मालवा का पठार। इस पर बना है एक ऐतिहासिक धरोहर। फैला है ये 20 वर्ग किमी में। कनगोरे बने हैं यहां। 37 किमी के इलाके में। प्रवेश करने के द्वारा इनमें 12 हैं। पैवेलियन बने हैं। हाॅल भी हैं। बेहद खूबसूरत खंभों वाले। आलीशान महल बने हैं। बिल्कुल जहाज महल की तरह।
चारों ओर इसके पानी था। हिंडोला महल भी है। सुंदरता इसकी देखती ही बनती है। दीवारें इसकी कमाल की हैं। तिरछी हैं ये। अंदर का नजारा भी शानदार है। देखकर ही लगता है कि कभी यह आबाद रहा होगा। मांडू है ये। कल्पनाओं की। मिथकों की। इसमें छिपी है प्यार की कहानी। छिपी है इसमें पराजय की कहानी।
एक कहानी है इसके बारे में। बात है 300 से 400 साल पुरानी। मियान बाईजिद बाज बहादुर खान मालवा के आखिर सुल्तान थे। शिकार पर गये थे एक दिन। संगीत बहुत पसंद था इन्हें। सुंदरता भी मन मोह लेती थी इनका। एक धुन सुनने को मिली उन्हें जंगल में। उन्होंने देखा। उनसे मिले। फिर तो जिंदगी ही बदल गई उनकी।
नाम था इनका रूपमती। एक गड़ेड़िये की बेटी थीं वो। सुर इनका दिल को छू लेने वाला था। नजर पड़ गई इन पर बाज बहादुर की। नजरें फिर हटीं ही नहीं। सुल्तान थे वो। काम भी किया उसी तरह से। ब्याह रचा लिया उन्होंने रूपमती से। बाज बहादुर व रूपमती शादी के बंधन में बंध गए। बेगम पर जान छिड़कते थे सुल्तान। बनावा दिये उनके लिए उन्होंने कई महल।
किले पर बना है रानी रूपमती का पैवेलियन। यह सबसे ऊंचाई पर है। करीब साढ़े तीन सौ मीटर नर्मदा घाटी है। रूपमती यहां से इसे निहारती थीं। अद्भुत नजारा यहां से दिखता है चारों ओर का। यहां आना चाहिए आपको एक बार। एहसास होगा उस प्रेम कहानी का। आप भी कहेंगे कि इसके लिए इससे बेहतर जगह और कौन सी होती।
ये पैवेलियन बड़ा महत्वपूर्ण था दोनों की प्रेम कहानी में। अहम भूमिका निभाई थी इसने। शादी तो की थी रानी रूपमती ने सुल्तान से। मगर एक शर्त पर। शर्त थी कि नहीं बदलेंगी शादी के बाद वो अपना धर्म। एक जगह की जरूरत थी उन्हें महल में। ऐसी जगह, जहां से हर सुबह माता नर्मदा की पूजा करने उनके लिए आसान हो। बाज बहादुर ने उनकी इच्छा का सम्मान किया। यह पैवेलियन ही उनके लिए बनवा दिया।
बाज बहादुर का भी महल बना हुआ था। ठीक सामने था यह रानी रूपमती के इस पैवेलियन के। इसका निर्माण हुआ था वर्ष 1508 में। बनवाया था इसे मालवा के इससे पहले के सुल्तान ने। बाज बहादुर ने तो इसकी सूरत ही बदल डाली। इसे अपना लिया उन्होंने अपना महल। मोहिल और राजपूत कला। दोनों का कह सकते हैं इस महल को शानदार नमूना। एक मनमोहन तालाब भी था यहां बना हुआ। इस महल के था यह बीचोबीच।
उत्तरी बरामदा इसका लाजवाब था। जंगल दिखते थे यहां से दूर-दूर तक। खेत नजर आते थे। बगीचे दिखा करते थे। रानी रूपमती का पैवेलियन भी था पास में। दक्षिण दिशा में था ये इसके। दोनों की प्रेम कहानी यहीं तो खिली थी। परवान भी चढ़ती गई थी।
प्रेम कहानी थीं तो बाधा आखिर कैसे नहीं आती? समय आ गया जंग। मांडू जंग की ओर अब बढ़ने लगा। मुगल बादशाह अकबर था तब। बढ़ानी थी उसे अपनी सल्तनत। लगातार वह आगे बढ़ता ही जा रहा था। मालवा पर भी वह अधिकार जमाना चाह रहा था।
मांडू से निकलना था बाज बहादुर को। मिलने पहुंचे वे फिर रानी रूपमती से। नहीं मालूम थी दोनों को ये बात। नहीं जानते थे दोनों कि आखिरी बार मिल रहे हैं। बाज बहादुर भी नहीं जानते थे कि क्या होने वाला था उनके साथ।
मुगल फौज ने उन पर जोरदार हमला बोला। इंसान तो उन्हें समझा ही नहीं। गाजर-मूली समझ लिया था उन्हें। बाज बहादुर चले गये जंग के लिए। इधर रूपमती उम्मीद लगाये बैठी थी। आंखों में झलक रहा था उनके इंतजार।
यह वक्त था 1561 के मार्च का। मांडू के किले में खूब कत्लेआम हुआ। आदम खान अकबल का सिपहसलार था। हरा दिया था उसने बाज बहादुर की सेना को। रानी रूपमती उसे चाहिए थी। पहुंच गया इसके लिए वह मांडू।
रूपमती के पास तो बस इज्जत ही बची थी। जान से भी प्यारी। बचा लिया उसने इसे। दम तोड़ा, लेकिन आखिरी वक्त तक मांडू की रानी ही रहीं। अमर हो गई बाज बहादुर व रूपमती की प्रेम कहानी। मांडू का किला इसका गवाह है।