बिहार में चुनावों का बिगुल बज चुका है, 10 नवंबर को पता चलेगा कि किसकी सरकार बनने जा रही है। लेकिन इस चुनाव में टक्कर नीतीश बनाम तेजस्वी के साथ-साथ चिराग पासवान की भी है। एनडीए ने वैसे तो नीतीश कुमार को सीएम उम्मीदवार बनाया है। लेकिन चिराग पासवान इसमें बीच में खड़े हैं। वो अब एनडीए का हिस्सा नहीं है जिससे माना जा रहा है कि वो भाजपा की एक मिसाइल है जिसका इस्तेमाल समय आने पर किया जाएगा।
चिराग पासवान भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी लेकिन जेडीयू को जरूर हराने की कोशिश करेगी। चिराग पासवान नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे। ऐसे में भाजपा राज्य में सबसे अधिक सीटें जीतेगी और उसके पास ये तय करने की क्षमता हो जाएगी कि उसे मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार चाहिए या नहीं।
हालांकि, बिहार भाजपा के लोग इन बातों को सिरे से खारिज कर रहे हैं। लेकिन कोई भी ये नहीं कह पा रहा कि चिराग पासवान भाजपा के साथ जुड़ी एक टीम का हिस्सा नहीं हैं। चिराग पासवान की बगावत के बाद भाजपा ने नीतीश कुमार का बचाव नहीं किया। चिराग पासवान द्वारा नीतीश सरकार के शासन की आलोचना के खिलाफ निंदा का बयान भी भाजपा की तरफ से काफी दिनों बाद आया।
बिहार के भाजपा नेताओं ने निजी तौर पर संकेत दिए हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ही चिराग पासवान को ऐसे कदम उठाने के लिए उकसाया है। प्रशांत किशोर सालों तक नीतीश कुमार के विश्वसनीय सहयोगी बने हुए थे, जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था। लेकिन दस महीने पहले, विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थन में नीतीश के बयान को मुस्लिम विरोधी करार दे आलोचना करने पर उनकी पार्टी से छुट्टी कर दी गई थी।
सहयोगियों और गठबंधन के प्रति नीतीश कुमार का दृष्टिकोण बस पर चढ़ने-उतरने जैसा रहा है। भाजपा के साथ 18 साल का गठबंधन उन्होंने साल 2015 में तोड़ दिया था। इसके बाद उन्होंने लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी गठजोड़ कर लिया था। 2017 में नीतीश कुमार ने फिर पलटी मार ली और भाजपा के साथ हो गए। इस बार जेडीयू ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए, भाजपा द्वारा प्रत्याशियों का नाम फाइनल करने से पहले, अपने उम्मीदवारों के नामों का एलान कर दिया।
अब ऐसे में चिराग पासवान जिस दम पर है उसे समझते हैं, तो पासवान जाति का वोट बैंक मात्र पांच फीसदी है। ये समुदाय चिराग पासवान को वोट करेगा लेकिन गैर पासवान दलित वोट जिसे नीतीश ने महादलित कैटगरी का दर्जा दिया है, उसका वोट शेयर 11 फीसदी है। माना जाता है कि इस कैटगरी का वोट नीतीश और भाजपा के खाते में जाएगा (पासवान दलितों में दबंग जाति है, जबकि बाकी पिछड़े हैं)।
भाजपा ऊंची जाति के वोटरों को भी लुभाएगी और यादवों (जो लालू यादव के कोर वोटर और समर्थक रहे हैं) को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों जैसे कुर्मी (नीतीश कुमार की जाति), कोयरी-कुशवाहा और अन्य अति पिछड़ी जातियों (जिनमें 40 से ज्यादा जातियां आती हैं) के वोटर नीतीश कुमार और भाजपा को वोट कर सकते हैं। लालू यादव के समर्थक समुदाय की आबादी करीब 35 फीसदी है। एक बार, लालू यादव के इन समर्थकों ने, नीतीश कुमार के प्रति अपनी वफादारी जताई थी, जब उन्होंने ग्राम पंचायतों और अन्य जमीनी निकायों में उनके लिए आरक्षण शुरू कर उन्हें सशक्त बनाया था।
दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव और कांग्रेस मुसलमानों, सवर्णों और यादवों के छोटे वर्गों को फिर से संगठित करने में जुटे हैं। नीतीश कुमार ने बिहार के उन प्रवासी मजदूरों की आलोचना की थी जो लॉकडाउन के समय घर लौट आए थे। कोरोनोवायरस संकट से निपटने में भी उनकी सरकार की गहरी खामियां उजागर हुई थीं। और जब राज्य में बाढ़ फिर से विपदा बनकर आई तो वो लाचार प्रशासक के तौर पर नजर आए। लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें फीडबैक दिया है कि वो अभी भी लोकप्रिय हैं और उनका चुनावी अंकगणित मजबूत है क्योंकि सामने कोई विकल्प नहीं है।
नीतीश कुमार ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के जरिए राज्य के गरीबों के खाते में पिछले छह महीनों में 12000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ट्रांसफर करवाए हैं। परिवारों को साइकिल, स्कूल यूनिफॉर्म खरीदने और स्कॉलरशिप के लिए भी अग्रिम भुगतान किए गए। लॉकडाउन में स्कूल बंद होने पर मिड-डे मील की राशि के पैसे भी उन्हें दिए गए ताकि बच्चे इस योजना के लाभ से वंचित न हो सकें।
ये सब मतदाता के गुस्से को रोकने में मदद कर सकता है और फिर पीएम मोदी का बहुत बड़ा लाभ है जिनकी लोकप्रियता सबसे ऊपर है। इसलिए जब चिराग पासवान सार्वजनिक तौर पर काम कर रहे होंगे और नीतीश कुमार निजी तौर पर, तब भी ये भाजपा ही होगी जिसकी धड़कनें तेज होंगी। और पासवान फैक्टर फेल हो सकता है।