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चंद्रशेखर आजाद ने इस तरह दिया पहली कैद में मिले 15 कोड़ों का जवाब

Information Komal Yadav 23 July 2021
चंद्रशेखर आजाद ने इस तरह दिया पहली कैद में मिले 15 कोड़ों का जवाब

14 साल की उम्र से क्रांति का रास्ता चुनने वाले चंद्रशेखर आजाद का जन्म आज ही के दिन यानी 23 जुलाई 1906 को हुआ था। इनका जन्म मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले का भाबरा में हुआ था। 1920 में मात्र 14 वर्ष की उम्र में चंद्रशेखर आजाद गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे।

इनका नाम आजाद कैसे पड़ा

14 साल की ही उम्र में वो गिरफ्तार हुए और जज के सामने गए। यहां जज ने जब उनका नाम पूछा तो उन्होंने कहा कि आजाद। पिता का नाम पूछने पर जोर से बोले, ‘स्वतंत्रता’। उनका पता पूछने पर बोले -जेल। इसी बात पर जज ने उन्हें वही सबके सामने 15 कोड़े लगाने की सजा सुनाई। ये वो पल था जब उनकी पीठ पर 15 कोड़े बरस रहे थे और वो वंदे मातरम् का नारा लगा रहे थे। तभी से सब उनको आजाद के नाम से पुकारने लगे थे । धीरे धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी थी।

आजाद बचपन से निशानेबाज थे 

चंद्रशेखर आजाद की निशानेबाजी बचपन से बहुत अच्छी थी । दरअसल इसकी ट्रेनिंग उन्होंने बचपन में ही ले थी । सन् 1922 में चौरी चौरा की घटना के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह आज़ाद का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया। जिसके बाद पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल, योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गए।

चंद्रशेखर आजाद ने 1928 में लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफर एसपी सॉन्डर्स को गोली मार दी और लाजपत राय की मौत का बदला लिया। जबसे ये आजाद रामप्रसाद बिस्मिल के क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (HRA) से जुड़े थे इनकी जिंदगी बदल गई थी। चंद्रशेखर आजाद कहते थे कि ‘दुश्मन की गोलियों का, हम सामना करेंगे, आजाद ही रहे हैं, आजाद ही रहेंगे’ उनके इस नारे को एक समय था जब हर युवा के दिलों में दोहराया जाता था। वो जिस शान से मंच से बोलते थे, हजारों युवा उनके साथ जान लुटाने को तैयार हो जाता था ।

खुद को गोली मारकर किया आज़ाद

आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में सुखदेव और अपने एक और मित्र के साथ योजना बना रहे थे। अचानक अंग्रेज पुलिस ने उनपर हमला कर दिया। आजाद ने पुलिस पर गोलियां चलाईं ताकि उनके साथी सुखदेव बचकर निकल सकें। हालाँकि आज़ाद पुलिस की गोलियों से बुरी तरह घायल हो गए थे। आखिर में उन्हेांने अपना नारा आजाद है आजाद रहेंगे अर्थात न कभी पकड़े जाएंगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फांसी दे सकेगी को याद किया और खुद को गोली खुद को मार ली और मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी। 

Komal Yadav

Komal Yadav

A Writer, Poet and Commerce Student