लगता है भारतीय जनता पार्टी को आजकल आरोपियों और माफिया लोगों पर ज्यादा प्यार आ रहा है। कभी बेल पर छूटे लोगों पर निशाने साधने वाले विपक्षी नेताओं पर हमला करने वाले नरेंद्र मोदी की पार्टी में ही अब एक के बाद एक कोर्ट और जेल की चक्कर काट कर आए लोगों को तवज्जो दी जा रही है। बीजेपी की तरफ से साध्वी प्रज्ञा को भोपाल से अपना उम्मीदवार घोषित किया गया था, तभी से सत्तारूढ़ पार्टी लगातार आलोचनाओं का सामना कर रही है।
एक सवाल जरूर उठता है कि आखिर ऐसी भी क्या मजबूरी बीजेपी के सिर पर आ गई कि उ्होंने मालेगांव ब्लास्ट मामले में आरोपी रहीं प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बना दिया है। आपको बता दें कि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर अभी भी मालेगांव ब्लास्ट केस में निर्दोष साबित नहीं हुईं हैं और वो बेल पर बाहर हैं, जिस वजह से आम लोगों के साथ-साथ विपक्ष को भी बीजेपी और मोदी सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया है। गौरतलब है कि बेल पर बाहर आए शख्स का चुनाव लड़ना काफी अजीब सा लगता है।
हालांकि कानून उन्हें इस बात की पूरी इजाजत देता है कि वो चुनाव लड़े, लेकिन ऐसे में जब पीएम मंच से विपक्ष के नेताओं के बेल पर बाहर होने पर तंज कसते हैं तो वो दोगला रवैया लगता है। अगर प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव लड़ने की आजादी है तो सभी को हान वो अलग बात है कि पार्टी की छवि जरूर खराब होती है। ऐसे में शायद बीजेपी का ये मानना है कि अगर कानून नहीं तोड़ा जा रहा है तो छवि शायद उनके लिए मायने नहीं रखती है। और इसलिए शायद बीजेपी एक बार दोबारा से आलोचनाओं को न्यौता दे रही है। क्योंकि पहले ब्लास्ट केस की आरोपी और अब बिहार के एक नामी माफिया डॉन राजन तिवारी को बीजेपी ने अपनी पार्टी में शामिल कर लिया है। बीजेरी के बड़े नेता आशुतोष टण्डन ने राजन तिवारी को सदस्यता दिलाई। लेकिन ये बहुत ही चुपके से हुआ दरअसल इसके पीछे है राजन तिवारी के पुराने कच्चे चिट्ठे।
राजन तिवारी यूपी के गोरखपुर का रहने वाला है, पढ़ाई-लिखाई करने के बाद वो अपराध की दुनिया में चला गया। राजन माफिया श्रीप्रकाश शुक्ला का साथी रहा है। ये वो शख्स था जिसका नाम कई आपराधिक घटनाओं में शामिल रहा है। एक समय वो पुलिस की वॉन्टेड लिस्ट में भी काफी ऊपर रहता था। लेकिन फिर वो यूपी से बिहार भाग गया था और फिर बिहार के अपराध जगत में भी उसने काफी नाम कमाया था। इसके बाद साल 1998 में राष्ट्रीय जनता दल के पूर्व मंत्री बृजबिहारी प्रसाद जो अस्पताल में भर्ती थे वहां पर उनकी निर्मम हत्या कर दी गई थी। साल 2009 में सीबीआई की एक अदालत ने श्रीप्रकाश शुक्ला और राजन तिवारी के अलावा 5 लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। हालांकि साल 2014 में पटना हाई कोर्ट ने सभी को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।
सजा होने से पहले ही राजन तिवारी की दिलचस्पी राजनीति में होने लग गई थी और बिहार से वो 2 बार विधायक भी बना। जब वो जेल से बाहर आया तो आरजेडी में शामिल हुआ। साल 2017 में यूपी में वापसी करने का मन हुआ तो बसपा के साथ हाथ मिला लिया और हाथी की सवारी करने के लिए निकल पड़ा, लेकिन अब बीजेपी में शामिल हो गया है। आज की तारीख में इस शख्स पर हत्या, लूट और अपहरण के 10 से भी ज्यादा मामले दर्ज हैं।
तो कुछ ऐसा है राजन तिवारी का बायोडेटा जो लोगों को अब चुभ रहा है। जो कि स्वाभाविक भी है, लेकिन बताया जा रहा है कि तिवारी के बीजेपी में शामिल होने से पार्टी को पूर्वांचल में फायदा हो सकता है। गौरतलब है कि इस कदम के बाद से सोशल मीडिया पर बीजेपी की काफी आलोचनाएं हो रही हैं और बीजेपी को party with a difference कहा जा रहा है।
साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि जब बिहार में हर पार्टी ने उन्हें टिकट देने से मना कर दिया तो बीजेपी ने ऐसे माफिया को पनाह दी है। कई बार तो राहुल गांधी की तरफ से बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पर भी अपराधी होने के आरोप लग चुके हैं और अगर उनमें तथ्य है तो ये तो बीजेपी की हद ही हो जाएगी। लोगों ने खुल्ले आम बीजेपी की धज्जियां उड़ाई हैं और कहा कि जब इस पार्टी के अंदर बम धमाकों की दोषी आ सकती है जो बेल पर बाहर है, तो ये राजन तिवारी क्या चीज है। वहीं कुछ लोगों ने तो फिरकी भी ली और कहा कि एक काम करो आसाराम, दाउद को भी अपनी पार्टी में शामिल कर लो, इससे साफ नजर आ रहा है कि लोगों के अंदर इस कदम की वजह से नाराजगी है। इसका असर हो सकता है चुनाव पर भी पड़े, खैर अंधभक्ति अपनी जगह है तो इस पर जवाब देते हुए कुछ पेशे से ट्विटर पर चौकीदारी कर रहे बीजेपी समर्थकों ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बेल पर होने के किस्से सुना दिए। साथ ही कुछ तो महान लोग निकले उन्होंने राजन तिवारी को शेर-ए-बिहार भी कह दिया। ये बिहार वही राज्य है जो देश को सबसे ज्यादा IAS और IPS देता है।
हो सकता है कि बीजेपी में शामिल होने के बाद राजन तिवारी के पाप धुल जाएं, लेकिन इस बात पर बहस हमेशा जारी रहेगी क्योंकि आरोपी या अपराधी दोनों ही समाज को पसंद नहीं आते हैं। पब्लिक अभिनेता को नेता बनते देख लेती है, लेकिन एक माफिया डॉन को सत्ता में देखना भला कौन पसंद करेगा?