भारतीय जनता पार्टी किसी भी चुनाव को कम नहीं मानती है। वो एक निकाय चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव तक को एक ही तरह से रखती है। जहां भाजपा निकाय चुनाव तक में सारी ताकत लगा देती है तो फिर वो विधानसभा चुनाव कैसे छोड़ सकती थी। इसीलिए अब नंबर आ गया केरल चुनाव का। जहां एक तरफ केरल में भाजपा का अभी तक कोई वजदू नहीं बन पा रहा था तो अब इसका तोड़ निकालने के लिए भाजपा अपने पाले में मेट्रो मैन को ले आई है।जी हां ई. श्रीधरन को भाजपा में लाकर पार्टी ने सभी का ध्यान अपनी तरफ कर लिया है और इसी के साथ केरल चुनाव में यूडीएफ, एलडीएफ के साथ भाजपा भी आ गई है।
ई. श्रीधरन अब भाजपा और मोदी के ब्रांड एंबेसडर बन गए हैं। ई. श्रीधरन एक एक करके अपनी सारी बातें बताते जा रहे हैं, लेकिन अपने नये प्रोजेक्ट को लेकर मोदी और शाह से किसी तरह की बात और मुलाकात को बड़ी समझदारी से टाल रहे हैं। ऐसे में ये समझना और भी ज्यादा जरूरी हो गया है कि भाजपा में शामिल होने का विचार खुद उनका है या पार्टी ने अपने केरल प्रोजेक्ट के लिए उनको काफी सोच समझ कर हायर किया है। लेकिन उनकी एक बात ध्यान खींचती है कि राज्यपाल बनने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं हैं।
मेट्रो मैन की पॉलिटिकल एंट्री भी किरन बेदी जैसी ही लगती है। मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई. श्रीधरन को भी केरल भाजपा की राजनीति में वैसे ही एंट्री मिली है जैसे एक समय में क्रेन बेदी के नाम से शोहरत हासिल करने वाली आईपीएस अधिकारी किरन बेदी को मिली थी। साल 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में किरन बेदी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के रूप में भाजपा ने उतारा था और वो कोई भी करिश्मा नहीं दिखा सकीं थी।
पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह के साथ साथ दिल्ली की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित की सरकारों के साथ काम कर चुके मेट्रो मैन खुद को नरेंद्र मोदी का फैन भी तब से बता रहे हैं जब वो गुजरात के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। उन्होंने कहा है कि जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी मैं उनका प्रशंसक रहा, लेकिन अपने प्रोफेशनल करियर में व्यस्त रहने के चलते राजनीति के बारे में नहीं सोच सका। मोदी के करिश्माई नेतृत्व में देश आगे बढ़ रहा है, इसलिए मैं भाजपा में शामिल हो रहा हूं, ताकि राष्ट्र निर्माण में कुछ योगदान दे सकूं।
किसी राजनीतिक दल से जुड़ कर किसी राज्य में चुनाव लड़ने की बात और है, लेकिन अब ये तो हो नहीं सकता कि कोई खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर प्रोजेक्ट करे और राज्यपाल जैसे पद में दिलचस्पी न दिखाये – और ये सारी चीजें बगैर नेतृत्व के मंजूरी के बगैर हों। मीडिया से बातचीत में ई. श्रीधरन अब किसान आंदोलन से लेकर कांग्रेस की स्थिति हर बात पर टिप्पणी करने लगे हैं। कांग्रेस के पास बाकियों की ही तरह ई. श्रीधरन का मानना है कि कोई नेता नहीं है और पीवी नरसिम्हा राव के बाद वो कांग्रेस में किसी को भी उनके जितना भरोसेमंद नहीं देख सके हैं।
फिलहाल बड़ा सवाल ये भी है कि ई. श्रीधरन की राजनीति में दिलचस्पी कैसे पैदा हुई और ये सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अब से पहले वो कभी राजनीति में दिलचस्पी लेते नहीं देखे गये, बल्कि अपने काम के लिए कभी किसी की परवाह तक नहीं की। सबसे खास बात ये रही कि ई. श्रीधरन के काम में कभी भी पॉलिटिकल लाइन नहीं आई। कड़े अनुशासन में रहने वाला सिद्धांतों का पक्का आदमी अचानक एक राज्य में भाजपा का विधायक बनने में दिलचस्पी क्यों दिखाने लगा है? श्रीधरन का कद तो इतना ऊंचा है कि वो पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की तरह राज्यसभा जा सकते थे। या फिर विदेश सेवा में रहे एस. जयशंकर या आर्मी चीफ रहे जनरल वीके सिंह की तरह केंद्र में किसी विभाग के मंत्री बन सकते थे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं करके वो केरल से विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।
श्रीधरन ने अपनी तरफ से ये मुद्दा भी साफ कर दिया है ये कह कर कि वो केरल के लोगों की सेवा करना चाहते हैं। दुनिया को अपनी सेवाएं देने के बाद भी लोगों के मन में ये ख्वाहिश तो बची ही रहती है कि वे अपने बेहद करीबी लोगों के लिए कुछ करें। उस मिट्टी का कर्ज चुकान की कोशिश करें जिसने ऐसा बनाया और उसकी बदौलत वो सब कुछ हासिल हुआ जिसकी बदौलत दुनिया जानती और मानती है।