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भाजपा के लिए बसपा प्रमुख मायावती का प्यार किस ओर जाएगा?

मायावती ने कहा कि वो सपा और अखिलेश यादव को हराने के लिए भाजपा का साथ दे सकती है। हाल ही में वो भाजपा के पक्ष में और कांग्रेस के खिलाफ ट्वीट करती दिखी है।
Logic Taranjeet 31 October 2020
भाजपा के लिए बसपा प्रमुख मायावती का प्यार किस ओर जाएगा?

उत्तर प्रदेश की सियासत बहुत ही अजीब है, राज्य सभा की 10 सीटों के लिए चुनाव होने से पहले नए राजनीतिक रिश्ते बनते दिख रहे हैं। बसपा प्रमुख मायावती का रुझान अब भाजपा के प्रति होता जा रहा है। हालांकि 2022 की भी तैयारी हो सकती है, लेकिन बहनजी के मूड का कुछ कह नहीं सकते, आज वो भाजपा के साथ जा रही है, लेकिन कल वो पलट भी सकती है।

मायावती ने कहा कि वो सपा और अखिलेश यादव को हराने के लिए भाजपा का साथ दे सकती है। हाल ही में वो भाजपा के पक्ष में और कांग्रेस के खिलाफ ट्वीट करती दिखी है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने तो उन्हें भाजपा का अघोषित प्रवक्ता तक कह दिया है।

ये तो वैसे साबित हो गया है कि मायावती अकेले दम पर कुछ नहीं कर सकेंगी। उन्हें गठबंधन की तो जरूरत है। ऐसे में मायावती को अब भाजपा के साथ ही अपना भविष्य दिखाई देता है। हालांकि भाजपा अपने साथ मिलाएगी या नहीं ये अभी भी सवाल है।

भाजपा और बसपा में ये प्यार क्यों

राज्य सभा को लेकर बीते चुनावों की बात करें तो मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान और गुजरात तक भाजपा उन सीटों पर भी उम्मीदवार उतार देती देखी गयी है जिस पर जीत की जरा भी संभावना न हो। कभी कभी फायदा भी हो जाता है। यूपी के मामले में भाजपा का स्टैंड बिलकुल अलग देखने को मिला है।

भाजपा को यूपी में अपने 9वें उम्मीदवार की जीत पक्की करने के लिए महज 13 वोटों का इंतजाम करना पड़ता लेकिन भाजपा ने यूं ही छोड़ दी। लग रहा है कि भाजपा ने वो सीट बसपा के लिए छोड़ दी है जिसके पास महज 18 वोट ही हैं और वो राज्य सभा की एक भी सीट जीतने में सक्षम नहीं है। बसपा के पास जो विधायक हैं उनमें भी कई बागी हो चुके हैं और मुख्तार अंसारी पंजाब की जेल में ही हैं।

राज्य सभा की एक सीट के लिए यूपी के 37 विधायकों के वोटों की दरकार होती है, भाजपा के पास 16 समर्थकों सहित कुल 320 वोट हैं और इनमें से 296 वोट आठ उम्मीदवारों को जिताने के लिए काफी हैं। बचे हुए 24 वोटों के दम पर भाजपा एक उम्मीदवार तो खड़ा कर ही सकती थी, लेकिन अगर ऐसा नहीं किया तो निश्चित तौर पर ये बसपा की मदद के लिए ही किया गया इंतजाम है।

ये मध्य प्रदेश उपचुनाव में बसपा के सपोर्ट के लिए भी एक्सचेंज ऑफर हो सकता है। अगर बसपा मध्य प्रदेश में भाजपा की मदद करती है तो उपचुनाव में पार्टी की राह काफी आसान हो सकती है। कांग्रेस के खिलाफ तो मायावती आम चुनाव के पहले भी हमलावर रहीं, लेकिन बाद में अखिलेश यादव के साथ हुआ गठबंधन तोड़ लेने के बाद तो ऐसा लग रहा था जैसे बसपा नेता को कांग्रेस के खिलाफ बस मौके की तलाश हो।

सीएए विरोध प्रदर्शनकारियों के घर प्रियंका गांधी वाड्रा का जाना रहा हो, या प्रवासी मजदूरों के लिए कांग्रेस की तरफ बसें भेजने का, यहां तक कि मायावती को प्रवासी मजदूरों से दिल्ली के फ्लाईओवर पर जाकर मुलाकात करना भी गंवारा नहीं था। राजस्थान की राजनीतिक उठापटक के दौरान भी बसपा काफी एक्टिव रही। उसमें तो स्वाभाविक भी था क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बसपा के सभी विधायकों को कांग्रेस ज्वाइन करा दिया था।

बीजेपी को मायावती की कितनी जरूरत है

2019 का आम चुनाव पूर्ण बहुमत से जीतने के बाद भाजपा के लिए एनडीए के साथियों की अहमियत कम हो गयी। टकराव की शुरुआत तो कैबिनेट के गठन के साथ ही हो गयी थी जब नीतीश कुमार ने बाहर रहने का फैसला कर लिया। बाद में महाराष्ट्र के बदले राजनीतिक हालात में शिवसेना और अभी अभी किसानों के मुद्दे पर शिरोमणि अकाली दल ने भी एनडीए छोड़ दिया है।

मोदी कैबिनेट में अब भाजपा से बाहर सिर्फ आरपीआई वाले रामदास आठवले बचे हैं जो भाजपा से बाहर के मंत्री हैं। महाराष्ट्र से जुड़े कई मामलों में रामदास आठवले को खासा एक्टिव भी देखा गया है, खासकर कंगना रनौत के मामले में। कंगना रनौत के स्वागत के लिए एयरपोर्ट पर आरपीआई कार्यकर्ताओं को भेजने और कंगना के घर जाकर मुलाकात करने से लेकर राज्यपाल से मिल कर शिकायत दर्ज कराने तक।

क्या मायावती भी अब भाजपा के साथ रामदास आठवले जैसे खांचे में भी फिट होना चाहती हैं क्योंकि भाजपा मायावती के लिए बहुत ज्याता शेयर तो करने वाली है नहीं। भाजपा ने अपने बूते यूपी में सरकार बनायी है और विपक्ष की जो हालत है, अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के बीच 2022 के विधानसभा चुनाव के लिए भाजपा के सामने कोई खतरा भी नजर नहीं आ रहा है।

ऐसे में मायावती को वो ज्यादा से ज्यादा वो स्थान दे सकती है जो ओम प्रकाश राजभर को दिया था या फिर अनुप्रिया पटेल भी अलग हो गयीं तो दोनों के हिस्से वाला। अगर कोई बड़ी मजबूरी न हो तो मायावती भाजपा के साथ अपने फायदे के हिसाब से कोई गठबंधन कर पाएंगी ऐसा तो नहीं लगता। अगर बसपा और भाजपा में कोई गठबंधन या समझौता होता है तो भी फायदे का पलड़ा भाजपा की तरफ ही झुका दिखेगा, ऐसा पहले से ही साफ है।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.