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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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यदि ‘आप’ में रहना है तो केजरीवाल के सिवा कोई और ‘सत्ता’ का लालच ना करे

Politics Tadka Preeti Mishra 6 January 2019
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आई ऍम अन्ना , आई ऍम अन्ना… याद है ?

जरूर याद होगा| २०११ का एंटी करप्शन मूवमेंट जो की समाज सेवी अन्ना हज़ारे ने शुरू किया तो उनके साथ के लिए उनके साथ मंच साझा किया कई दिग्गज लोगों ने | अरविन्द केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, अल्का लाम्बा जैसे कई नामचीन हस्तियों ने जैसे ही मोर्चा संभाला पुरे देश में मानो एक लहर सी दौड़ गयी |

आंदोलन के विद्वेष के साथ ही जन्म हुआ खुद को आम आदमी का पार्टी कहने वाली एक राजनितिक पार्टी ‘आप’ | लेकिन विडंबना आज ये है कि, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कपिल मिश्रा, आशुतोष जैसी सभी नामचीन हस्तियों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया | हद तब पार हो गया जब पार्टी की नीव कहे जाने वाले कुमार विश्वास ने अरविन्द केजरीवाल के दो आँख कर लिया | हालांकि अभी तक उन्होंने आम आदमी पार्टी के जुड़े रहने से खुद को मना नहीं किया है |

हालांकि पार्टी के यूँ टूटने का दौर यही नहीं थमा और अब बारी आयी पंजाब की| बता दें कि, पंजाब के विधायक सुखदेव सिंह खैरा ने हाल ही में आम आदमी पार्टी से ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि यहाँ पर यदि किसी को रहना है तो ये मान ले कि आंदोलन से निकली हुई पार्टी अब पूरी तरह से अपने सिद्धांत से द्वरित हो चुकी है |

विवाद की शुरुवात हुई राजीव गाँधी से भारत रत्न सम्मान वापस लेने की मांग से | दरअसल कुछ आप लीडर ने सिक्ख दंगे की वजह से तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी को भारत रत्न के योग्य न बताते हुए विधानसभा में एक बिल पास किया | जिस पर आप के बहुत सारे विधायकों ने अर्ध- सहमति जाहिर की , जिनमें अल्का लाम्बा जैसी हस्तियां भी थी |
बाद में अल्का लाम्बा ने ये बयान भी दिया कि मुझे राजीव गाँधी को समर्थन के लिए ऊपर से दबाव आया और जैसे ही मैं संसद से वाकआउट किया मुझे सीएम का मैसेज आया पार्टी से इस्तीफा देने के लिए |

हालांकि अरविन्द केजरीवाल ने मुद्दे को थमने के लिए सिख दंगे के शिकार हुए परिवारों को पार्टी की तरफ से पावर बिल माफ़ करने का ऐलान किया |

इन्ही सबके बीच ६ दिसंबर को पंजाब विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने पार्टी को इस्तीफा देते हुए कहा कि,

हालांकि इस पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सुखपाल सिंह खैरा को ही सत्ता का लालची बताते हुए व्यंग कसा है ;

इस पर लोगों ने भी सिसोदिया को आड़े हाथों लिया और ट्रोल किया

अब पार्टी प्रमुख चाहे जो भी कहें लेकिन सच तो यही है कि पार्टी से इस्तीफा देने वाले हर लीडर ने यही आरोप लगाया है कि यदि आम आदमी पार्टी में रहना है तो अरविन्द अरविन्द कहना है |

कहाँ तक सार्थक है पार्टी को एकांकी कर देना ?

जब बात पार्टी की हो तो एकांकी करने का कोई भी मतलब नहीं होता किन्तु अरविन्द केजरीवाल को एक बार अवश्य ये समझने कि जरुरत है कि आखिर क्यों पार्टी से जुड़े लोग पार्टी से दूर हो गए ?

क्या अरविन्द केजरीवाल कि पार्टी सिर्फ एक ही व्यक्ति कि पार्टी बन के रह गयी है ? सवाल तो उठना लाज़मी है जब कपिल मिश्रा ने इन पर रिश्वत का आरोप लगाया और खुद की जांच कराने के लिए तैयार होने की जगह केजरीवाल ने एक रात में कपिल मिश्रा को पार्टी से बाहर निकाल दिया |

सवाल तो उठेगा

सवाल तो उठेगा अगर कुमार विश्वास के साथ बहुमत होने के बावजूद भी उनको ३ में से एक भी राज्यसभा की सीट नहीं मिली | सवाल तो उठेगा यदि आप पार्टी के सिंघस्थ आसान पर बैठने के बाद लोगों को ये ज्ञान देते फिरे कि, जिसको सत्ता का लालच हो वो पार्टी छोड़ के जाए |

सवाल तो उठेगा जब कांग्रेस के खिलाफ होने वाले अन्ना आंदोलन से शुरुआत करने के बावजूद आज कांग्रेस पार्टी के लीडर के साथ मंच साझा किया जा रहा है | क्या ये नहीं दिखाता है कि एक नेता सत्ता के लिए अपनी सभी गरिमा व सिद्धांत को ताख पर किस तरह रख के चल पड़ता है?

क्या ये जो आये दिन आप करते रहते हैं सत्ता की भूख या लालच से विरत है ? केजरीवाल जी शायद आपके लिए नहीं | क्योंकि आपके लिए शायद आपको छोड़ के बाकी किसी को सत्ता का लालच करने का अधिकार नहीं है या यूँ कह लीजिये कि ये पूरी पार्टी जिसमे ना जाने कितने लोगों का खून और पसीना बाह गया आज एक मुख्यमंत्री की ही पार्टी बन के रह गयी है |

Preeti Mishra

Preeti Mishra

Blogger | Founder | Foodie