आई ऍम अन्ना , आई ऍम अन्ना… याद है ?
जरूर याद होगा| २०११ का एंटी करप्शन मूवमेंट जो की समाज सेवी अन्ना हज़ारे ने शुरू किया तो उनके साथ के लिए उनके साथ मंच साझा किया कई दिग्गज लोगों ने | अरविन्द केजरीवाल, कुमार विश्वास, मनीष सिसोदिया, किरण बेदी, अल्का लाम्बा जैसे कई नामचीन हस्तियों ने जैसे ही मोर्चा संभाला पुरे देश में मानो एक लहर सी दौड़ गयी |
आंदोलन के विद्वेष के साथ ही जन्म हुआ खुद को आम आदमी का पार्टी कहने वाली एक राजनितिक पार्टी ‘आप’ | लेकिन विडंबना आज ये है कि, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, कपिल मिश्रा, आशुतोष जैसी सभी नामचीन हस्तियों ने पार्टी का साथ छोड़ दिया | हद तब पार हो गया जब पार्टी की नीव कहे जाने वाले कुमार विश्वास ने अरविन्द केजरीवाल के दो आँख कर लिया | हालांकि अभी तक उन्होंने आम आदमी पार्टी के जुड़े रहने से खुद को मना नहीं किया है |
हालांकि पार्टी के यूँ टूटने का दौर यही नहीं थमा और अब बारी आयी पंजाब की| बता दें कि, पंजाब के विधायक सुखदेव सिंह खैरा ने हाल ही में आम आदमी पार्टी से ये कहते हुए इस्तीफा दे दिया कि यहाँ पर यदि किसी को रहना है तो ये मान ले कि आंदोलन से निकली हुई पार्टी अब पूरी तरह से अपने सिद्धांत से द्वरित हो चुकी है |
विवाद की शुरुवात हुई राजीव गाँधी से भारत रत्न सम्मान वापस लेने की मांग से | दरअसल कुछ आप लीडर ने सिक्ख दंगे की वजह से तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गांधी को भारत रत्न के योग्य न बताते हुए विधानसभा में एक बिल पास किया | जिस पर आप के बहुत सारे विधायकों ने अर्ध- सहमति जाहिर की , जिनमें अल्का लाम्बा जैसी हस्तियां भी थी |
बाद में अल्का लाम्बा ने ये बयान भी दिया कि मुझे राजीव गाँधी को समर्थन के लिए ऊपर से दबाव आया और जैसे ही मैं संसद से वाकआउट किया मुझे सीएम का मैसेज आया पार्टी से इस्तीफा देने के लिए |
@ArvindKejriwal must explain the nefarious anti Sikh role of Justice Zora who protected culprits of sacrilege and guilty police officers for killing 2 sikh youth at Behbal through Commision appointed by Badals,merely for few lacs salary etc? His induction into Aap is like 0+0=0 pic.twitter.com/HbhoiBUcZ6
— Sukhpal Singh Khaira (@SukhpalKhaira) December 25, 2018
हालांकि अरविन्द केजरीवाल ने मुद्दे को थमने के लिए सिख दंगे के शिकार हुए परिवारों को पार्टी की तरफ से पावर बिल माफ़ करने का ऐलान किया |
Arvind Kejriwal government waives power bills of 2000 families, who suffered in 1984 Anti-Sikh riots. pic.twitter.com/UjChKPMLHI
— TIMES NOW (@TimesNow) May 26, 2017
इन्ही सबके बीच ६ दिसंबर को पंजाब विधायक सुखपाल सिंह खैरा ने पार्टी को इस्तीफा देते हुए कहा कि,
“After joining the party, I realised that the hierarchy of #AAP was no different from those of the traditional centralised political parties,” #SukhpalSinghKhaira said. https://t.co/87bstbILgq
— Firstpost (@firstpost) January 6, 2019
हालांकि इस पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने सुखपाल सिंह खैरा को ही सत्ता का लालची बताते हुए व्यंग कसा है ;
AAP will keep working for poor and marginalised people. Those who have problem in this can leave the party.
Mr Khaira was trying to weaken party and was openly revolting against the party since then. He tried to break party. Which organization can tolerate such behaviour? 2/N
— Manish Sisodia (@msisodia) January 6, 2019
इस पर लोगों ने भी सिसोदिया को आड़े हाथों लिया और ट्रोल किया
ये भी तो नौटंकी की थी “बच्चों की कसम”, “गाड़ी बँगला नहीं लूँगा” झूट की भी सीमा होती है। . अगला नंबर आप का है सिसोदिया जी। .. बहाना सोच के रखियेगा @ArvindKejriwal
— Dr. Swaroop Kumar Pandey (@pandeyswaroop) January 6, 2019
अब पार्टी प्रमुख चाहे जो भी कहें लेकिन सच तो यही है कि पार्टी से इस्तीफा देने वाले हर लीडर ने यही आरोप लगाया है कि यदि आम आदमी पार्टी में रहना है तो अरविन्द अरविन्द कहना है |
जब बात पार्टी की हो तो एकांकी करने का कोई भी मतलब नहीं होता किन्तु अरविन्द केजरीवाल को एक बार अवश्य ये समझने कि जरुरत है कि आखिर क्यों पार्टी से जुड़े लोग पार्टी से दूर हो गए ?
क्या अरविन्द केजरीवाल कि पार्टी सिर्फ एक ही व्यक्ति कि पार्टी बन के रह गयी है ? सवाल तो उठना लाज़मी है जब कपिल मिश्रा ने इन पर रिश्वत का आरोप लगाया और खुद की जांच कराने के लिए तैयार होने की जगह केजरीवाल ने एक रात में कपिल मिश्रा को पार्टी से बाहर निकाल दिया |
सवाल तो उठेगा अगर कुमार विश्वास के साथ बहुमत होने के बावजूद भी उनको ३ में से एक भी राज्यसभा की सीट नहीं मिली | सवाल तो उठेगा यदि आप पार्टी के सिंघस्थ आसान पर बैठने के बाद लोगों को ये ज्ञान देते फिरे कि, जिसको सत्ता का लालच हो वो पार्टी छोड़ के जाए |
सवाल तो उठेगा जब कांग्रेस के खिलाफ होने वाले अन्ना आंदोलन से शुरुआत करने के बावजूद आज कांग्रेस पार्टी के लीडर के साथ मंच साझा किया जा रहा है | क्या ये नहीं दिखाता है कि एक नेता सत्ता के लिए अपनी सभी गरिमा व सिद्धांत को ताख पर किस तरह रख के चल पड़ता है?
क्या ये जो आये दिन आप करते रहते हैं सत्ता की भूख या लालच से विरत है ? केजरीवाल जी शायद आपके लिए नहीं | क्योंकि आपके लिए शायद आपको छोड़ के बाकी किसी को सत्ता का लालच करने का अधिकार नहीं है या यूँ कह लीजिये कि ये पूरी पार्टी जिसमे ना जाने कितने लोगों का खून और पसीना बाह गया आज एक मुख्यमंत्री की ही पार्टी बन के रह गयी है |