अगले साल की शुरुआत में दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 होने वाले हैं, इन चुनाव की गर्मी अभी से दिख रही है। अरविंद केजरीवाल और भारतीय जनता पार्टी के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी एक दूसरे के सामने आकर खड़े हो गए हैं। अरविंद केजरीवाल का बयान लगातार हलचल मचा रहा है तो मनोज तिवारी लगातार हमला कर रहे हैं। कुछ दिन पहले अरविंद केजरीवाल ने मनोज तिवारी के उस बयान पर अपनी राय रखी थी, जिसमें वो कहते थे कि दिल्ली में भी एनआरसी लागू होनी चाहिए। जिसके जवाब में अरविंद केजरीवाल का बयान आया था, उन्होंने कहा था कि अगर ऐसा होता है तो सबसे पहले मनोज तिवारी ही दिल्ली से बाहर जाएंगे। इस पर तुरंत जवाबी हमला करते हुए मनोज तिवारी ने कहा कि अरविंद केजरीवाल पूर्वांचल के लोग और बाकी राज्यों से आए लोगों को बाहरी मानते हैं। वहीं बीजेपी के ही पूर्वांचल नेता रविकिशन ने भी मौका देखते हुए केजरीवाल पर अपने बयानों के दो-चार तीर छोड़ दिए थे।
राजनीति शुरु हुई दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए
भाजपा के कई कार्यकर्ताओं ने मुख्यमंत्री आवास के सामने प्रदर्शन भी किया। लेकिन इसे सिरे से खारिज करते हुए अरविंद केजरीवाल का बयान दोबारा सामने आया। इस बार फिर से अरविंद केजरीवाल ने बाहरी जैसा एक बयान दिया है, जिसे मनोज तिवारी भुनाने में लग गए हैं। केजरीवाल लगातार दिल्ली वाले, हमारी दिल्ली करने की कोशिश कर रहे हैं और दिल्ली वालों की भावनाओं को पकड़ रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे एक वक्त पर महाराष्ट्र में बाल ठाकरे किया करते थे। उन्होंने मराठों की इज्जत और महाराष्ट्र पर मराठो का हक होने की कई बातें की थी, वैसे ही अरविंद केजरीवाल भी दिल्ली वालों के साथ कर रहे हैं। लेकिन अरविंद केजरीवाल बाल ठाकरे नहीं है, ये बात उन्हें ध्यान रखनी चाहिए। बाल ठाकरे की एक बात पर उनके पीछे-पीछे लोग चल देते थे। भले ही अरविंद केजरीवाल के ये बयान के पीछे की मंशा कुछ और हो लेकिन इसका नुकसान खुद आम आदमी पार्टी को भी हो सकता है।
अरविंद केजरीवाल बाल ठाकरे नहीं है, क्योंकि बाल ठाकरे महाराष्ट्र के बाहर से नहीं थे, वो कट्टर मराठा थे, जो जिंदगी भर महाराष्ट्र के लिए ही जीएं। लेकिन अरविंद केजरीवाल हरियाणा में जन्में, उत्तर प्रदेश में रहते हैं, दिल्ली के मुख्यमंत्री है और वाराणसी से भी चुनाव लड़ चुके हैं। दिल्ली वालों को दिल्ली के लिए प्यार है, लेकिन उनका दिल भी बहुत बड़ा है, उन्होंने आप जैसे गैर दिल्ली वाले को भी मुख्यमंत्री बनाया था। इतना ही नहीं दिल्ली में 4 मुख्यमंत्री दिल्ली के बाहर से रहे हैं।
कैसे शुरु हुआ विवाद
दरअसल, ये पूरा मामला तब आग पकड़ने लगा जब अरविंद केजरीवाल ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि दिल्ली में बाहर से भी लोग इलाज करवाने के लिए आते हैं, जिसकी वजह से अस्पतालों में भीड़ अधिक होती है। अस्पतालों में लाइनें लंबी हैं, इसके पीछे की वजह अरविंद केजरीवाल ने बताई कि बाहर से लोग भी दिल्ली में इलाज कराने आ रहे हैं। हमने एक सीमावर्ती अस्पताल का सर्वे कराया तो 80 फीसदी मरीज वहां बाहर के थे। अगर सिर्फ दिल्ली के लोगों का इलाज करना हो तो जितने अस्पताल हैं वो बहुत हैं। लंबी लाइनें इसलिए हैं, क्योंकि जैसी व्यवस्थाएं अब दिल्ली के अस्पतालों में हैं, वो देश में और कहीं भी नहीं हैं। यहां तक कि बिहार से एक आदमी 500 रुपए का टिकट लेता है, दिल्ली आता है और अस्पताल में 5 लाख रुपए का ऑपरेशन मुफ्त में कराकर वापस चला जाता है। इससे खुशी होती है कि अपने ही देश के लोग हैं, बढ़िया है सबका इलाज होना चाहिए, लेकिन दिल्ली की भी अपनी क्षमता है। दिल्ली पूरे देश का इलाज कैसे करेगी, तो जरूरत है कि व्यवस्था सुधरे।
अरविंद केजरीवाल बाल ठाकरे नहीं हैं
