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कौरव होकर भी पांडवों से जा मिले थे युतुत्सु, महाभारत में निभाई बड़ी भूमिका

Information Anupam Kumari 18 March 2021
कौरव होकर भी पांडवों से जा मिले थे युतुत्सु, महाभारत में निभाई बड़ी भूमिका

हिंदू धर्म में महाभारत का बड़ा ही महत्व है महाभारत में एक से बढ़कर एक कहानियां पढ़ने को मिलती हैं। इनमें से बहुत सी कहानियां रोमांचित भी करती हैं। महाभारत की बहुत से ऐसी कहानियां हैं, जिनके बारे में बहुत से लोगों को मालूम नहीं है। महाभारत के बारे में बहुत सी बातें ऐसी भी हैं, जिनके बारे में लोग आधा ही जानते हैं।

धृतराष्ट्र के कुल  102 पुत्र  थे

उदाहरण के लिए धृतराष्ट्र के पुत्रों को ही ले लेते हैं। धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहे जाते थे। कौरवों की संख्या हम सभी लोग जानते हैं कि 100 थी। हालांकि, धृतराष्ट्र के केवल 100 पुत्र ही नहीं थे। धृतराष्ट्र के दो और भी बेटे थे।

अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर यह दो और बेटे कहां से आ गए। दरअसल 100 बेटे गांधारी के थे, तो दो बेटे धृतराष्ट्र को गांधारी से हुए थे। इनमें से एक बेटे का नाम विदुर था। वहीं दूसरे बेटे का नाम युतुत्सु था।

युतुत्सु के बारे में अल्प जानकारी

विदुर के बारे में हमने महाभारत में काफी पढ़ा है। विदुर के बारे में हम सभी जानते हैं कि वे एक बहुत ही बड़े विद्वान थे। विदुर का जिक्र कई कहानियों में मिलता है। वहीं, युतुत्सु के बारे में महाभारत में बहुत कम ही पढ़ने के लिए मिलता है।

युतुत्सु भी विदुर से कहीं कम नहीं थे। युतुत्सु बड़े ही धर्मात्मा माने जाते थे। युतुत्सु ऐसे व्यक्ति थे जो धर्म का साथ निभाना चाहते थे।

नजदीक आ गया था युद्ध का वक्त

महाभारत के युद्ध का वक्त नजदीक आ रहा था। इसे टालने के बहुत से प्रयास किए गए थे। हालांकि, इन प्रयासों को कामयाबी नहीं मिल पाई थी। आखिरकार महाभारत के युद्ध का वक्त बहुत ही पास आ गया था। युधिष्ठिर, जो कि पांडवों में सबसे बड़े थे, वे धर्मराज के नाम से जाने जाते थे।

युधिष्ठिर ने कहा था इसे धर्मयुद्ध

महाभारत युद्ध को लेकर उन्होंने एक बड़ी घोषणा की थी। युधिष्ठिर ने कहा था कि यह एक धर्मयुद्ध है। युधिष्ठिर ने यह भी कहा था कि धर्म का साथ देने वालों का वे स्वागत करेंगे। जिन लोगों को लगता है कि वे धर्म के साथ हैं, वे उनके साथ आकर मिल सकते हैं। उन्हें पूरा सम्मान मिलेगा।

युतुत्सु ने छोड़ा कौरवों का साथ

विदुर ने कौरवों का साथ नहीं छोड़ा। वे दुर्योधन के साथ ही रह गए। पौराणिक हिन्दू कथाओं के अनुसार युतुत्सु ने जब सुना कि यह धर्मयुद्ध है, तो उन्होंने अपना मन बदल लिया। वे एक धर्मात्मा थे। धर्म का साथ देना उन्हें पसंद था। इसलिए कौरवों का साथ उन्होंने छोड़ दिया।

पांडवों के साथ हो लिए

वे पांडवों के साथ चले गए। धर्मराज युधिष्ठिर से जाकर उन्होंने मुलाकात कर ली। उन्होंने उन्हें कह दिया कि वे उनकी तरफ से ही युद्ध लड़ेंगे। इस तरह से युतुत्सु का पांडवों ने अपने खेमे में जोरदार स्वागत किया।

युतुत्सु को पांडवों ने दी यह जिम्मेवारी

अब यह निर्णय लेना था कि पांडवों की तरफ से युतुत्सु क्या जिम्मेदारी संभालेंगे। इसको लेकर गहन विचार-विमर्श हुआ। इसके बाद यह फैसला हुआ कि युतुत्सु अस्त्र-शस्त्र की जिम्मेदारी संभालेंगे। अस्त्र-शस्त्र सैनिकों को उपलब्ध कराएंगे।

इतना ही नहीं रसद उपलब्ध कराने के भी उन्हें जिम्मेवारी सौंपी गई। महाभारत का युद्ध शुरू हो गया। इस दौरान युतुत्सु ने अपनी जिम्मेदारियों को पूरी गंभीरता से निभाया। युतुत्सु ने अस्त्र-शस्त्रों की आपूर्ति जारी रखी।

अस्त्र-शस्त्र और रसद की नहीं हुई कमी

पांडवों को युद्ध के दौरान अस्त्र-शस्त्र की कोई कमी नहीं हुई। इसी तरह से रसद भी लगातार पांडवों को उपलब्ध होते रहे। पांडवों की सेना को इसकी कोई कमी नहीं हुई। इस तरह से पांडव युद्ध में भारी रहे। आखिरकार महाभारत के युद्ध में विजय पांडवों को ही हासिल हुई।

जीत में युतुत्सु की भी बड़ी भूमिका

युद्ध युद्ध में मिली जीत के बाद पांडव बहुत ही खुश थे। युतुत्सु की भी युद्ध में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका रही थी। युद्ध जीतने के बाद हस्तिनापुर का राज्य पांडवों के पास आ गया था। धर्मराज युधिष्ठिर सिहासन संभाल रहे थे। उनका राज्याभिषेक हो गया था।

युतुत्सु बनाये गए मंत्री

राज्य में हर किसी को अलग-अलग दायित्व दिए जा रहे थे। युतुत्सु को भी पांडवों का साथ देने का इनाम मिला था। युधिष्ठिर ने अपने दरबार में उन्हें मंत्री बना दिया था। इस तरह से दुर्योधन का साथ छोड़कर युतुत्सु ने महाभारत युद्ध में पांडवों का पक्ष लिया था। कौरव होकर भी युतुत्सु पांडवों की तरफ से लड़े थे।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

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