एनसीआरबी के डाटा के अनुसार हर रोज भारत में पुलिस बच्चों के खिलाफ लगभग 300 अपराध दर्ज करती है। लेकिन इनमें से कुछ ही मीडिया के सामने आते हैं, जिनमें से अधिकतर मज़हब की वजह से होते हैं । लेकिन अलीगढ़ में ढाई साल की ट्विंकल के साथ हुई बर्बरता से ये बात एक अलग दिशा दे रही है कि आजकल के वक्त में वो अपराध ज्यादा सामने खुलकर आ रहे हैं, जिनमें आरोपी मुसलमान होता है।
लेकिन ये जानना जरूरी है कि ऐसा क्यों हो रहा है?
कठुआ रेप केस के बाद हुई थी शुरुआत
हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने पिछले अप्रैल में एक अभियान चलाया, जब बॉलीवुड हस्तियों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर बाढ़ की तरह आई और उन सबने आसिफा के लिए न्याय मांगा। इस अभियान में जम्मू के कठुआ इलाके में आठ साल की बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या के मामले में न्याय की बाधा की ओर ध्यान आकर्षित करने की मांग की थी। इस रेप केस में जो बच्ची थी वो मुसलमान समुदाय से ताल्लुक रखती थी, और इसमें आरोपी हिंदू थे। जिनमें से 4 तो पुलिसवाले थे। ये अपराध मंदिर में जनवरी 2018 में हुआ था, जिसे शुरुआत में तो काफी दबाया गया था, लेकिन बाद में खुलकर इस केस में आवाज बुलंद हुई थी। बाद में पुलिस चार्जशीट में खुलासा हुआ था कि ये अपराध वहां पर मुसलमान बकरवाल समुदाय को हटाने के लिए किया गया था। जो कि वहां का एक लोकल मसला था जिसमें हिंदू और मुसलमान का एक अंगल चल रहा था।
इलाके में सांप्रदायिकता इतनी गहरी थी कि वहां पर आरोपियों कि रिहाई के लिए भी कुछ हिंदू परिवारों ने प्रदर्शन किया था। बीजेपी के कुछ नेताओं की तरफ से भी प्रदर्शनकारियों के लिए हाथ बढ़ाए गए थे। लेकिन सोशल मीडिया पर ये केस काफी तेजी से फैल रहा था और लोग आसिफा के लिए न्याय की मांग कर रहे थे। इस कैंपेन में बॉलीवुड हस्तियों ने भी काफी ज्यादा हिस्सा लिया। साथ ही इसमें इस बात पर काफी गौर किया गया था कि जो अपराध हुआ है वो मंदिर परिसर में हुआ। जिससे हिंदू एक्टिविस्ट की भावनाएं काफी ज्यादा आहत हुई।
किसी भी अपराधी का पहले धर्म जानने का चलन बढ़ने लगा
कठुआ केस का असर ऐसा फैला कि अब सांप्रदायिकता धीरे धीरे और ज्यादा बढ़ने लगी थी। किसी भी बच्ची के साथ अपराध होता था तो सबसे पहले उसमें शामिल आरोपियों के धर्म के बारे में बात होती थी। हर बार आरोपियों की धार्मिक पहचान पर ध्यान दिया जाने लगा। बॉलीवुड के कुछ लोगों सहित प्रभावशाली आवाजों ने इन संदेशों को बढ़ाया। लेकिन उन्होंने इस तथ्य को नजरअंदाज किया कि कठुआ मामले के विपरीत, इन अपराधों में कोई सांप्रदायिक मामला नहीं हुआ है। किसी भी मामले में बच्चों के परिवारों ने ऐसा आरोप नहीं लगाया है। कथित अपराधियों की धार्मिक पहचान को कोई तर्ज नहीं दिया गया है।
हिंदुत्व प्रचारकों ने एक और महत्वपूर्ण अंतर को नजरअंदाज किया कि कठुआ मामले को शुरू में कवर-अप किया गया था, वो जिन मामलों के लिए अभियान चला रहे थे, उनमें पुलिस द्वारा कार्रवाई देखी गई थी। किसी ने भी आरोपियों को ढालने की कोशिश नहीं की – न तो राजनीतिक नेता, न ही मुस्लिम प्रदर्शनकारी। इसके अलग, जब पिछले साल जून में मध्य प्रदेश के मंदसौर में एक सात साल के बच्चे का अपहरण कर उसके साथ बलात्कार किया गया था, तब कस्बे के मुसलमानों ने विरोध प्रदर्शन में आरोपियों के लिए मृत्युदंड की मांग की थी। उन्होंने ये भी घोषित किया था कि उनके शरीर को दफनाने के लिए जगह नहीं दी जाएगी।
इसके बावजूद हिंदुत्व कार्यकर्ताओं ने सोशल मीडिया पर पोस्ट चलाकर मामले को सांप्रदायिक बनाने की कोशिश की। उसी महीने राजस्थान के बाड़मेर में एक सीमावर्ती गांव में सात साल के बच्चे के साथ बलात्कार किया गया और उसका गला घोंट कर मार दिया गया। ये बच्चा दलित था और आरोपी मुस्लिम था। पुलिस ने घंटों के अंदर गांव वालों की मदद से उसे गिरफ्तार कर लिया था जिनमें से अधिकांश मुस्लिम थे। बच्चे का परिवार जांच की गति से संतुष्ट था और एक हफ्ते के अंदर चार्जशीट दायर की गई और पांच दिन बाद पहली अदालत की सुनवाई हुई थी। उनके मुस्लिम पड़ोसियों ने भी एक छोटा सा विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन को एक याचिका सौंपकर आरोपियों को मौत की सजा देने की मांग की थी। गांव में सांप्रदायिक संघर्ष की पूर्ण अनुपस्थिति के बावजूद बीजेपी के बाड़मेर जिला अध्यक्ष ने इस क्षेत्र में तापमान बढ़ाने की कोशिश की और एक विरोध प्रदर्शन किया। उन्होंने राजस्थान के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा जिसमें आरोप लगाया गया था कि मुस्लिम सीमावर्ती गांवों में दलितों पर व्यापक अत्याचार कर रहे हैं। दलित नेताओं ने उनकी दलीलों को खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा कि दलितों को मुसलमानों के द्वारा नहीं बल्कि राजपूतों द्वारा प्रताड़ित किया जा रहा था।
अलीगढ़ में भी वही चक्र घूमा
पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में एक ढाई साल की बच्चे की हत्या के बाद वहीं चक्र दोबारा चला। हिंदुत्व के कार्यकर्ताओं ने बच्चे के नाम को हैशटैग के साथ ट्वीट किया और सोशल मीडिया पर बाढ़ लग गई। आरोपी की धार्मिक पहचान मुसलमान को उजागढ़ कर मामले को सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है। हेट कैंपेनिंग की कोई सीमा नहीं है, अलीगढ़ में हिंदू संगठन जैसे कि बजरंग दल गांव में महापंचायत लगाने की कोशिश में है। लेकिन इस पूरे मामले में किसी का ध्यान भी इस तरफ नहीं जा रहा कि ये मामला बच्चों के खिलाफ बढ़ते अपराध का है ना कि मुसलमानों के द्वारा किए जा रहे अपराधों का।