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अर्नब गिरफ्तार हुआ तो भाजपाईयों को स्वतंत्र पत्रकारिता याद आ गई

अर्नब के लिए कहा जाता है कि वो भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के रूप में बात करते हैं। और जबसे अर्नब की गिरफ्तारी हुई है भाजपा के सारे कदम यही बता रहे हैं
Logic Taranjeet 5 November 2020
अर्नब गिरफ्तार हुआ तो भाजपाईयों को स्वतंत्र पत्रकारिता याद आ गई

अर्नब गोस्वामी को पुलिस ने हिरासत में लिया, उनपर संगीन आरोप लगे हैं। जिसमें किसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला बनता है। अर्नब गोस्वामी का ये मामला 2018 में बंद हो गया था। लेकिन अब पुलिस ने दोबारा मामला खोला और घर से उठाकर पुलिस ले गई। अर्नब के लिए कहा जाता है कि वो भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता के रूप में बात करते हैं। और जबसे अर्नब की गिरफ्तारी हुई है भाजपा के सारे कदम यही बता रहे हैं कि वो उनकी पार्टी के प्रवक्ता ही थे। जिन्हें उनके दुश्मन दल की सरकार ने गिरफ्तार कर लिया है।

क्यों सरकार कर रही है इतना बचाव?

गृहमंत्री, वित्तमंत्री, रक्षा मंत्री, सूचना एवं प्रसारण मंत्री समेत तमाम मंत्री और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर खुल कर सामने आकर बातें की है। केंद्र सरकार और सत्ताधारी दल की ऐसी आवाज कभी किसी पत्रकार के लिए नहीं देखी गयी थी। इससे पता चलता है अर्णब गोस्वामी का रसूख क्या है। उनके लिए पार्टी में कितना अपनापन है। हां मीडिया के कई समूहों और पत्रकारों ने इसकी निंदा की है और पुलिस के बल के प्रयोग को गलत कहा है जो कि वाजिब है क्योंकि वो उनकी बिरादरी के है। लेकिन भाजपा का इतना स्नेह क्यों है? सबसे बड़ा प्रश्न तो ये है कि क्या ये गिरफ्तारी अर्नब के सवालों की वजह से हुई है? क्या ये पत्रकारिता को दबाने के लिए की गई है? अगर हां तो जो भी लोग इसे लोकतंत्र की हत्या कह रहे हैं वो सभी सही है।

अन्वय-कुमुद नाइक के लिए इंसाफ क्यों नहीं?

कोंकोर्ड डिजाइन के मैनेजिंग डायरेक्टर अन्वय नाइक और कंपनी में डायरेक्टर रहीं उनकी मां कुमुद नाइक ने 5 मई 2018 को आत्महत्या कर ली थी। सुसाइड नोट में जिम्मेदार लोगों में अर्णब गोस्वामी का नाम भी शामिल था और उन पर 83 लाख बकाया रकम नहीं देने के आरोप थे। अन्वय की पत्नी का कहना है कि बगैर जांच के ही रायगढ़ पुलिस ने पिछले साल केस बंद कर दिया ता। मृत्यु की दूसरी बरसी पर पत्नी ने वीडियो जारी कर हत्यारों को अदालत तक पहुंचाने की अपील की थी। तब महाराष्ट्र के गृहमंत्री ने मामले की जांच सीआईडी से कराने की घोषणा की और अर्णब की गिरफ्तारी के बाद अन्वय की पत्नी अक्षता नाइक और बेटी आज्ञा नाइक ने प्रेस कान्फ्रेन्स कर इंसाफ की मांग की है।

