्रा, कांग्रेस में उन्हें तवज्जो नहीं दे रहे थे, अब वही तृणमूल कांग्रेस में शामिल हैं। वे ममता के अधीन काम कर रहे हैं। वाकई राजनीति कई बार बड़ी दिलचस्प तस्वीरें दिखाती है।