Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

केन्द्र के GNCTD बिल से दिल्ली में जनता का केजरीवाल को दिया वोट क्यों होगा बेकार?

Logic Taranjeet 28 March 2021
केन्द्र के GNCTD बिल से दिल्ली में जनता का केजरीवाल को दिया वोट क्यों होगा बेकार?

एक बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास हुआ, कहा जा रहा है कि ये बिल एक बार फिर से केंद्र की मोदी सरकार की तानाशाही दर्शाता है। इस बिल का नाम है गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2021 (GNCTD), इस बिल के आने के बाद से दिल्ली की केजरीवाल सरकार सड़क पर आ गई। प्रदर्शन करने के लिए भी और अपनी पावर्स में भी। कैसे ये जानते हैं। 

दरअसल मोदी सरकार ने इस बिल को बहुमत के दम पर पास करवा लिया है जिसमें साफ हो जाता है कि नंबर के दम पर इस देश में अब किसी भी तरह के बिल को पास करवाया जा सकता है। ये हम लंबे वक्त से देखते आ रहे हैं। अब जबकि गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली (अमेंडमेंट) बिल 2021 (Government of National Capital Territory of Delhi (Amendment) Bill, 2021) पास हो गया है तो दिल्ली में कई अहम बदलाव होंगे।

इस बिल के पास हो जाने के बाद दिल्ली में सरकार का मतलब सिर्फ उप राज्यपाल हैं। इस कानून के अमल में आने के बाद जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार की सारी ताकतें, सारे निर्णय खत्म हो जाते हैं। दिल्ली सरकार को किसी भी कार्यकारी फैसले से पहले उप राज्यपाल की राय लेनी जरूरी होगी।

जानते हैं क्या है इस बिल में

  • विधानसभा द्वारा बनाए गए किसी भी कानून में सरकार का मतलब उपराज्यपाल होगा
  • सभी विधायी व प्रशासनिक निर्णयों में उपराज्यपाल से मंजूरी लेना दिल्ली सरकार के लिए अनिवार्य होगा
  • दिल्ली सरकार को विधायी प्रस्ताव 15 दिन पहले और प्रशासनिक प्रस्ताव सात दिन पहले उपराज्यपाल को भिजवाना होगा
  • उपराज्यपाल अगर सहमत नहीं हुए तो वो अंतिम निर्णय के लिए उस प्रस्ताव को राष्ट्रपति को भी भेज सकते हैं
  • अगर कोई ऐसा मामला होगा, जिसमें त्वरित निर्णय लेना होगा तो उपराज्यपाल अपने विवेक से निर्णय लेने के लिए आजाद है
  • विधानसभा या उसकी कोई समिति प्रशासनिक फैसलों पर जांच नहीं कर सकेगी

वैसे तो दिल्‍ली में अधिकार को लेकर मुख्‍यमंत्री और एलजी के बीच में जंग हमेशा से ही चर्चा का विषय रही है। जब से दिल्‍ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से मुख्‍यमंत्री अरविंद केजरीवाल और एलजी के बीच में किसी न किसी बात पर विवाद होता ही रहा है। हालात यहां तक बिगड़े कि अधिकारों की लड़ाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।

क्या कहा था कोर्ट ने

साल 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एलजी और दिल्ली सरकार की भूमिकाओं और अधिकार क्षेत्र को पूरी तरह से साफ कर दिया था। जिसके बाद दिल्ली सरकार और एलजी में विवाद खत्म हो गया था। कोर्ट ने अपने फैसले में साफ रूप से कहा था कि जमीन, शांति-व्यवस्था और पुलिस का अधिकार ही सिर्फ केंद्र सरकार के पास यानी की एलजी के पास रहेगा। इसके अलावा हर फैसले के लिए दिल्ली की चुनी हुई सरकार पूरी तरह से स्वतंत्र है।

गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली एक्ट (GNCTD) के तहत दिल्‍ली में चुनी हुई सरकार के अधिकार सीमित कर दिए गए हैं। इस बिल के आ जाने के बाद दिल्ली विधानसभा खुद ऐसा कोई नया नियम नहीं बना पाएगी जो उसे दैनिक प्रशासन की गतिविधियों पर विचार करने या किसी प्रशासनिक फैसले की जांच करने का अधिकार देता हो। इस बिल के बाद अधिकारियों को काम की आजादी मिलेगी। इससे उन अधिकारियों का डर खत्‍म होगा जिन्‍हें समितियों की तरफ से तलब किए जाने का डर रहता था।

जनतंत्र का अपमान है ये बिल

इस बिल को आप जनतंत्र और भारत के संविधान का अपमान आसानी से कह सकते हैं। क्योंकि दिल्ली की जनता ने हर बार सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री चुना है, ऐसा कभी नहीं हुआ है कि चुनाव एलजी का किया गया हो। ऐसे में जब जनता ने अपना विश्वास दिखा कर काम करने के लिए मुख्यमंत्री का चयन किया है तो उसकी सारी ताकतें और सारे काम एलजी को सौंप देना जो कि केंद्र सरकार के द्वारा चुना जाता है। इसे लोकतंत्र के खिलाफ ही तो कहा जाएगा।

अगर केंद्र की मोदी सरकार का यही मानना है तो अगली बार से दिल्ली में चुनाव ना कराने का प्रस्ताव भी ला दिया जाए, ताकि कम से कम दिल्लीवासियों को चुनाव खर्च से तो मुक्ति मिलेगी और दिल्ली वालों को कह दिया जाए कि भईया आपके राज्य में तो अब केंद्र की ही हुकुमत है तो आप तो तानाशाही के दायरे में आ गए हैं।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.