आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी सत्ता में है। इससे पहले भी भाजपा को मौका मिला था। अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने थे। भारतीय जनता पार्टी मूल रूप से जनसंघ से ही निकली है। जनसंघ एक तरीके से परोक्ष रूप से RSS का ही संगठन रहा है। संघ के ही लोग इसमें पहुंचे थे।
बलराज मधोक बड़े ही कट्टरवादी नेता
इसमें कई बड़े-बड़े नेता हुए हैं। इनमें पंडित दीनदयाल उपाध्याय थे। लालकृष्ण आडवाणी हैं। नरेंद्र मोदी भी हैं। अटल बिहारी वाजपेयी भी हुए थे। एक और बड़ा नेता हुआ था। नाम था इनका बलराज मधोक। ये कट्टर हिंदुत्ववादी नेता थे। इतने कट्टरवादी थे कि अपनी ही पार्टी में इनका टकराव होने लगा था।
आरएसएस के माधव सदाशिव गोलवलकर से भी उलझ गए
हर किसी से लड़ भी गए थे। लालकृष्ण आडवाणी से ये भिड़े थे। अटल बिहारी वाजपेयी से भी भिड़ गए थे। आरएसएस के सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकर से भी उलझ गए थे। झुकना तो इन्होंने सीखा ही नहीं था। आलोचना तुरंत कर देते थे। तीखी जुबान बोलते थे। जो मन में आता था, कहने में हिचकते नहीं थे।
किनारा करने पर तुली हुई थी पार्टी
पाक अधिकृत कश्मीर में इनका जन्म हुआ था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। जनसंघ ने पहले आम चुनाव में भाग लिया था। इसमें जनसंघ का घोषणा पत्र भी था। इसे तैयार करने का काम बलराज मधोक ने ही किया था। भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी वे बने थे। यह 1966 में हुआ था।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय तब पार्टी के महासचिव थे। बलराज मधोक हार्डकोर हिंदुत्ववादी थे। पार्टी को लगता था कि यह सही नहीं है। यही वजह रही कि पार्टी उन्हें किनारा करने पर तुली हुई थी।
जनसंघ को मिली थी उल्लेखनीय जीत
चौथी लोकसभा का चुनाव 1967 में हुआ था। जनसंघ 35 सीटें जीतने में कामयाब रहा था। जनसंघ फैलने लगा था। दिल्ली की 7 में से 6 सीटें इसके खाते में गई थीं। बलराज मधोक दूसरी बार लोकसभा में पहुंच गए थे। उस वक्त वाजपेयी के साथ उनका रिश्ता सही नहीं चल रहा था। पंडित नेहरू की वे खूब आलोचना कर देते थे।
नेहरू की आलोचना के मुद्दे पर
बलराज मधोक ने चीन के मुद्दे पर संसद में नेहरू को खूब घेरा था। कहा जाता है कि वाजपेयी ने बलराज मधोक को इसके लिए मना किया था। उन्होंने कहा था कि नेहरू बहुत ही लोकप्रिय हैं। उनकी लोकप्रियता को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होगा। इतने कठोर शब्दों का इस्तेमाल उनके लिए करना सही नहीं है। हो सकता है कि जनता गुस्सा होकर उन्हें लोकसभा में पहुंचने ही न दें।
बढ़ता चला गया वाजपेयी के साथ झगड़ा
मधोक इससे कभी भी सहमत नहीं थे। वे अपनी बात पर कायम थे। आचार्य जेबी कृपलानी तब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में थे। वे भी बलराज मधोक का समर्थन करते थे। वाजपेयी के साथ मधोक का झगड़ा बढ़ता जा रहा था। नागपुर में भी इस मुद्दे पर चर्चा हुई। फिर भी वाजपेयी को ही संघ का साथ मिला। बलराज मधोक का जनसंघ अध्यक्ष के तौर पर कार्यकाल पूरा हो गया था। इन्हें दोबारा अध्यक्ष नहीं बनाया गया।
और बढ़ी दोनों के बीच की तकरार
वाजपेयी अध्यक्ष बन गए। ऐसे में दोनों के बीच तकरार और बढ़ने लगी। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मौत की वजह वे ट्रेन दुर्घटना को नहीं मान रहे थे। नानाजी देशमुख और वाजपेयी के लिए भी उन्होंने कठोर शब्दों का इस्तेमाल कर दिया था। ऐसे में वाजपेयी बड़े नाराज हो गए थे। उन्होंने तो कह दिया था कि जनसंघ के अंदर ही एक कांग्रेसी पैदा हो गया है।
नेहरू और इंदिरा के मुद्दे पर
बलराज मधोक संगठन कांग्रेस के साथ जाना चाहते थे। वाजपेयी ने मना कर दिया था। वर्ष 1971 में जनसंघ की बुरी तरीके से हार हुई थी। मधोक ने कह दिया था कि नेहरू के प्रति वाजपेयी का रवैया बहुत ही सॉफ्ट था। इंदिरा गांधी के प्रति भी ऐसा ही है। आडवाणी संघ के अध्यक्ष बने, तो मधोक के साथ उनका भी रिश्ता और खराब होता गया। जबकि बलराज मधोक ने ही आडवाणी को राजनीतिक सिखाई थी।
पार्टी से कर दिए गए निष्कासित
बलराज मधोक पार्टी के लिए अब खतरा बन रहे थे। इसलिए मधोक को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। मधोक चौधरी चरण सिंह के लोकदल से भी जुड़े थे। हालांकि, मुख्यधारा की राजनीति से वे हटते चले गए। वर्ष 2002 में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी वे बनना चाह रहे थे। संघ ने उनकी एक नहीं सुनी।
नरेंद्र मोदी रहे हैं बड़े प्रशंसक
बलराज मधोक ने वर्ष 2016 में 2 मई को अंतिम सांस ली। नरेंद्र मोदी उनके बहुत बड़े प्रशंसक रहे हैं। उनके अंतिम दर्शन के लिए वे पहुंचे हुए थे। बलराज मधोक को उन्होंने सिर्फ देश के बारे में सोचने वाला नेता बताया था।