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12 हजार रुपये का हो जाता इंतजाम तो बच जाती देश के इस महान नेता की जान

आजादी के बाद देश के राजनीतिक इतिहास पर नजर डालें तो इस दौरान एक नेता का नाम प्रमुखता से उभर कर सामने आता है। यह नाम है प्रख्यात समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया का। आज भी बहुत से नेता लोहिया के आदर्शों पर खुद के चलने की दुहाई देते हैं, मगर क्या आपको मालूम है कि लोहिया सिद्धांत के इतने ज्यादा पक्के थे कि उन्होंने अपने इलाज के लिए जरूरी 12 हजार रुपये का इंतजाम खुद से करने की कोशिश की थी और बाकी किसी से भी यह पैसे लेने से मना कर दिया था। पैसों का इंतजाम नहीं होने की वजह से लोहिया की जान भी चली गई थी। यदि 12 हजार रुपये का इंतजाम हो गया होता तो देश अपने इस महान समाजवादी नेता को उस वक्त नहीं खोता। राम मनोहर लोहिया की जान चली गई, लेकिन उन्होंने अपने उसूलों के साथ समझौता नहीं किया।

अड़े रहे अपने उसूलों पर

वर्ष 1967 में राम मनोहर लोहिया की जान उस इंफेक्शन की वजह से गई थी जो कि एक ऑपरेशन के बाद फैली थी। उन्हें एक अच्छे अस्पताल में इलाज कराना था। इसके लिए उन्हें विदेश जाना था। विदेशी अस्पताल में इलाज के लिए उन्हें 12 हजार रुपये की जरूरत थी। लोहिया का कद इतना बड़ा था कि वे यदि सिर्फ एक इशारा करते तो 12 हजार रुपये क्या उससे भी ज्यादा रुपए उनके लिए पहुंच जाते, लेकिन लोहिया ने ऐसा नहीं किया। लोहिया अपने उसूलों और अपने सिद्धांतों पर डटे रहे। इस तरह से सिर्फ 12 हजार रुपये के लिए इस देश ने अपने इस महान नेता को खो दिया।

आसान तो था, लेकिन…

राम मनोहर लोहिया दरअसल बढ़े हुए प्रोस्टेट ग्लैंड की बीमारी से पीड़ित थे। वे एक सांसद थे। कई राज्यों में उनकी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी की सरकार भी थी। प्रोस्टेट ग्लैंड का ऑपरेशन एक अच्छे विदेशी अस्पताल में कराने के लिए 12 हजार रुपये की उन्हें जरूरत पड़ी थी। 12 हजार रुपये को आसानी से इकट्ठा किया जा सकता था, मगर राम मनोहर लोहिया ने अपने कार्यकर्ताओं को सख्त हिदायत दे रखी थी कि पैसों का इंतजाम केवल उन्हीं राज्यों से किया जाए, जहां उनकी पार्टी की सरकार नहीं है। उस वक्त लोकसभा में भी पार्टी के करीब दो दर्जन सांसद थे। पैसों का इंतजाम ना हो पाने की वजह से उनकी जान चली गई थी।

जाना था जर्मनी

पैसों का इंतजाम राम मनोहर लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी के एक मजदूर नेता से करने के लिए कहा था। ये मुंबई के नेता थे। लोहिया ने उनसे मजदूरों से पैसे इकट्ठा करने के लिए कहा था। इस नेता ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की, लेकिन समय रहते हुए 12 हजार रुपये जमा नहीं कर पाए। लोहिया जर्मनी जाना चाहते थे। वहां के एक अस्पताल में वे अपना ऑपरेशन करवाना चाह रहे थे। जर्मनी की एक यूनिवर्सिटी की ओर से उनके आने-जाने और वहां ठहरने की व्यवस्था कर दी गई थी। वहां लोहिया को एक भाषण भी देना था।

भारी पड़ी लापरवाही

इधर लोहिया के प्रॉस्टेट ग्लैंड की बीमारी बढ़ती चली गई। एक दिन गंभीर स्थिति होने पर उन्हें वेलिंगटन नर्सिंग होम में दिल्ली में भर्ती कराया गया। ऑपरेशन तो हो गया, लेकिन अस्पताल में अच्छा इंतजाम ना होने के कारण उन्हें इंफेक्शन हो गया। आज के वक्त में यह ऑपरेशन बहुत ही आसान हो गया है। इस इंफेक्शन ने आखिरकार 1967 में 12 अक्टूबर को लोहिया की जान ले ली। जिस विलिंगटन नर्सिंग होम में लोहिया ने दुनिया को अलविदा कहा, वर्तमान में वही राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है।

अफसोस तो होता ही है

जिस लापरवाही की वजह से लोहिया की जान गई थी, उसे लेकर काफी समय तक विवाद चलता रहा था। हर कोई इस बात को मान रहा था कि यदि विदेश के अस्पताल में लोहिया का इलाज हुआ होता तो उनकी जान जरूर बच जाती। इस तरह से देश को अपना एक महान नेता खोना पड़ा था। मौत के वक्त राम मनोहर लोहिया की उम्र केवल 57 साल की थी। आज नेताओं को छोटी सी बीमारी भी होती है तो वे इलाज के लिए विदेश चले जाते हैं। चुटकियों में पैसों का इंतजाम हो जाता है, लेकिन राम मनोहर लोहिया की जान केवल 12 हजार रुपये का इंतजाम नहीं हो पाने की वजह चली गयी थी, यह सुनकर बड़ा अफसोस होता है।