बिहार। एक ऐसा राज्य जो कभी बहुत पिछड़ा हुआ करता था। जहां विकास के लिए लोग तरस गए थे। अपराध का जहां बोलबाला हुआ करता था। राज्य छोड़कर लोग पलायन कर रहे थे। दूसरे राज्यों में बिहारियों पर तंज कसे जाते थे। शिक्षा की हालत बेहद दयनीय थी। फिर भी राजनीति अपने चरम पर थी। नेताओं के पेट भरते जा रहे थे। जनता का पेट खाली रह जा रहा था। बिहार में फिर एक बदलाव आया। एक सरकार बनी। यह सरकार थी नीतीश कुमार की। पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार।
बदलाव जब आया
नीतीश कुमार को बिहार में विकास पुरुष के नाम से भी जाने जाने लगे। हालांकि, मुख्यमंत्री बनना इतना भी आसान उनके लिए नहीं था। राजनीति वे लंबे समय से कर रहे थे। राजनीति में उन्होंने काफी मेहनत की। केंद्रीय मंत्री तक बने। लगातार राजनीति में ये अपने कदम आगे बढ़ाते रहे। हार कभी नहीं मानी। अपने पांव कभी पीछे नहीं खींचे।
छात्र राजनीति की उपज
छात्र राजनीति से ही ये भी आए थे। लालू यादव भी छात्र राजनीति से ही आये थे। यह 1985 का साल था। पहली बार नीतीश कुमार विधायक बने थे। यह हरनौत विधानसभा सीट थी। नालंदा जिले में यह सीट थी। लोकदल ने नीतीश कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में नीतीश कुमार जीत गए थे। इस तरह से वे पहली बार विधायक बने थे।उन्होंने इस चुनाव में कांग्रेस के प्रत्याशी को हराया था। कांग्रेस की तरफ से बृजनंदन प्रसाद सिंह उम्मीदवार थे। नीतीश कुमार से वे 21 हजार 412 मतों के अंतर से हारे थे।
पहली हार से सामना
विधायक बनने से पहले नीतीश कुमार दो बार हारे थे। अच्छी-खासी हार इन्हें मिली थी। जेपी आंदोलन हुआ था। नीतीश कुमार इसमें भी बड़े सक्रिय रहे थे।आपातकाल लगा दिया गया था। फिर आपातकाल खत्म हुआ था। 1977 में बिहार में विधानसभा चुनाव हुए थे। नीतीश कुमार इसमें बहुत ही सक्रिय थे। हरनौत विधानसभा सीट से जनता पार्टी ने उन्हें अपना उम्मीदवार बना दिया था।नीतीश को उम्मीद थी कि वे चुनाव जीत जाएंगे। ऐसा लग भी रहा था, लेकिन नीतीश इस चुनाव में हार गए थे। निर्दलीय भोला प्रसाद सिंह ने उन्हें हरा दिया था। फिर भी नीतीश निराश नहीं हुए।
फिर से बने उम्मीदवार
वर्ष 1980 में फिर मध्यावधि चुनाव हुए थे। हरनौत सीट से नीतीश कुमार एक बार फिर उम्मीदवार बने। जनता पार्टी सेकुलर ने उन्हें टिकट दे दिया था। नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार भी किया था। इस बार नीतीश को उम्मीद थी कि उन्हें जीत मिल जाएगी। इसी उम्मीद से वे आगे बढ़ रहे थेम हालांकि फिर से एक बार नीतीश कुमार को हार का सामना करना पड़ा। निर्दलीय अरुण कुमार सिंह ने उन्हें हरा दिया था।दो बार नीतीश को हार मिल चुकी थी। वे चाहते तो निराश हो सकते थे। वे चाहते तो हार मान सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा किया नहीं। राजनीति में वे पूरी तरह से सक्रिय रहे।
लोकदल के टिकट पर
अब 1985 में फिर विधानसभा चुनाव हुए। इस बार लोकदल ने नीतीश कुमार को अपना प्रत्याशी चुन लिया। टिकट पाने के बाद नीतीश जी भी चुनाव की तैयारियों में जुट गए। नीतीश की छवि बहुत अच्छी थी। साफ-सुथरे व्यक्तित्व वाले इंसान के रूप में उनकी पहचान थी। इसकी खूब चर्चा भी हो रही थी। नीतीश बहुत पसंद किए जा रहे थे।
किसान की दूरदृष्टि
एक किसान ने भी उनकी तारीफ की थी। इस किसान ने नीतीश जी की हिम्मत बढ़ाई थी। किसान ने तब एक बड़ी बात कही थी। उसने कहा था कि आपको बहुत आगे तक हम लोग देख पा रहे हैं। नीतीश इससे और उत्साहित हो गए थे। उनका आत्मविश्वास और बढ़ गया था।
पहली बार विधायक
फिर वह दिन आया जब चुनाव के नतीजों की घोषणा हुई। नीतीश कुमार जीत गए थे। उनकी यह पहली जीत थी। इस तरीके से वे पहली बार विधायक बने थे। इसके बाद तो नीतीश जी ने पीछे मुड़कर देखा ही नहीं। राजनीति में वे प्रमुख चेहरा धीरे-धीरे बनने लगे।
फिर सांसद भी बन गए
फिर 1989 में लोकसभा चुनाव हुए थे। इस बार उन्हें बाढ़ संसदीय सीट से मौका मिला। कांग्रेस के रामलखन सिंह यादव पर नीतीश भारी पड़े थे। उन्होंने यादव को हरा दिया था। इस तरह से पहली बार नीतीश कुमार सांसद भी बन गए थे।नीतीश जी को दो बार हार मिली थी, मगर उन्होंने हार मानी नहीं। इस तरह से उनका राजनीतिक करियर आगे बढ़ता गया। नतीजा सबके सामने है। लंबे समय से वे बिहार के मुख्यमंत्री बने हुए हैं।