अगर पत्रकारिता की बात है तो आवाज इंसाफ के लिए उठनी चाहिए। अन्वय और उनकी मां कुमुद को इंसाफ कैसे मिलेगा, ये आवाज भी तो उठनी चाहिए। रिपब्लिक टीवी को तो इस मामले को खास उठाना चाहिए क्योंकि वो सुशांत सिंह को इंसाफ दिलाने में लगे हैं तो लगे हाथ एक इंसाफ और हो जाए। जबकि, सुशांत के मामले में तो कोई खास सबूत सामने नहीं आए हैं। लेकिन अन्वय-कुमुद डबल सुसाइड केस में सुसाइड लेटर है। अर्णब समेत अन्य दो जिम्मेदार लोगों के नाम हैं। अब क्यों हिन्दुस्तान की पत्रकारिता मौन है? सुशांत के लिए इंसाफ मांगने वाले अन्वय और कुमद के लिए क्यों नहीं इंसाफ मांगते? क्यों यही भारतीय जनता पार्टी इन मां-बेटे के इंसाफ के लिए प्रदर्शन करती?

देशभर में पत्रकारों पर जुल्म होते रहे, चुप्पी क्यों बनी रही?

अर्णब मामले में भाजपा ने विपक्ष की चुप्पी को पत्रकारिता के खिलाफ बताया है। इमरजेंसी के दौर की बातें कर रहे हैं। अगर महाराष्ट्र में घटी यह घटना इमरजेंसी का प्रतीक है तो देश के अन्य भागों में पत्रकारों के साथ जो घटनाएं घटती रही हैं उनके बारे में सत्ताधारी दल की राय क्या है? सीएए एनआरसी का विरोध करने वाले पत्रकार मंजीत महंता और उनके साथ साहित्यकार हीरेन गोहैन और आरटीआई कार्यकर्ता अखिल गोगोई पर देशद्रोह का केस डालना और उन्हें गिरफ्तार करना क्या इमरजेंसी की याद नहीं दिलाता है?

उत्तर प्रदेश में बीते एक साल में 15 पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे किए गए हैं। जनसंदेश टाइम्स के सुरेश बहादुर सिंह और धनंजय सिंह पर ऑफिशियल सेक्रेट एक्ट के उल्लंघन के आरोप में केस दर्ज किए गये। क्वारंटीन सेटर पर बदइंतजामी की खबर छापने के बाद सीतापुर में रवींद्र सक्सेना पर केस दर्ज हुआ। वाराणसी की सुप्रिया शर्मा को इसलिए मुकदमों में फंसाया गया क्योंकि उन्होंने पीएम के गोद लिए गांव डोमरी में भूखे रहने को मजबूर लोगों की खबर दिखाई थी।

सरकारी स्कूल में मिड डे मील में बच्चों को नमक और रोटी खिलाने की खबर छापने पर मिर्जापुर के पत्रकार पंकज जायसवाल पर केस दर्ज किया। जिसे हंगामे की वजह से बाद में हटाया। प्रशांत कनौजिया को मुख्यमंत्री के खिलाफ ट्वीट करने पर अलग-अलग मामलों में दो बार गिरफ्तार किया गया। जिसमें सुप्रीम कोर्ट को बीच में आना पड़ा।

अनलॉफुल प्रिवेन्शन एक्ट यानी यूएपीए के तहत पत्रकारों को जेलों में ठूंस दिया गया। मशरत जाहरा, गौहर गिलानी, द हिन्दू के श्रीनगर संवाददाता पीरजादा आशिक को 5 अगस्त 2020 के बाद जेलों में डाला गया। एडिटर्स गिल्ड ने भी इन गिरफ्तारियों की निंदा की थी और यूएपीए लगाने को गलत ठहराया था। इतना ही नहीं भाजपा के कई मंत्रियों पर पत्रकारों की हत्या करवाने का भी आरोप लगा है, जैसे गौरी लंकेश की हत्या का मामला। पत्रकारों को उनका काम करने से रोकना, उन पर देशद्रोह के मुकदमे लगाना और आपराधिक मामलों मे फर्क होता है।

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A writer, poet, artist, anchor and journalist.

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