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डाकुओं ने बचा लिया बटेश्वर के इन 200 मंदिरों को, अब सब आते हैं यहां

चंबल नदी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच बहती है। इसी नदी के किनारे दोनों राज्यों की सीमा पर न जाने कितना घाटियां बनी हुई हैं। यह इलाका बहुत ही विस्तृत क्षेत्र में फैला है। मिट्टी यहां की कमजोर है। यही कारण है कि कटाव और धंसने की वजह से इन घाटियों का निर्माण हुआ है। घाटियां गजब की हैं। एकदम भूल-भुलैया सी। यह बीहड़ इलाका है। तभी तो चंबल के डकैत इसे बहुत पसंद करते थे। पुलिस तक को डर लगता था यहां तक पहुंचने में। इलाका बीहड़ वालों के लिए रहा है। डकैत जो यहां रहते थे, उनके लिए नहीं। सचेत तो ये हमेशा रहते थे। हथियार भी पकड़े रहते थे। इनका राज चला एक तरह से यहां। इक्कीसवी सदी के आरंभ तक।

छिपने की जगह

फिर कानून ने अपना शिकंजा कसना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे इन डकैतों की जमीन खिसकनी शुरू हो गई। इन डकैतों में से एक था निर्भय सिंह गुर्जर। अंत में बचे खूंखार डाकुओं में से एक था ये। इसका प्रभाव मुरैना और नजदीक के इलाकों में अधिक था। एक खास जगह पर यह छिपता था। यह एक प्राचीन मंदिर का खंडहर था।

वे 200 मंदिर

चंबल घाटी में ढेर सारे मंदिर भी हैं। ये बाबा बटेश्वर के मंदिर हैं। भूतेश्वर से यह नाम आया है। मतलब है संहार करने वाला। यह बहुत ही बड़ा मंदिर है। बलुआ पत्थर से मंदिर बने हुए हैं। मंदिरों की संख्या 200 के लगभग है। इतने मंदिर एक ही जगह पर भारत में और कहीं बने नहीं मिलते। सबसे पहला मंदिर लगभग 1300 वर्ष पहले यहां बना था। बनाया था इसे गुर्जर प्रतिहार वंश के राजाओं ने। फिर बाकी मंदिर करीब 200 वर्षों में बनते चले गये।

इन्होंने करया था निर्माण

गुजरात से लेकर उत्तर बंगाल तक गुर्जर प्रतिहार पहुंच गये थे। ग्वालियर के करीब बटेश्वर मंदिर का निर्माण इन्होंने ही करवाया था। एक भयानक भूकंप आया था 13वीं शताब्दी में। बटेश्वर के ये मंदिर खंडहर में तब तब्दील हो गये थे। ये खंडहर बड़े डरावने बन गये थे।

आने में लगता था डर

सबको लगता था कि यहां आत्माएं वास करती हैं। कोई यहां आना नहीं चाहता था। केवल डकैत बेखौफ आते थे। आमजन ही नहीं, सरकार के लोग भी आने से यहां कतराते थे। निर्भर गुर्जर डाकू जरूर था, मगर भगवान का भक्त भी था। उसके साथी भी ऐसे ही थे। आस्था थी उनकी भगवान शिव में। इन मंदिरों में। बचा लिया इन मंदिरों को इनकी आस्था ने ही।

इनकी हैं मूर्तियां

मंदिरों को इन्होंने सुरक्षित रखने का काम किया। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की यहां मूर्तियां हैं। इनके अलावा बाकी देवी-देवताओं की भी मूर्तियां हैं। स्मंगलरों से डकैतों ने ही तो इन मूर्तियों को बचा लिया। बटेश्वर के मंदिर के एक कुंड के चारों तरफ बने हैं। भगवान विष्णु और शिव के अलावा मां शक्ति के अधिकतर मंदिर हैं। कई मंदिर तो बहुत छोटे आकार वाले हैं। पांच से 50 फुट तक इनकी ऊंचाई है।

मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए

मंदिर का जीर्णोद्धार खतरे से भरा था। किसी तरह से नवंबर, 2005 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लोग मंदिर पहुंचे। डाकुओं के सरदार से मिले। निर्भय सिंह को उन्होंने एक भरोसा दिलाया। कहा कि वे सिर्फ मंदिरों की मरम्मत करेंगे। उन्हें और उनके साथियों को कुछ नहीं होगा।

मान गया निर्भय

निर्भय मान भी गया। शायद उसे भी मालूम था कि उसका समय अब पूरा हो चला है। थोड़ा अपने पापों का प्रायश्चित कर लिया जाए। पत्थर ही पत्थर फैले थे। कठिन था मंदिरों को फिर से बनाना। पत्थरों से पट्टिया पहचानी गईं। स्तंभ पहचाने गये। मूर्तियां पहचानी गईं। मंदिरों के हिसाब से इन्हें जोड़ा जाने लगा। मंदिरों का निर्माण होने लगा। मंदिर धीरे-धीरे फिर से पुराने स्वरूप में लौटने लगे।

वो बीड़ी वाली घटना

सुपरिटेंडिंग आर्किटेक्ट पद्मश्री केके मोहम्मद यहां पहुंचे हुए थे। निर्भय सिंह यहां बीड़ी पी रहा था। उन्होंने उसे पहचाना नहीं और टोक दिया। मामला बिगड़ने वाला था। फिर उन्होंने निर्भय सिंह को बताया कि भगवान ने उन्हें एक उद्देश्य से भेजा है। उसने उद्देश्य पूछा तो इन्होंने बताया कि उनका नाम निर्भय सिंह गुर्जर है। उनका नाता इस तरह से गुर्जर प्रतिहार वंश से रहा है। मंदिर की रक्षा करने के लिए उन्हें भगवान ने भेजा है। निर्भय इससे बहुत खुश हो गया।

आकार लेने लगे मंदिर

मंदिर धीरे-धीरे आकार लेने लगे। लगभग 80 मंदिर आठ वर्षों के दौरान फिर से तैयार हो गये। हालांकि, डकैत एक-एक करके मारे जाते रहे। एक दिन आया, जब निर्भय सिंह गुर्जर भी गोलियों से भून दिया गया था। बटेश्वर के मंदिर अब नया रूप ले चुके है।

अब सब आते हैं

जीर्णोद्धार का काम आज भी अनवरत जारी है। लोग यहां अब आते भी हैं। यह पर्यटन का केंद्र बन चुका है। अब कोई भूत-प्रेत की बात नहीं होती। यहां आने में  किसी को कोई डर भी नहीं है।