हिंदू धर्म के लोगों के लिए सावन का महीना बहुत महत्व रखता है। क्योंकि इस पूरे महीने में भगवान शिव की पूजा अर्चना की जाती है। सावन का महीना भगवान शिव का मनपसंद माना गया है। इसलिए ही इस महीने में आने वाले सोमवार का महत्व और बढ़ जाता है। क्योंकि सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को का दिन माना जाता है। सावन के सोमवार को शिव भक्त शिवालयों में व्रत करके भगवान शिव को जलाभिषेक करके पूजा अर्चना करते हैं।
सावन के महीने में अलग-अलग तरीकों भगवान शिव (Lord Shiva) की पूजा की जाती हैं। पुरे सावन महीने में धार्मिक उत्सव की तरह मनाया जाता है। भगवान सिव के पसंदीदा सावन में सावन के सोमवार,शिव की उपासना, व्रत और जलाअभिषेक का भी महत्व हैं। हालाँकि कई महिलायें पुरे सावन के महीने में सूर्योदय के पहले ही स्नान कर के व्रत रखती हैं। कुवारी कन्या अच्छे वर के लिए इस महीने में व्रत और भगवान शिव की पूजा करती है। विवाहित स्त्री पति की मंगल कामना के लिए ये व्रत करती है।
सोमवार भगवान शिव का दिन माना जाता हैं। शिव का बहुत ही प्रिय महीना होने के कारण सावन के सोमवार का महत्व और भी बढ़ जाता हैं। सावन में पाँच या फिर चार सोमवार आते हैं, जिनमे एक्श्ना यानि पूर्ण व्रत रखा जाता हैं। एक्श्ना में शाम में पूजा के बाद भोजन किया जाता हैं। हमेशा से ही शिव जी की पूजा का समय प्रदोषकाल में होता हैं।
सावन का पहला सोमवार 26 जुलाई को और अंतिम सोमवार 16 अगस्त को है। इस साल 25 जुलाई से 22 अगस्त तक रहेगा सावन। सावन में 6 अगस्त को शिवरात्रि,8 अगस्त को हरियाली अमावस्या,11 अगस्त को तीज का त्यौहार, 13 अगस्त को रंगीली पंचमी, 22 अगस्त को रक्षाबंधन और 28 जुलाई को नागपंचमी का त्यौहार मनाया जाएगा।
सावन का पहला सोमवार: 26 जुलाई को होगा
सावन का दूसरा सोमवार : 2 अगस्त को होगा
सावन का तीसरा सोमवार : 9 अगस्त को होगा
सावन का चौथा सोमवार : 16 अगस्त को होगा
सावन का पहला सोमवार: 12 जुलाई 2021
सावन का दूसरा सोमवार : 19 जुलाई 2021
सावन का तीसरा सोमवार : 26 जुलाई 2021
सावन का चौथा सोमवार : 02 अगस्त 2021
सावन का पहला सोमवार: 09 अगस्त 2021
सावन का पहला सोमवार: 16 अगस्त 2021
सावन का तीसरा सोमवार : 23 अगस्त 2021
सावन का चौथा सोमवार :30 अगस्त 2021
सावन का पांचवा सोमवार : 02 सितंबर 2021
सावन के सोमवार के व्रत में दिन में केवल एक समय ही भोजन करने का संकल्प लेना होता है। यह व्रत सूर्योदय से शुरू होकर शाम तक किया जाता है। इस दिन व्रत रखने वाले व्यक्ति को भगवान शिव की पुरे विधि-विधान से पूजा करके व्रत करना चाहिए और भगवान शिव की कथा जरूर सुननी चाहिए। इस व्रत में सावन के पहले सोमवार से शुरू हो कर नौ या सोलह सोमवार तक लगातार व्रत किया जाता है। और ९वें या १६वें सोमवार को सावन के सोमवार के व्रत का उद्यापन करना होता है। यदि आप 9 या 16 सोमवार तक व्रत नहीं कर पाते तो आप सिर्फ सावन में पड़ने वाले हर सोमवार का भी व्रत कर सकते हैं।
Read more : वृषभ अवतार लेकर जब भगवान विष्णु के पुत्रों की जान लेने पहुंचे थे भोलेनाथ
पौराणिक कथा के अनुसार जबएक बार सनत कुमारों ने भगवान शिव से पूछा कि ‘उन्हें सावन महीना इतना पसंद क्यों है? तब भगवान शिव ने सनत कुमारो को बताया कि ‘जब सती ने अपने पिता दक्ष के घर में होने वाले महा यज्ञ में अपनी योगशक्ति के जरिये अपने शरीर का जलती आग में भस्म कर लिया था, उससे पहले देवी सती ने भगवान शिव से प्राण लिया था की वो है जन्म में भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाएं।
उसके बाद अगले जन्म में देवी सती ने माता पार्वती के नाम से राजा हिमाचल और रानी मैना के घर में जन्म लिया था। पार्वती बचपन से ही भगवान शिव की भक्ति करती थी। वो मन में ठान चुकी थी की वो भगवान शिव को ही अपना पति बनाएंगी।तो बीएस फिर क्या था पार्वती ने सावन के पुरे महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और भगवान शिव को प्रसन्न किया। उसके बाद भगवान शिव के साथ उनका विवाह हो हो गया। और भगवान शिव को देवी सती वापस मिल गयी। इसलिए सावन का महीना भगवान शिव के लिए बहुत ही खास है। और यही कारण है कि सावन के महीने में माता पार्वती की तरह भगवान शिव की तरह वर की प्राप्ति के लिए कुंवारी लड़कियाँ व्रत रखती हैं।
भगवान शिव की पूजा के के बाद उन्हें भोग लगाने का विशेष महत्व होता है। इसलिए इनके भोग के रूप गुड़ से बना पुआ, हलवा और कच्चे चना या दूध से बनी मिठाई का भोग लगा सकते हैं।
सावन का महीना सभी एक लिए खाश होता है पर झारखंड की बात ही कुछ और है। झारखंड के देवघर में बाबा बैजनाथ का काफी बड़ा और मशहूर मंदिर है। हर साल कावड़िया यहाँ आकर भगवान शिव का गंगा के पानी से जलाभिषेक करते है। हर साल यहां सावन के महीने में श्रावणी मेला लगता है। हालांकि कोरोना के कारण मंदिर बंद है तो इस साल श्रावणी मेला का भी नहीं लगेगा।
