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अन्ना हजारे का आंदोलन दोबारा देखना है तो सरकार कांग्रेस की लानी होगी

देश में 2 महीनों से भी लंबे वक्त से किसानों के द्वारा 3 कृषि कानूनों के विरोध में बहुत बड़ा आंदोलन छेड़ रखा है। इस आंदोलन ने काफी रुख बदल लिए हैं, जो आंदोलन पहले पंजाब राज्य के किसानों तक सीमित था, वो अब देश के बहुत से क्षेत्रों में फैल गया है। इसके अलावा जिस आंदोलन में सिर्फ शांतिपूर्ण तरीके को अपनाया गया था, उसमें अब हिंसक तरीकों का भी इस्तेमाल हुआ। हालांकि अभी तक ये सामने नहीं आया कि हिंसा करने वाले लोग कौन थे? इसके अलावा किसान नेताओं के आंसू निकल गए और राजनेताओं की भी अब पूरी तरह से इस आंदोलन में एंट्री हो गई है।

कहां गायब हो गए हैं अन्ना हजारे

जब भी बात आंदोलन की होती है तो युवा लोगों को 2 आंदोलन की याद सबसे ज्यादा आती है, एक तो 16 दिसंबर क्रांति के नाम से चले दामिनी रेप केस के आंदोलन की और दूसरी भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की। भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से अचानक से मशहूर होने वाले अन्ना हजारे का नाम आंदोलनकारी, समाजसेवी के तौर पर लिया जाता है।

लेकिन इस बार वो पूरी तरह से खामोश है, देश का किसान लाठी-डंडे खा रहा है, दिल्ली की सर्दी में टेंट लगा कर सड़क पर 2 महीनों से लंबे वक्त से बैठा है। लेकिन समाजसेवी अन्ना हजारे गायब है। उन्होंने बोला था कि वो किसानों के साथ आंदोलन करेंगे लेकिन फिर भाजपा सरकार के नेताओं ने उन्हें समझा लिया और आंदोलन ना करने के लिए मना लिया।

शिव सेना ने कसा तंज

इस पर महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिव सेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में भी अन्ना हजारे पर निशाना साधा है। उनके द्वारा अपने प्रस्तावित अनशन को रद्द किए जाने पर शिव सेना ने अन्ना पर तंज कसा है। सामना के संपादकीय में लिखा गया है कि अब अन्ना को बताना चाहिए कि वो किसानों के साथ हैं या सरकार के साथ हैं? इस संपादकीय का शीर्षक है ‘अन्ना किसकी ओर हैं!’

संपादकीय में लिखा गया है कि मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते अन्ना दो बार दिल्ली आए और उन्होंने जोरदार आंदोलन किया। इस आंदोलन की मशाल में तेल डालने का काम तो भाजपा कर रही थी लेकिन विगत सात वर्षों में मोदी शासन में नोटबंदी से लॉकडाउन तक कई निर्णयों से जनता बेजार हुई, लेकिन अन्ना ने करवट भी नहीं बदली, ऐसा आरोप भी होता रहा है। मतलब आंदोलन सिर्फ कांग्रेस के शासन में करना है क्या? बाकी अब रामराज अवतरित हो गया है क्या?

इसके साथ ही संपादकीय में आगे लिखा है कि अन्ना द्वारा अनशन का अस्त्र बाहर निकालना और बाद में उसे म्यान में डाल देना, ऐसा इससे पहले भी हो चुका है। इसलिए अभी भी हुआ तो इसमें अनपेक्षित जैसा कुछ नहीं था। भाजपा नेताओं द्वारा दिए गए आश्वासन के कारण अन्ना संतुष्ट हो गए होंगे तो ये उनकी समस्या है।

किसानों के मामले में दमन का फिलहाल जो चक्र चल रहा है, कृषि कानूनों के कारण जो दहशत पैदा हुई है बुनियादी सवाल उसे लेकर है। इस संदर्भ में एक निर्णायक भूमिका अन्ना अख्तियार कर रहे हैं और उसी दृष्टिकोण से अनशन कर रहे हैं, ऐसा दृश्य निर्माण हुआ था, परंतु अन्ना ने अनशन पीछे ले लिया। इसलिए कृषि कानून को लेकर उनकी निश्चित तौर पर भूमिका क्या है, फिलहाल तो यह अस्पष्ट ही है।

भाजपा नेताओं के कहने पर मान गए अन्ना

आपको बता दें कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़णवीस और केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने अन्ना हजारे से मुलाकात की थी और उन्हें उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों पर सरकार की ओर से आश्वासन दिया गया है। इसके बाद अन्ना ने अपने अनशन को टालने का एलान किया है। इस फैसले के बाद अन्ना हजारे की खूब आलोचना हो रही है। क्योंकि वो जब यूपीए सरकार के दौरान आंदोलन करते थे, तो वो व्यवस्था बदलने की भी बात करते थे। लेकिन अब वो पूरी तरह से गायब है और सरकार की नीतियों पर पूरी तरह से चुप्पी साधे बैठ गए हैं।