अरविंद केजरीवाल देश को बदलने की बात करते हैं, और खुद दिल्लीवालों के अंदर पूर्वांचल और बाहरी राज्यों से आए लोगों के खिलाफ जहर खोल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल बाल ठाकरे नहीं हैं, जो आमची मुंबई करेंगे और जनता उनके साथ खड़ी हो जाएगी। दिल्ली में 40 फीसदी लोग ही बाहर के हैं। इनमें से बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनकी वजह से दिल्ली के लोगों की रोजी-रोटी चलती है। अब लक्ष्मी नगर और मुखर्जी नगर में छात्रों को ही ले लीजिए, अगर वहां पर स्टूडेंट न रहें तो फिर क्या होगा। इन इलाकों में लोगों की रोजी रोटी खत्म हो जाएगी। अरविंद केजरीवाल बाल ठाकरे नहीं है, क्योंकि उन्होंने विरोध को हवा दी थी, जो राज्य में धीरे-धीरे सुलग रहा था, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो खुद ही आग लगाने का काम कर रहे हैं। दिल्ली में अभी ऐसा कोई विरोध नहीं है कि बाहर के लोग उनकी नौकरी खा रहे हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल का बयान इस आग को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। ये पूरी तरह से दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 की तैयारी के रूप में दिख रहा है।
दबी-दबी आवाज में केजरीवाल की रणनीति
अरविंद केजरीवाल का बयान ये साफ कर देता है कि वो राजनीति के लिहाज से दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 से प्रेरित लगता है। यही वजह है कि वो हर मौके पर ये जरूर जताते हैं कि क्या दिल्ली वालों का है और क्या बाहरी लोगों का नहीं है। भले ही अरविंद केजरीवाल ये कहते हैं कि पूरे देश के लोगों का इलाज जरूरी है, उनका खुश होना जरूरी है, लेकिन अगले ही पल वो ये भी कहते हैं कि दिल्ली की अपनी जरूरतें हैं। वो कहते हैं कि अगर बाहर के लोग दिल्ली में इलाज ना कराएं तो जितने अस्पताल हैं, वो काफी हैं। यानी वो ये दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने दिल्ली के लिए बहुत कुछ किया है। यानी उनका कहना है कि बाकी राज्यों में अच्छी सुविधाएं नहीं दी जा रही हैं, इसीलिए लोग दिल्ली आ रहे हैं और दिल्लीवालों के लोगों को अस्पतालों में लाइन लगानी पड़ रही है।
कॉलेजों में 85 फीसदी कोटा दिल्ली के लिए
केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के कॉलेजों में 85 फीसदी सीटें सिर्फ दिल्ली के स्टूडेंट्स के लिए आरक्षित करने की बात की। यानी की अगर बाहर से कोई छात्र आता है तो उसके पास सिर्फ 15 फीसदी का स्पेस होगा, जिसके लिए उसे लड़ना होगा। आपको बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से कुल 63 कॉलेज अफिलिएटेड हैं, जिनमें से 28 को पूरी तरह से या आंशिक रूप से दिल्ली सरकार फंड देती है। केजरीवाल सरकार का ये कदम भी यही दिखाता है कि वो दिल्लीवालों की ही सोचते हैं, बाकी देश के लोगों के हितों के बारे में वह नहीं सोच रहे हैं।
दिल्ली में सबसे ज्यादा बाहरी लोग
अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाहर के लोगों को बाहरी मान रहे हैं तो ऐसे तो दिल्ली की करीब 40 फीसदी आबादी को निकलना पड़ेगा। इसमें वो परिवार भी शामिल हैं, जो अब दिल्ली में रहने लगे हैं, वो लोग भी होंगे जो रोजी रोटी कमाने के लिए यहां पर आए हैं और वो बच्चे भी शामिल हैं, जो पढ़ाई के लिए दिल्ली आए हैं। लेकिन केजरीवाल जी इनमें से बहुत से लोग हो सकते हैं जो आपके पक्ष में वोट करते होंगे।
यूपी-बिहार वो राज्य हैं, जहां आबादी काफी अधिक है और रोजगार के मौके बेहद कम है। इसी वजह से इन राज्यों से लोग दूसरे राज्यों की ओर काम की तलाश में निकलते हैं। कई लोग तो दूसरे राज्यों में अच्छा काम देखते हुए वहीं पर जा कर बस भी जाते हैं। यूपी-बिहार के जो लोग काफी समय से दिल्ली में हैं और यहां के वोटर तक भी बन गए हैं और वो भी अरविंद केजरीवाल के वोटर हैं, लेकिन केजरीवाल उन्हें नाराज करने वाले काम कर रहे हैं। दिल्ली में लगभग 40 लाख पूर्वांचल के लोग रहते हैं, जो दिल्ली में वोट करते हैं। दिल्ली की 70 में से 25 सीटें ऐसी हैं, जहां पर पूर्वांचल के लोगों का दबदबा है। यानी की जिस तरफ इन लोगों ने वोट डालें वहां पर उसी पार्टी की जीत तय है। पूर्वांचल के लोगों के खिलाफ बयान देना केजरीवाल की 25 सीटों पर खतरा पैदा कर सकता है।
इस चुनाव क्या केजरीवाल का जादू फीका रहेगा?
अगर बात करें 2015 विधानसभा चुनाव की तो अरविंद केजरीवाल की राजनीति और काम के बारे में लोगों को समझ नहीं थी, तो विकल्प के रूप में लोगों ने अपना पूरा समर्थन किया और 70 में से 67 सीटों पर जीत हासिल की। लेकिन अब दिल्ली विधानसभा चुनाव 2020 के लिए जनता केजरीवाल सरकार के 5 सालों के काम पर चुनेगी, मोदी लहर भी पहले की तुलना में बहुत मजबूत हो गई है। ऐसे में अरविंद केजरीवाल का बयान उन्हीं के खिलाफ इस्तेमाल करने का पूरा काम भारतीय जनता पार्टी करेगी।