गुजरात में गौपूजा (गाय व्रत ) का भी काफी महत्व है। यह व्रत सावन के महीने में मनाया जाता है। इस व्रत में कुवारी कन्याएँ सुयोग्य वर की प्राप्ति के लिए गाय माता की पूजा करती हैं। और इसके आलावा सावन में यहाँ एक और व्रत किया जाता है जिसे बोल चौथ पूजा व्रत (बहुला चौथ पूजा) भी रखा जाता है।
Read more : पावन धाम वाराणसी के वो ८८ घाट जिनसे जुड़े है कई अनजान रहस्य
सावन के महीने का हिंदू धर्म के लोगो के लिए बहुत ही खाश महीना होता है। क्योंकि सावन के महीने में भगवान शिव की पूजा-आराधना की जाती है। पूरा सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित है। सावन भगवान शिव का प्रिय महीना है। इसलिए ये कहा जाता है कि इस महीने में भगवान शिव से मांगी जाने वाली हर मनोकामना पूर्ण होती है।
मनईटांड़ शिव मंंदिर (Manitand Shiv Temple) 150 साल पुराना है। यहाँ लोड सावन में स्नान करने आते है। यहाँ सावन में शिव भक्तों की काफी भीड़ लगती है। सावन के महीने में मंदिर को खूब अच्छे से सजाया जाता है। सभी शिव भक्त बैदनाथ धाम कावड़ यात्रा लेकर जाते समय उससे पहले यहां आकर भगवान शिव का आशीर्वाद लेते हैं। उसके बाद आगे की यात्रा शुरू करते है।
इस मंदिर कि खासियत ये हैं कि यहाँ दूर-दूर से लोग भगवान शिव कि पूजा अर्चना करने आते हैं। इस मंदिर में शिव पूजा और जलाभिषेक होता है। हालाँकि इस मंदिर में सड़क पूजा भी की जाती है। सड़क पूजा के वक्त इस मंदिर में काफी बड़ा मेला लगता है। इस मंदिर में कई लोगों की मन्नतें परी होने पर पाठा की बलि भी दी जाती है,और ये प्रथा सदियों से चली आ रही है।
हर हर हर महादेव।
सत्य, सनातन, सुन्दर, शिव सबके स्वामी।
अविकारी अविनाशी, अज अन्तर्यामी॥
आदि, अनन्त, अनामय, अकल, कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी॥
हर हर हर महादेव।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता, तुम ही संहारी॥
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औढरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता अभिमानी॥
मणिमय-भवन निवासी, अति भोगी रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी॥
छाल-कपाल, गरल-गल, मुण्डमाल व्याली।
चिता भस्मतन त्रिनयन, अयनमहाकाली॥
प्रेत-पिशाच-सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर, रुद्र प्रलयकारी॥
शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मन-हारी॥
निर्गुण, सगुण, निरञ्जन, जगमय नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो॥
सत्, चित्, आनन्द, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम-सुधा-निधि प्रियतम, अखिल विश्व त्राता॥
हम अतिदीन, दयामय! चरण-शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर, अपना कर लीजै॥
श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला।
सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके।
कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये।
मुण्डमाल तन छार लगाये॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।
छवि को देख नाग मुनि मोहे॥
मैना मातु की ह्वै दुलारी।
बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ।
लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।
सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी।
पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।
सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद नाम महिमा तव गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।
जरे सुरासुर भये विहाला॥
कीन्ह दया तहँ करी सहाई।
नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई।
कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।
भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनंत अविनाशी।
करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै ।
भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।
यहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।
संकट से मोहि आन उबारो॥
मातु पिता भ्राता सब कोई।
संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु अब संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे वो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करौं तुम्हारी।
क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन।
मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं।
नारद शारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमो शिवाय।
सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई।
ता पार होत है शम्भु सहाई॥
ॠनिया जो कोई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र हीन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे।
ध्यान पूर्वक होम करावे ॥
त्रयोदशी ब्रत करे हमेशा।
तन नहीं ताके रहे कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे।
शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे।
अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कहे अयोध्या आस तुम्हारी।
जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