बिहार विधानसभा चुनाव प्रगति में है। दूसरे चरण के मतदान में कुछ ही दिनों का समय बचा हुआ है। सभी पार्टियां चुनाव में जोर-आजमाइश करने में जुटी हुई है। ऐसे में बिहार के पहले विधानसभा चुनाव की याद आ जाती है। यह चुनाव 1952 में हुआ था।
आजादी के बाद पहली बार
आजादी के बाद पहली बार यह चुनाव हुआ था। सुरसंड विधानसभा क्षेत्र तब बहुत मायने रखता था। यहां से रामचरित्र यादव जीते थे। उनकी यह जीत बहुत ही खास रही थी। आज तक इस जीत को याद किया जाता है। वोटों का अंतर बहुत ही कम था। इसलिए इस जीत को भुला पाना बहुत मुश्किल है।
निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर
केवल 2 मतों से रामचरित्र यादव को जीत मिली थी। उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा था। कहा बार यहां से वे जीते। एक बार तो निर्दलीय उन्होंने चुनाव लड़ा था। इसमें उन्हें जीत नसीब हुई थी। फिर 3 बार कांग्रेस से उन्हें टिकट मिला था। इस तरह से एक बार वे निर्दलीय जीते। तीन बार उन्हें कांग्रेस के टिकट पर जीत मिल गई।
कांग्रेस के इस उम्मीदवार को हराया
1952 के चुनाव की बात करते हैं। सुरसंड विधानसभा क्षेत्र से 6 उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे। इस दौरान रामचरित्र यादव निर्दलीय खड़े हो गए थे। कालीचरण को कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार बनाया था। कांग्रेस ने जमकर चुनाव प्रचार भी किया था। कांग्रेस के पक्ष में हवा भी थी। कांटे की टक्कर सुरसंड में हुई थी।
जब आये नतीजे
नतीजा भी बड़ा ही रोचक रहा था। कालीचरण हार गए थे। केवल 2 वोटों के अंतर से वे हारे थे। निर्दलीय उम्मीदवार रामचरित्र बाबू जीत गए थे। केवल 2 मतों से उन्हें यह जीत मिली थी। वोटों की बात करें तो उन्हें 7 हजार 182 वोट मिले थे। कालीचरण को 7180 मत हासिल हुए थे। इस तरह से हार-जीत में सिर्फ 2 मतों का ही अंतर रहा था।
मतदान प्रतिशत
सुरसंड में तब 54 हजार 456 मतदाता हुआ करते थे। फिर भी चुनाव में लगभग 42 फ़ीसदी ने ही वोट डाला। वोट डालने वालों की संख्या 23 हजार 315 थी। पहला चुनाव तो रामचरित्र बाबू ने निर्दलीय लड़ा था।
5 साल के बाद
5 साल बाद फिर चुनाव हुआ। 1957 का यह चुनाव था। इस चुनाव में वे एक पार्टी का हिस्सा बन गए। इस बार प्रजातांत्रिक पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बना लिया। कांग्रेस ने इस चुनाव में महेश्वर सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया था। रामचरित्र बाबू ने सोचा था कि फिर से जीत जाएंगे। कोशिश भी उन्होंने खूब की थी। हालांकि इस बार दांव उल्टा पड़ गया। महेश्वर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा था।
1962 के विधानसभा चुनाव में
फिर आया 1962 का विधानसभा चुनाव। यह चुनाव भी बड़ा ही महत्वपूर्ण था। रामचरित्र बाबू ने फिर कोशिश की। फिर से चुनाव लड़ने के लिए खड़े हो गए। इस बार भी उन्हें जीत नहीं मिल सकी। रामचरित्र बाबू दूसरे नंबर पर रहे थे।
1967 के विधानसभा चुनाव में
5 साल और बीत गए। अब आया 1967 का बिहार विधानसभा चुनाव। इस बार रामचरित्र बाबू ने चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया। चुनाव से उन्होंने दूरी बनाकर रखी। ऐसा नहीं है कि उन्होंने राजनीति छोड़ दी थी। राजनीति से जुड़े रहे थे। केवल चुनाव नहीं लड़ा था।
1969 के विधानसभा चुनाव में
इसके 2 साल बाद ही 1969 में विधानसभा चुनाव हो गए। इस चुनाव में रामचरित्र बाबू खड़े हो गए। उन्हें जीत मिल गई। इस दौरान इन्होंने प्रतिभा देवी को हराया था। वे पहले कांग्रेस की विधायक रही थीं। प्रतिभा देवी को 1962 में जीत मिली थी। यही नहीं, 1967 में भी वे जीती थीं। इस बार रामचरित्र बाबू ने उन्हें हरा दिया।
1972 के विधानसभा चुनाव में
एक बार फिर से 1972 में बिहार विधानसभा चुनाव हुए। इस बार फिर रामचरित्र बाबू चुनाव में खड़े हुए। कांग्रेस ने ही उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में भी रामचरित्र बाबू को जीत मिल गई।
1977 के विधानसभा चुनाव में
इसके 5 साल के बाद 1977 में चुनाव हुए। इस बार भी कांग्रेस ने रामचरित्र बाबू को ही सुरसंड से अपना उम्मीदवार बनाया। इस बार फिर से रामचरित्र बाबू का जादू चल गया। चुनाव में उन्हें जीत मिल गई।
जीत की हैट्रिक
इस तरीके से लगातार तीन बार रामचरित्र बाबू जीत गए। कांग्रेस के ही टिकट पर उन्हें लगातार जीत मिली। सुरसंड में इतिहास बन गया। लगातार तीन बार जीतने का रिकॉर्ड रामचरित्र बाबू ने बना लिया। सुरसंड में उन्होंने तो जीत की हैट्रिक ही लगा डाली।
1980 के विधानसभा चुनाव में
फिर आया 1980 का बिहार विधानसभा चुनाव। यह चुनाव भी रामचरित्र बाबू ने लड़ा। हालांकि, इसमें उन्हें मुंह की खानी पड़ी। फिर चुनाव से भी वे दूर ही हो गए। चुनाव लड़ना बंद कर दिया। उनके बेटे का नाम जयनंदन प्रसाद यादव है। वे भी राजनीति में उतरे हुए हैं। पिता की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।