बिहार में चुनाव की तैयारियां हो रही हैं, अगले कुछ दिनों में पहले फेज के लिए नामांकन भी भरे जाने हैं। लेकिन बिहार में राजनैतिक परिदृश्य अभी तक पूरी तरह से साफ नहीं हुआ है। बिहार में चुनाव दो गठबंधनों में होना है और अभी तक गठबंधन तय नहीं है। एनडीए और महागठबंधन में अभी भी सहयोगी दलों को लेकर संशय बना हुआ है।
एनडीए में चिराग पासवान ने पेच फंसाया हुआ है तो वहीं महागठबंधन में कांग्रेस और वाम दलों ने राहें मुश्किल की हुी है। दोनों गठबंधन में सभी दल ज्यादा से ज्यादा सीटों की मांग कर रहे हैं। उपेन्द्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक समता पार्टी ने तो दोनों गठबंधन से तौबा कर बसपा का साथ देने का फैसला कर लिया है और वो तो एक अलग ही राह पर चल दिए हैं। कुशवाहा को न तो एनडीए ने भाव दिया और महागठबंधन में भी कुछ खास होता दिखा नहीं। तो ऐसे में जब कुशवाहा को दिखा की उनकी दाल कहीं पर भी नहीं गल रही है तो वो अलग रास्ते पर चल दिए।
एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं है
अब बात करते हैं बिहार में एनडीए गठबंधन की तो जो भारतीय जनता पार्टी और जेडीयू के बीच में तय हुआ, उसके मुताबिक भाजपा को 101 सीटें मिलेंगी, जेडीयू को 103, बाकी 39 सीटें पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी और जीतन राम मांझी के हम के बीच बांट दिया जाए। जिसमें भाजपा ने पासवान को 27 सीटें देने का ऑफर दिया है। लेकिन चिराग पासवान पिछली बार की तरह ही 42 सीटें चाहते हैं। उनका तर्क है कि उनके पास 6 सांसद हैं और इतने सीटों पर उनका दावा बनता है।
वहीं एक और फार्मूला की बात हो रही है कि लोक जनशक्ति पार्टी कम सीटों पर लड़ लेगी लेकिन उसके एवज में लोजपा को बिहार परिषद की दो सीटें, राज्यसभा की एक सीट, उत्तर प्रदेश में लोकसभा की एक सीट और बिहार में चिराग को उप मुख्यमंत्री घोषित करने जैसी मांगे हैं। जाहिर है एनडीए में सब कुछ ठीक नहीं दिख रहा है। उधर चिराग की पार्टी के नेता अब खुले आम बोलने लगे हैं कि लोजपा 143 सीटों पर लड़ेगी और जेडीयू के खिलाफ अपने उम्मीदवार खड़े करेगी।
शुरु से ही नीतीश-चिराग के रिश्ते खराब हैं
दरअसल चिराग और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के संबंध कभी अच्छे नहीं रहे। चिराग कई बार ये जता चुके हैं कि मुख्यमंत्री उनसे बात नहीं करते या उनकी बातों पर जवाब नहीं देते हैं। ये बात चिराग ने सुशांत सिंह राजपूत मामले में कबूल की। दरअसल उन्होंने नीतिश कुमार को चिट्ठी लिख कर सीबीआई जांच की मांग की थी। माना तो ये भी जा रहा है कि इन सबके पीछे भाजपा है। और ये उसकी रणनीति है।
वाम दल और कांग्रेस ने अड़ाया हुआ है अड़ंगा
वहीं अगर बात करें महागठबंधन की तो पेंच यहां भी सीटों पर ही फंसा हुआ है। आरजेडी यहां पर 155 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं, जबकि कांग्रेस को 65 और वामदलों को 20 सीटें देने के लिए तैयार हैं। इसके साथ ही आरजेडी अपने कोटे से झारखंड मुक्ति मोर्चा और वीआईपी पार्टी को सीट देगी। एक और फार्मूला है जिसके तहत कांग्रेस वाल्मीकि नगर का लोकसभा का उपचुनाव कांग्रेस लड़ ले मगर वैसे हालात में कांग्रेस को विधानसभा में 58 सीटें ही मिलेंगी।
लेकिन किसी भी हालत में कांग्रेस 70 से कम सीटें नहीं लड़ना चाहती और वाम दल 30 सीटें चाहते हैं। जबकि आरजेडी का कहना है कि पिछले विधानसभा में कांग्रेस 40 सीटों पर लड़ी थी और उसे 27 सीटें मिली थीं। जबकि सीपीआईएलएल को 3 सीट मिली थी और सीपीआई, सीपीएम को एक भी सीट नहीं मिली थी। ऐसे में महागठबंधन में भी सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया है।
अब देखना है कि एनडीए और महागठबंधन में क्या दोनों टूट जाएंगे क्योंकि कोई भी झुकने को तैयार नहीं है। चिराग पासवान के तेवर काफी सख्त हैं और वो खुलेआम आलोचना कर रहे हैं, तो वहीं महागठबंधन में अगर सत्ता विरोधी ताकतें एक नहीं हुई तो ये खराब रहेगा।