देश के अंदर हम सुख-चैन से रह सकें, यह सुनिश्चित करने के लिए सीमा पर तैनात हमारे जवान दिन-रात एक करके देश के दुश्मनों से हमारी रक्षा करते हैं। चाहे कैसा भी मौसम रहे, वे सीमा पर डटे रहते हैं और हमें दुश्मनों के हमले में एक खरोंच तक नहीं आने देते, क्योंकि वे या तो दुश्मनों को हम तक पहुंचने से पहले ही मार गिराते हैं या फिर अपनी शहादत दे देते हैं। यहां हम आपको अपने देश के एक ऐसे ही जांबाज के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तो कुर्बान कर दी और शहीद हो गये, मगर आज भी वे सीमा पर देश की रक्षा के लिए तैनात हैं।
सिक्किम जो कि भारत के पूर्वोत्तर इलाके में स्थित है, यहां की बेहद बंडी वादियों में नाथूला दर्रा से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर एक मंदिर बना है भारत-चीन सीमा के नजदीक, जिसे यदि आप दूर से देखेंगे तो वह एक बंकर की तरह ही नजर आता है। इस मंदिर के अंदर विराजमान हैं बाबा हरभजन सिंह। वे भारतीय सेना में सैनिक थे। सैनिक रहने के दौरान उनके पास वर्दी और जूते आदि से लेकर जितने भी साजो-सामान थे, वे सभी इस मंदिर में रखे हुए आपको मिल जाएंगे। इस तरह से भले ही देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर चुके जांबाज सैनिक हरभजन सिंह हमारे साथ नहीं हों, मगर यह मंदिर हमें यह एहसास दिलाता है कि वे आज भी यहां मौजूद हैं। जो सैनिक भारत-चीन सीमा पर देश की सुरक्षा का जिम्मा संभाल रहे हैं, वे यही मानते हैं कि यहां सीमा पर बाबा हरभजन सिंह हमेशा निगरानी करते हैं। यही नहीं, यदि कोई खतरा आ रहा होता है, तो आगाह भी कर देते हैं।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर हैं कौन बाबा हरभजन सिंह? जब वे शहीद हो चुके हैं तो फिर हिंदुस्तान की पहरेदारी करना उनके लिए कैसे मुमकिन है? यह दिन था 30 अगस्त, 1946 का जब वर्तमान पाकिस्तान में स्थित गुजरांवाला जिले के सदराना गांव में हरभजन सिंह ने जन्म लिया था। पट्टी स्थित डी.ए.वी. हाईस्कूल से मैट्रिक पास करने के बाद हरभजन सिंह को जून, 1956 में अमृतसर में भारतीय सेना के सिग्नल कोर का बतौर सैनिक हिस्सा बनने का अवसर मिल गया। इसके नौ वर्षों के बाद हरभजन सिंह को 30 जून, 1965 में कमीशन प्रदान किया गया। इसके बाद उनकी तैनाती 14 राजपूत रेजिमेंट में हो गई।
जब वर्ष 1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध हुआ तो हरभजन सिंह ने इसमें भी भागीदारी की। कहा जाता है कि इनका स्थानांतरण इसके लिए 18 राजपूत रेजिमेंट में किया गया था और फिर सिपाही के तौर पर उनकी भर्ती भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में कर ली गई थी। पूर्वी सिक्किम में 23वीं पंजाब रेजीमेंट के साथ तैनाती के दौरान 4 अक्टूबर, 1968 को जब वे तुकु ला से डोंगचुई जा रहे थे, तभी उनका पैर फिसल गया और वे गहरी खाई में गिर गए। बताया जाता है कि पानी के तेज बहाव की वजह से वह काफी दूर चले गए और इसी दौरान 22 वर्ष की उम्र में उनकी मौत हो गई। बाद में अपने एक साथी प्रीतम सिंह के सपने में वे आए। इसमें उन्होंने बताया कि उनकी मौत कैसे हुई और उनका मृत शरीर कहां पड़ा हुआ है। इसके मुताबिक सैनिकों ने उनके शव को खोजना शुरू किया और राइफल के साथ उनका शव उसी जगह से मिला, जहां के बारे में उन्होंने अपने साथी को सपने में बताया था। साथ ही सपने में उन्होंने अपने साथी से उनकी समाधि बनाने का भी अनुरोध किया था। इसलिए सेना के अधिकारियों ने छोक्या छो नामक एक जगह पर उनकी समाधि बना दी। इसी जगह पर 11 नवंबर, 1982 को एक मंदिर बनवा दिया गया।
हरभजन सिंह के बारे में यह मान्यता है कि मर जाने के बाद भी उनकी आत्मा भारत चीन सीमा की निगरानी करती रहती है। यही नहीं, चीन की घुसपैठ के बारे में भी उन्होंने सैनिकों को आगाह किया था। कुछ समय पहले तक भारतीय सेना ने भी उनकी सेवाओं को जारी रखते हुए उन्हें वेतन देना भी जारी रखा था और कुछ वक्त पहले ही वे कैप्टन के पद से रिटायर हुए हैं, ऐसा माना जाता है। ड्यूटी के दौरान उन्हें 2 महीने की छुट्टी भी मिल रही थी। सैनिक उनकी टोपी, वर्दी और अन्य सामान जुलूस के रूप में जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन तक नाथूला से लेकर जाते थे। यहां से इन सामानों को डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से जालंधर भेजा जाता था और वहां से एक विशेष सैन्य गाड़ी से इन्हें इनके गांव पहुंचाया जाता था। यह भी कहा जाता है कि छुट्टी बीतने के बाद वापस उनके सामान को नाथूला में इनके बंकर में पहुंचा दिया जाता था।
हरभजन सिंह की शहादत को पांच दशक से भी ज्यादा बीत गए हैं, मगर आज भी भारत-चीन सीमा पर तैनात जवान उनसे प्रेरणा लेते हैं। हरभजन सिंह को समर्पित नाथूला में स्थित यह मेमोरियल मंदिर भारतीय सेना के जज्बे का प्रतीक है। हरभजन सिंह, जिन्हें कि नाथूला का हीरो भी कहा जाता है, उनकी कहानी को जिंदा रख के भारतीय सेना ने दिखा दिया है कि इस देश में बलिदान का कितना महत्व है। साथ ही यह मंदिर यह संदेश भी देता है, तन समर्पित मन समर्पित और यह जीवन समर्पित। चाहता हूं देश की धरती। तुझे कुछ और भी दूं। तुझे कुछ और भी दूं।