नई दिल्ली:
माँ के सामने बेटे की मौत हो रही है. पत्नी के हांथों में पति की मौत हो रही है, अस्पताल के बाहर बेड ना मिलने से दो बच्चों की माँ इस दुनिया को छोड़कर चली गई. और ठीक उसी वक्त इस देश का रहनुमा बंगाल की किसी रैली में कह रहा था कि “आज तक ऐसा जनसैलाब मैनें अपने जीवन में नहीं देखा”. थू है ऐसी सरकार पर क्योकि इन लोगों की मौत इसलिए नहीं हो रही कि इनकी उम्र हो गई थी या इनका समय आ गया था बल्कि ये असमय मार दिए गए. इनका हत्यारा है सरकार का लाचार सिस्टम. लापरवाही, गैर-जिम्मेदारी और घमंड में डूबे नौकरशाह.
मुझे नहीं पता है कि बद्दुआ नाम की कोई चीज होती है या नहीं. कहते हैं की दुखी आत्माओं की बद्दुआओं से बड़े-बड़े मठाधीश और सत्ता के सौदागर हिल गए. तो सुन लो सरकार अगर बद्दुआ होती है तो तुम्हें श्राप लगेगा इन सब मरने वाले लोगों के घरवालों का. तुम्हे श्राप देगा वो बच्चा जिसके माँ उसके सामने इसलिए मर गई क्योकि उसके सिलेंडर का ऑक्सिजन खत्म हो गया था. वो सिलेंडर जो तुम चंद मिनटों में दिलवा सकते थे. तुम्हारे कहने से एक आदमी की जान बच जाती लेकिन तुम नहीं बचा पाए.
शर्म नाम की चीज को आपने अपनी डिक्शनरी से निकालकर फेंक दिया है. शर्म आपके अंदर बची नहीं है. जिस देश में रोजाना तीन लाख से अधिक कोरोना के मामले आ रहे हैं वहां आप लाखों की संख्या में रैली कर रहे हैं. बड़ी बेशर्मी के साथ आप कह रहे हैं “दीदी ओ दीदी”. ठीक उसी वक्त कोई दीदी अपने भाई को छोड़कर इस दुनिया से चली गई क्योकि वक्त पर एम्बुलेंस उसे लेने नहीं आई. अस्पतालों में भीड़ है. कोरोना की जांचे नहीं हो रही हैं लेकिन आप एक दिन में चार रैलियां करते हैं. सरकार का लाचार सिस्टम शर्म आनी चाहिए आपको अरे बल्कि शर्म से मर जाना चाहिए. अब ऐसी स्थित आने के बाद तुम कुर्सी में बैठे हो तो निर्लज्ज हो तुम.
अरे उठ जाओ ना चले जाओ. भाग जाओ यहाँ से, कोई शक्ल नहीं देखना चाहता तुम्हारी, कोई निहारना नहीं चाहता कोई तुम्हारी तरफ क्योकि तुम हत्यारे हो उन सैकड़ों लोगों को जो तुमारी अव्यवस्था की वजह से मर गए.
आक थू……