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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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इस मुश्किल वक्त में दुनिया के लिए एक खत, जो उम्मीदों से भरा हुआ है

हमारे चारो तरफ से ऐसी खबरें आ रही हैं जो हमें डराती हैं लगातार बढ़ता मौतों का आकड़ा और उसके बीच घबराहट से भरे हुए हम इस मुश्किल वक्त में दुनिया के लिए एक खत

प्यारे लोगों,

आजकल हमारे चारो तरफ से ऐसी खबरें आ रही हैं जो हमें डराती हैं. कई बार ये डर इतना अधिक बढ़ जाता है की घबराहट में बदल जाता है. लगातार बढ़ता मौतों का आकड़ा और उसके बीच घबराहट से भरे हुए हम. सबकुछ अचानक से कितना बदल गया ना. सब ठीक चल रहा था और ये क्या हो गया. घरों के अंदर कैद हो गए हम सब. मगर ए दुनिया जहाँ वालों ये जान लो की बहुत कुछ अच्छा होना अभी बाकि है क्योकि उम्मीद का सूरज डूबा नहीं है.

वैसे अगर ध्यान से देखो तो दुनिया में बहुत कुछ अच्छा हो रहा है. अच्छा कुछ ऐसा जो हमारे लिए ही है. क्या आपने कभी सोचा था कि दुनियाभर में प्रदूषण कम हो जाएगा. क्या कभी सोचा था की ओजोन की परत भरने लग जाएगी. क्या कभी सोचा था कि उड़ीसा में समुन्द्र किनारे सात लाख कछुए अंडे देने आएँगे. वो कछुए जो पहले या तो पकड़कर बाजारों में बेच दिए जाते थे या फिर जहाजों में फंसकर मर जाते थे. कितना कुछ बदल रहा है ना और ये बदलाव हमारी बेहतरी के लिए हो रहा है. ताकि हम और अधिक इस दुनिया में जी सकें. प्रकृति खुद को रिपेयर कर रही है क्योकि उसे आप से अब कोई उम्मीद नहीं थी.

माना की थोडा दुःख है. कितने दिन हो गए यारों से नहीं मिले. चाय की दुकान पर बैठकर चुस्कियां लेते हुए दुनियाभर की बातें दोस्तों से नहीं की. कितने दिन हो गए बाइक पर बैठकर शहर से दूर एकांत में नहीं गए. नहीं देखी वो गली के बाहर की वो जगह जहाँ दिन में कई बार आना-जाना होता था. कितने टिकट्स कैंसिल कर दिए गए और कितने ही प्रेमी एक दूसरे की बिरह वेदना में तड़प रहे हैं.

मगर यकीन मानो सबकुछ अच्छा होगा. अच्छा इसीलिए क्योकि अभी ये प्रकृति इतनी निष्ठुर नही हुई है. हमारे डॉक्टरों ने दिन-रात प्रयोगशाला में जान झोंक रखी है. पूरा दिन सफ़ेद कोट पहने इस अनजान दुश्मन को हराने के लिए दवाइयां बनाने में लगे हुए हैं. माना वक्त मुश्किल है लेकिन लड़ना तो नहीं छोड़ सकते है ना. किसी दिन अपने या फिर कहीं दूर देश से ऐसी कोई खबर आएगी जो हमारे कानों में एक सुखद एहसास देकर जाएगी. वो खबर जिसे सुनकर आप चहकने लगेंगे और जोर-जोर से चिल्लाकर अपनों को इसके बारे में बताएँगे. हम सब बेताब है ये सुनने के लिए की दुनिया के सभी देशों ने इस अनजान दुशमन को हरा दिया है. यकी मानी ऐसा कोई पहली बार नहीं हुआ है जब कोई अनजान दुश्मन हमें परेशान कर रहा हो. बल्कि सृष्टि के निर्माण से लेकर अब तक कई वारदातें हुई हैं. लेकिन हमसे पहले वाले लोगों ने हार नहीं मानी क्योकि उन्हें पता था उम्मीद का सूरज अभी डूबा नहीं है. उम्मीद बनी हुई है एक बेहतर और सुखद कल की.

महज कुछ दिन और इसके बाद सबकुछ वैसे ही दिखने लगेगा. जल्दी से दफ्तर पहुचने की कोशिश करते हुए लोग, राजीव चौक पर मेट्रो से उतरती भीड़, किसी पान की दुकान पर भीड़ लगाए हुए लोग, चाय की दुकान पर बैठकर पार्षद से लेकर ट्रम्प के चुनाव तक हो रही बातें, अपनी प्रेमिका के इंतजार में गली में खड़ा प्रेमी, ट्यूशन सेंटर के बाहर फिर से लगने वाली भीड़ और अपने प्यारे बच्चे को तैयार कर स्कूल छोड़ने जाती हुई माँ. सबकुछ बेहतर होगा. बस कुछ दिनों का संयम है और महज कुछ पलों का इंतजार.

इस दौरान अपनों से बातें कीजिए, उनके साथ वक्त बिताइए. वो सारे काम करिए जो आपने सोच रखे थे और कभी नहीं कर पाए. खाना बनाइए, दोस्तों से विडियो कॉल करिए, घर के काम में हाँथ बटाइए और इंतजार करिए किसी दिशा से आती हुई एक मनमोहक सुगंध भरी खबर का जो आपने कानों को छूकर वहां एक सुखद एहसास छोड़ जाएगी क्योकि…..हम हारने वालों में से नहीं, जीतकर आने वालों में से है. हमने हमेशा माना है की……उम्मीद का सूरज अभी डूबा नहीं है.

Ambresh Dwivedi

Ambresh Dwivedi

एक इंजीनियरिंग का लड़का जिसने वही करना शुरू किया जिसमे उसका मन लगता था. कुछ ऐसी कहानियां लिखना जिसे पढने के बाद हर एक पाठक उस जगह खुद को महसूस करने लगे. कभी-कभी ट्रोल करने का मन करता है. बाकी आप पढ़ेंगे तो खुद जानेंगे.