क्या तेजस्वी यादव इस बार बिहार के मुख्यमंत्री बन सकेंगे? ये सवाल बिहार की राजनीति समझने वाले हर इंसान के जहन में उठ रहा है। 31 साल के तेजस्वी अब आरजेडी के सबसे बड़े नेता हैं, हर पोस्टर, नारे, चुनावी गाने, सोशल मीडिया पर तेजस्वी ही छाए हुए हैं।
आरजेडी अब लालू यादव से हट कर तेजस्वी की पार्टी बन गई है। हाल ये है कि पापा लालू यादव भी ‘नई सोच, नया बिहार’ वाले नए पोस्टरों से दूर है। भले ही तेजस्वी को विरासत में पिता का नाम मिला हो, लेकिन क्या तेजस्वी ने कभी खुद को इस राजनीति के मार्केट में तोला है? क्या तेजस्वी को उसका मार्केट वैल्यू पता है?
मार्केटिंग और मैनेजमेंट की दुनिया में कहते हैं कि कोई धंधा शुरू करना है या किसी ब्रांड को लॉन्च करना है, तो सबसे पहले उसका SWOT analysis करना होता है। यानी की उसकी Strength यानी ताकत, Weakness यानी कमजोरी, Opportunity यानी अवसर, मौके और Threat मतलब चुनौतियां क्या हैं?
तेजस्वी की Strength
1. लालू प्रसाद यादव
तेजस्वी की सबसे बड़ी ताकत ‘ब्रांड लालू’ है। भले ही लालू यादव जेल में हैं, लेकिन तेजस्वी के पास उनका नाम, उनकी पहचान है। तेजस्वी को विरासत में लालू यादव की राजनीतिक जमीन मिली है और यादव, अल्पसंख्यक, पिछड़ों के लिए लालू आज भी मसीहा हैं।
2. बुजुर्ग नेताओं की भीड़ में युवा आवाज
बिहार में जेपी आंदोलन से निकले नेता अब बुजुर्ग कैटेगरी में आ गए हैं। नीतीश, लालू, सुशील मोदी, रामविलास पासवान जैसे नेता अब रिटायरमेंट की उम्र में हैं। ऐसे में युवा नेतृत्व के गैप को भरने के लिए तेजस्वी और चिराग ही मैदान में हैं। लेकिन चिराग अपने पिता की तरह ही सेफ पॉलिटिक्स के मंच पर काम कर रहे हैं।
3. भाषा की पकड़
तेजस्वी भले ही 9वीं तक पढ़े हैं, लेकिन उनकी अच्छी अंग्रेजी और भाषा की समझ उनकी ताकत है। नरेंद्र मोदी हों या लालू, दोनों ही अपने धारधार भाषणों की वजह से जाने जाते हैं, ठीक उसी तरह नीतीश कुमार से अलग होने के बाद 28 जुलाई 2017 को पटना विधानसभा में दिए तेजस्वी के भाषण ने ही उन्हें लालू यादव के बेटे तेजस्वी से नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी बनाया था।
4. मजबूत विपक्ष का रोल
साल 2015 के चुनाव में आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी बनी और तेजस्वी डिप्टी सीएम बने। लेकिन 20 महीने में ही नीतीश कुमार ने गठबंधन तोड़ दिया और भाजपा के साथ चले गए। जिसके बाद तेजस्वी ने विपक्षी नेता की जिम्मेदारी उठाई। और हर मौके पर सरकार को घेरते आए हैं। तेजस्वी ने एक मजबूत विपक्ष के तौर पर खुद को सड़क से लेकर सदन तक में पेश किया है।
Weekness की बात करते हैं
1. राजनीतिक दांव पेच में कच्चे
तेजस्वी राजनीति के खेल में अभी फ्रेशर हैं। लालू के जेल जाने के बाद तेजस्वी ने कुछ उपचुनाव में बेहतर किया था, जैसे नीतीश के खेमे के एमएलए सरफराज आलम को अपने पार्टी में लाकर अररिया लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल की। लेकिन साल 2019 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, जीतनराम मांझी, मुकेश साहनी और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़े लेकिन हार गए।
2. बताने को ज्यादा कुछ नहीं
तेजस्वी सिर्फ 20 महीने ही सरकार में रह सके हैं और ऐसे में उनके पास नीतीश कुमार की कमियों को गिनाने के सिवा अपना काम दिखाने को कुछ नहीं है।
3. सीनियर लीडर से तालमेल की कमी
तेजस्वी ने भले ही पार्टी संभाल ली हो लेकिन सीनियर लीडरों का पार्टी से जाना और नाराजगी जाहिर करना भी तेजस्वी के नेतृत्व पर प्रश्नचिन्ह है। लालू यादव के करीबी रघुवंश प्रसाद सिंह का पार्टी के उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा और फिर उनके निधन से ठीक पहले पार्टी छोड़ना। शिवानंद तिवारी जैसे सीनियर लीडर की दबी आवाज में नाराजगी, एक के बाद एक विधायकों का आरजेडी छोड़ नीतीश कुमार की जेडीयू में जाना। ये सब बताता है कि अभी तेजस्वी को और सीखने की जरूरत है।
