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सावरकर और आंबेडकर की बातों को किया अनसुना, तभी तो मिला चीन से धोखा

चीन हमेशा आंख दिखाता रहता है। आए दिन हमारी सीमा में घुसने की कोशिश करता रहता है। कई बार झड़प की नौबत भी आ जाती है। फिर शांति की बात करने लगता है। पूरी दुनिया को दिखाता है कि भारत ही गलत है।

धोखा देने की फितरत

धोखा देने की हमेशा से चीन की फितरत रही है। ऐसा नहीं है कि यह कोई नई बात है। आजादी के बाद से ही ऐसा होता चला आ रहा है। गलती हमारी भी रही है। आजादी के बाद बनी सरकार की। समझ नहीं पाई तब की सरकार चीन की कुटिलता को। शांति का राग अलापती रही और चीन अपनी सामरिक ताकत बढ़ाता रहा। धोखा नहीं मिलता यदि कुछ नेताओं की बातें सुन ली गई होतीं।

जी हां, विनायक दामोदर सावरकर और डॉ भीमराव आंबेडकर ने चीन को लेकर चेताया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के प्रधानमंत्री थे। वीर सावरकर की बातों को उन्होंने अनसुना कर दिया। डॉ भीमराव आंबेडकर की बात भी उन्होंने नहीं सुनी। खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है। पंचशील के सिद्धांत पर नेहरू ने बिना सोचे-समझे भरोसा कर लिया। उन्हें बुद्ध को कायम रखना था। बुध्द यहां शांति के लिए प्रयुक्त हुआ है। युद्ध की कूटनीति पर उन्होंने बिल्कुल भी विचार नहीं किया।

नहीं की सामरिक तैयारी

सामरिक तैयारी भारत ने की ही नहीं। नेहरू सपना देखते रहे कि हम पर कोई हमला नहीं करने वाला। इसलिए कि हम किसी पर हमला नहीं कर रहे। गांधी-नेहरू युग में आशावाद कुछ ज्यादा ही हो गया। विदेश नीति पूरी तरीके से नाकामयाब हुई।

आंबेडकर की चेतावनी

संसद में डॉ आंबेडकर ने कई बार चेताया। डॉ आंबेडकर कानून मंत्री बने थे। वर्ष 1951 में उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था। हिंदू कोड बिल को लेकर उन्होंने ऐसा किया था। त्यागपत्र देने के पीछे डॉ आंबेडकर ने पांच वजहें बताई थीं। इनमें से एक वजह तत्कालीन सरकार की लचर विदेश नीति भी थी।भारत के दोनों पड़ोसी पाकिस्तान और चीन पर भरोसा नहीं कर सकते। डॉ आंबेडकर ने ऐसा कहा था। वे कहते थे कि दोनों विश्वासघात जरूर करेंगे। देश उनकी वजह से खतरे में है। डॉ आंबेडकर ने बहुत सही बताया था। दोनों देशों की वजह से भारत को कई युद्ध करने पड़े हैं।

सावरकर की चेतावनी

चीन को लेकर वीर सावरकर ने भी चेताया था। केसरी में उनका लेख इसे लेकर छपा था। यह 26 जनवरी, 1954 का अंक था। इसमें सावरकर ने स्पष्ट चेतावनी दी थी। उन्होंने लिखा था कि चीन ने सैन्य शक्ति बढ़ा ली है। तिब्बत अब उसके कब्जे में है। भारत से चीन और रूस की सीमा सट रही है। नेपाल, भूटान, तिब्बत, ब्रह्मदेश, अफगानिस्तान और सिक्किम हिंदुस्तान की रक्षा के लिए बने थे।

ये बफर राज्य थे। अंग्रेजों ने इन्हें बनाया था। हमारे साथ इनकी रहने की चाहत थी। ये अब इधर-उधर होने लगे हैं।जरा सोचिए कि सावरकर ने कितनी दूर तक देख लिया था। नेपाल का उदाहरण आज सबके सामने है। चीन ने इन राज्यों को प्रभावित करने की बहुत कोशिश की है।

पंचशील को लेकर गलती

अब पंचशील को ही ले लीजिए। चीन और भारत ने 29 अप्रैल, 1954 को यह समझौता किया था। आंबेडकर और सावरकर ने इसे लेकर भी आगाह किया था। पंचशील की आंबेडकर ने कड़ी निंदा की थी। उन्होंने साफ कहा था कि पंचशील पर माओ का भरोसा नहीं है। नेहरू इसे इतनी गंभीरता से कैसे ले रहे हैं? पंचशील जैसा कुछ भी राजनीति में नहीं होता।

विशेष तौर पर एक कम्युनिस्ट देश की राजनीति में तो जरा भी नहीं। डॉ आंबेडकर ने एक और चीज कही थी। उन्होंने कहा था कि नैतिकता जैसी कोई चीज कम्युनिस्ट देशों में बिल्कुल भी नहीं होती। बहुत भावुक होना पंचशील को लेकर सही नहीं। वे विश्वासघात जरूर करेंगे।

सावरकर ने तब भी कहा था

सावरकर इसे लेकर बड़े मुखर थे। उनके बयान थोड़े उग्र होते थे। हिंदू महासभा का अधिवेशन जोधपुर में 1956 में हुआ था। वीर सावरकर ने इसे संबोधित किया था। इसमें उन्होंने पंचशील को लेकर तत्कालीन सरकार पर कड़े प्रहार किए थे। उन्होंने कहा था कि पंचशील का मंत्र जपने से कुछ नहीं मिलेगा। रूस ने भी तो इस पर हस्ताक्षर किया था। हंगरी पर उसने धावा बोल दिया। इंग्लैंड तक को उसने धमकाया। ऐसे देशों के लिए पंचशील कुछ भी नहीं।

सावरकर ने एक और बात कही थी। उन्होंने कहा था कि ताकतवर सेना वाला देश ही बड़ा माना जाता है। बाकी किसी बात का कोई मतलब नहीं। चीन जैसे देश केवल पनडुब्बियों, परमाणु बम, तोप, टैंक और हवाई जहाज आदि को लेकर काम करते हैं। काश! तब नेहरू ने सावरकर और आंबेडकर की सुन ली होती। भारत को चीन से इतना धोखा तो नहीं मिलता।