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क्यों ओलंपिक जैसे मौकों पर ही खिलाड़ियों पर इनाम लुटाए जाते हैं

टोक्यो ओलंपिक 2021 का सफर खत्म हो गया है और ये इतिहास का अभी तक का सबसे बेहतरीन ओलंपिक रहा है। भारत ने इस बार 7 मेडल हासिल किए हैं।
Logic Taranjeet 9 August 2021
क्यों ओलंपिक जैसे मौकों पर ही खिलाड़ियों पर इनाम लुटाए जाते हैं

टोक्यो ओलंपिक 2021 का सफर खत्म हो गया है और ये इतिहास का अभी तक का सबसे बेहतरीन ओलंपिक रहा है। भारत ने इस बार 7 मेडल हासिल किए हैं। जिसमें 1 गोल्ड, 2 रजत और 4 कांस्य पदक शामिल है। इन पदकों के साथ भारत के खिलाड़ियों का जोश आसमान छूता नजर आ रहा है। जिन खिलाड़ियों ने ओलंपिक में पदक पर कब्जा जमाया है, उन पर इनामों की बौछार जमकर हो रही है। करोड़ों रुपये दिए जा रहे हैं। इन खिलाड़ियों को कैश प्राइज से लेकर सरकारी नौकरी तक सरकारों ने इन पदक जीतने वाले खिलाड़ियों के लिए खजाना खोल दिया है। लेकिन, इन तमाम बातों के बीच एक अहम सवाल ये है कि आखिर खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार केवल ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही सीमित क्यों है?

ओलंपिक और चैंपियनशिप में ही नजर आते हैं खिलाड़ी

दुनियाभर में हर खेल के तमाम इवेंट होते हैं। इन खेलों के ओलंपिक और वर्ल्ड चैंपियनशिप जैसे बड़े इवेंट्स को छोड़ दिया जाए, तो भारतीय खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के नाम पर दिए जाने वाले कैश प्राइज में भी जमीन-आसमान का अंतर साफ नजर आता है। इतना ही नहीं जूनियर लेवल पर भी बड़े इवेंट्स के अलावा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के लिए भारत में कोई खास कदम नहीं उठाए जाते हैं।

अगर किसी प्रतिभाशाली खिलाड़ी को शुरुआती दौर से ही कोई प्रोत्साहन नहीं मिलेगा, तो दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या वाले देश को ओलंपिक में पदकों के लिए तरसना पड़ेगा ही। खेल सुविधाओं को लेकर देश में तमाम बातें होती हैं। लेकिन, खेलों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थिति भारत में कैसी है, इसे बताने की जरूरत नही पड़ेगी। राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचने वाले खिलाड़ियों को तब भी तमाम सुविधाएं मिलती हैं। लेकिन, जूनियर लेवल पर जहां से प्रतिभाओं का निखार शुरू होता है और वहां खिलाड़ियों को स्पोर्ट्स किट तक के लिए खुद ही व्यवस्था करनी पड़ती है।

कुछ ही दिनों में फिर से भुला दी जाएंगी खिलाड़ियों की समस्या

भारत के खिलाड़ियों की जीत के बाद उनके बारे में सामने आने वाली गरीबी और सुविधाओं के अभाव की खबरें कुछ ही दिनों में भुला दी जाती हैं। कुछ दिनों के उत्साह और जोश के बाद सब कुछ ठीक वैसे ही पुराने ढर्रे पर वापस लौट आता है, जैसा पहले चल रहा था। खेल के उपकरण से लेकर प्रैक्टिस तक की सुविधाएं फिर से भगवान भरोसे हो जाती हैं।

एक खबर के अनुसार भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीम को स्पॉन्सर करने वाली ओडिशा सरकार ने खिलाड़ियों को करीब तीन साल तक एक अच्छे होटल में रखा था। ओडिशा सरकार ने इस सुविधा के लिए तर्क दिया था कि खिलाड़ियों की पर्सनल लाइफ स्टाइल का असर परफॉर्मेंस पर पड़ता है। अच्छे आवास, सही डाइट और सुविधाओं से लैस टीम का प्रदर्शन अपने आप बढ़ जाता है। क्या भारत में इस बात की कल्पना की जा सकती है कि खेल प्रतिभाओं को उनके शुरुआती दौर में ही इस तरह की सुविधाएं दी जाएं।

चीन से सीख लेने की जरूरत

इस मामले में भारत को चीन जैसे देशों से सीख लेनी चाहिए, जो इस टोक्यो ओलंपिक के मेडल टैली में टॉप पोजीशन पर है। चीन में खेलों के लिए बुनियादी इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ ही खेल प्रतिभाओं को जूनियर लेवल से ही तराशने का काम शुरू कर दिया जाता है। इन्हें पदक लाने लायक बनाने में किसी तरह की कमी नहीं रखी जाती है। वो कमी आर्थिक हो या कोई और, चीन में खेलों में प्रदर्शन को वरीयता दी जाती है और इसके सहारे विश्व में उसका दबदबा कायम करने की ओर जोर दिया जाता है।

वहीं, भारत में इसके उलट बच्चों को खेल से ज्यादा नौकरी और शिक्षा पर ध्यान देने का बारे में कहा जाता है। भारत में खेल प्रतिभाओं को सही तरीके से खोजने का कोई तंत्र भी स्थापित नहीं है और भारत में खेलों को सिर्फ सरकारी नौकरी पाने का जरिया बना दिया गया है। परिवार और समाज भी खेलों को नौकरी के लिए एक अच्छे अवसर से ऊपर नहीं देखता है। और, ये सरकारी नौकरियां भी उन्हीं खिलाड़ियों के लिए है, जो खेलों में पदक लाए हैं या बेहतरीन प्रदर्शन कर पदक की उम्मीद जगाए रखते हैं।

सही मायनों में खिलाड़ियों पर इनामों की बौछार केवल ओलंपिक जैसे इवेंट्स तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए। छोटे स्तर से ही खिलाड़ियों को देश के लिए पदक जीतने का प्रोत्साहन मिलना चाहिए और ये प्रोत्साहन कैसा और कितना हो, ये तय करना सरकार की जिम्मेदारी है लेकिन, सरकारों को ये भी तय करना चाहिए कि सभी खेलों में प्रोत्साहन एक ही आधार पर किया जाए। वरना धर्म और जाति के विभेद से जूझ रहे देश में खेलों में भी भेद होने लगेगा, जैसा फिलहाल क्रिकेट को लेकर देखा जा रहा है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.