4. भ्रष्टाचार की मार
भले ही तेजस्वी को विरासत में पिता का नाम मिला हो, लेकिन यही नाम कई बार परेशानी का सबब भी बना है। लालू यादव भ्रष्टाचार के मामले में जेल में हैं और परिवार पर कई घोटालों का आरोप है, केस भी चल रहा है। ऊपर से पिता और मां राबड़ी देवी के शासन को जंगल राज का टैग मिला हुआ है। हालांकि तेजस्वी ने अपनी अलग पहचान बनाने के लिए इस बात की माफी भी मांगी है।
तेजस्वी ने कहा था कि ठीक है 15 साल हम लोग सत्ता में रहे, पर हम सरकार में नहीं थे, हम छोटे थे। फिर भी हमारी सरकार रही। इससे कोई इनकार नहीं कर सकता कि लालू प्रसाद यादव के राज में सामाजिक न्याय नहीं हुआ। 15 साल में हमसे कोई कमी या भूल हुई थी तो हम उसके लिए माफी मांगते हैं।
5. परिवार में तकरार
आए दिन लालू परिवार में दरार को लेकर अपुष्ट खबरें तेजस्वी के लिए मुश्किलें बढ़ाती हैं। मीसा भारती, तेज प्रताप, तेजस्वी, कौन होगा लालू का वारिस? ये सवाल भी पार्टी को कमजोर करता है और ऊपर से लालू यादव का जेल में रहना भी परिवार और तेजस्वी को कमजोर करता है।
6. जमीनी राजनीति से दूर
सोशल मीडिया पर नई आरजेडी एक्टिव दिखती है लेकिन जमीनी काडर कमजोर है। जिन पार्टियों के खिलाफ लड़ रहे हैं उनके कार्यकर्ता बूथ पर जमे हैं। जब बिहार ने चमकी बुखार देखा तब तेजस्वी अचानक कई दिनों तक गायब रहे, लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद कई दिनों तक मीडिया और पार्टी वर्कर से दूर रहे। पटना में आई बाढ़ के दौरान भी जहां पप्पू यादव जैसे नेताओं की तस्वीरें आ रही थीं वहीं तेजस्वी यादव गायब थे।
Opportunity क्या है
1. वक्त बेशुमार
तेजस्वी के पक्ष में सबसे पहले एक चीज जाती है तो वो है वक्त। 26 साल की उम्र में डिप्टी सीएम की कुर्सी पर बैठने वाले तेजस्वी का राजनीतिक करियर अभी शुरू ही हुआ है। मतलब खुद को साबित करते के बहुत मौके हैं।
2. सीएम की कुर्सी, लालू युग की वापसी
तेजस्वी विपक्ष का सबसे बड़ा चेहरा हैं, और फिलहाल नीतीश कुमार के बाद तेजस्वी ही सीएम पद के अकेले सबसे बड़े दावेदार हैं। डिप्टी सीएम वो बन ही चुके हैं, तो अगली मंजिल सीएम की कुर्सी ही है।
3. JDU-BJP से जनता नाराज
तेजस्वी के पास सबसे बड़ा मौका जनता के दिल में जगह बनाना है। बाढ़, कोरोना, बेरोजगारी, लचर हेल्थ सिस्टम, इंडस्ट्री की बेहद कमी, क्राइम जैसै मुद्दे तेजस्वी की झोली में है। जनता विकल्प ढूंढ़ती है, और तेजस्वी के पास मौका है उस पॉलिटिकल गैप को भरने का।
Threat क्या है
1. ओवर कॉन्फिडेंस
तेजस्वी का सबसे बड़ा खतरा वो खुद हैं और उनके साथ रहने वालों से लेकर मीडिया में ये चर्चा आम है कि वो कई बार ओवर कॉन्फीडेंट हो जाते हैं। लोकसभा चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर जमीन पर लड़ाई के दावे कर रहे थे, लेकिन भाजपा-जेडीयू ने ऐसी शिकस्त दी जो शायद कभी लालू यादव ने सोची भी नहीं होगी।
2. नीतीश-भाजपा की जोड़ी
तेजस्वी के सामने दूसरा बड़ा खतरा है नीतीश और भाजपा की जोड़ी। नीतीश कुमार भले ही कभी अकेले अपने दमपर चुनाव न जीत सके हों, लेकिन गठबंधन के सहारे वो सत्ता की कुर्सी पर बैठे रहना जानते हैं।
3. तेज प्रताप यादव
तेजस्वी ने पिता के जेल जाने के बाद से पार्टी और परिवार को संभाला है, लेकिन तेज प्रताप की नाराजगी भी कई मामलों में सामने आई है। तेज प्रताप बड़े भाई हैं, मीसा बड़ी बहन। दोनों ही राजनीति में एक्टिव हैं मतलब तेजस्वी का अकेला राज नहीं हो सकता है। परिवार एक है तो तेजस्वी की राहें आसान हैं, नहीं तो खतरा बना रहेगा।
4. गठबंधन
तेजस्वी की पार्टी गठबंधन के बिना वैसे ही कमजोर है जैसे बिहार में बाकी सभी पार्टियां। आरजेडी साल 2015 में भी कांग्रेस और जेडीयू के साथ लड़ी थी। साल 2019 में भी कई पार्टियों का साथ मिला था, लेकिन अब न नीतीश हैं और न मांझी। वहीं दूसरी विपक्षी पार्टियां भी तेजस्वी के कामकाज के स्टाइल पर सवाल उठाती रही हैं। ऐसे में गठबंधन में टूट का खतरा भी बना रहेगा।