महाराष्ट्र में तीन पहियो वाली सरकार ने ठीक-ठाक तरीके से अपना एक साल तो गुजार लिया है। हालांकि कई बार लगा कि बस अब ये सरकार गिर गई। लेकिन फिर कुछ न कुछ करके ये सरकार बच जाती है। लेकिन पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस और शिवसेना में सबकुछ सही नहीं लग रहा है और शिवसेना की तरफ से लगातार मुफ्त की सलाहें दी जा रही है, जिसमें कांग्रेस नेतृत्व और यूपीए अध्यक्ष पर भी टिप्पणी की गई है।
अब तो कांग्रेस कार्यकर्ताओं में असंतोष दिख रहा है। मुंबई कांग्रेस महासचिव विश्वबंधु राय ने पार्टी की हालत बयान करते हुए एक चिट्ठी लिखी है जिसमें उन्होंने लिखा कि कांग्रेस सिर्फ इस सरकार में एक सहयोगी दल बनकर रह गई है। शिवसेना और एनसीपी कांग्रेस को दीमक की तरह कमजोर कर रही है। इसके साथ ही मंत्रीपद पर बैठे कांग्रेस नेताओं का भी पार्टी को मजबूत बनाने में कोई योगदान नहीं है। विपक्ष के साथ सहयोगी दल भी हमारी वोट बैंक में सेंध लगाकर पार्टी को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
हालांकि ऐसा पहली बार नहीं हुआ है, कुछ दिन पहले खुद सोनिया गांधी ने सीएम उद्धव ठाकरे को खत लिखकर कॉमन मिनिमम एजेंडे की याद दिलाई थी। एससी-एसटी समाज की योजनाओं के लिए कांग्रेस के मंत्रियों को पर्याप्त फंड देने की मांग की थी। जिसके बाद तुरंत ठाकरे सरकार हरकत में आई थी।
साल 2019 में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे बहुत ही हैरान करने वाले थे, जिसमें भाजपा को सबसे ज्यादा 105 सीटें मिली थी, लेकिन सरकार बना ली शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस ने। इस गठबंधन में सबसे कम सीटें कांग्रेस की ही थी और शायद शिवसेना कांग्रेस को बार-बार इसी बात को अहसास दिला रही है। हालांकि सरकार कांग्रेस के बलबूते पर ही टिकी है। लेकिन बावजूद इसके शिवसेना कांग्रेस को उकसाने से कोई कमी नहीं रख रही है।
जून के सामना के संपादकीय में कांग्रेस की तुलना एक किरकिराने वाली खटिया से की, तो वहीं शारद पवार के जन्मदिन के मौके पर उन्हें यूपीए का नेतृत्व करने की चर्चा को संजय राउत ने हवा दे दी। जिस बात को खुद पवार और उनकी पार्टी के नेताओं ने नकार दिया। हाल ही में फिर एक बार सामना के जरिये कांग्रेस को कमजोर बताते हुए देश में भाजपा को टक्कर देने के लिए विपक्ष की कमी होने का कटाक्ष भी किया।
हालांकि अब कांग्रेस के राज्य स्तर के नेताओं ने भी आक्रामक रूप अपना लिया है और कांग्रेस के स्थापना दिवस के कार्यक्रम में कांग्रेस नेताओं ने साफ किया की शीर्ष नेतृत्व पर कोई बयानबाजी नहीं सही जाएगी।
आगामी मुंबई महानगर निगम के चुनावों पर नजर गड़ाए बैठी भाजपा और एमएनएस शिवसेना को निशाने पर लेने के लिए तैयार है। ऐसे में हो सकता है कि शिवसेना का तेवर अपने जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना और हिंदुत्व वोट बैंक को बहलाने की कोशिश हो।
आपको बता दें कि महाराष्ट्र सरकार में मुख्यमंत्री पद शिवसेना के पास और ज्यादातर मलाईदार खाते एनसीपी के कोटे में है। वहीं कांग्रेस के पाले में कुछ खास नहीं गया। ऐसे में जमीनी कार्यकर्ताओं को सत्ता का लाभ दिलाना कांग्रेस नेताओं के लिए सिर दर्द बना हुआ है। इसलिए कुछ ही दिन पहले कांग्रेस के पार्षदों ने एनसीपी में प्रवेश किया, तो दूसरी ओर एनसीपी की एक अंदरूनी मीटिंग में डिप्टी सीएम अजित पवार ने शिवसेना के साथ लंबे समय तक गठबंधन में रहना है, तो मिल जुलकर रहने की सूचना अपने पार्टी पदाधिकारियों को दी। माना जा रहा है कि आने वाले निकाय चुनावों में साथ लड़ने की तैयारी भी शिवसेना और एनसीपी ने कर ली है। इससे स्पष्ट हो रहा है कि गठबंधन की सरकार में कांग्रेस को ताक पर रखा जा रहा है।
ऐसे में आने वाले चुनावों के लिए अपनी ताकत बढ़ाने पर कांग्रेस पार्टी जोर दे रही है। 2014 से महाराष्ट्र में कांग्रेस का हो रहा पतन देखते हुए इस बार मिली सत्ता कांग्रेस के लिए संजीवनी मानी जा रही है। ऐसे में इस सत्ता का फायदा पार्टी कैडर बढ़ाने में इस्तमाल करने के लिए कांग्रेस को तीखे तेवर दिखाना जरुरी है।
पिछले 5 सालों में सत्ता में रहकर शिवसेना ने जो भाजपा के साथ किया वही अब कांग्रेस शिवसेना और एनसीपी के साथ करेगी ऐसा जानकारों का मानना है। दरअसल, कांग्रेस और एनसीपी ने कई सालों तक अघाड़ी की गठबंधन सरकार चलाई थी। दोनों पार्टियों के बीच कई बार नोकझोंक होती थी लेकिन सत्ता में टिके रहते थे। अब देखना ये होगा कि अलग विचारधारा वाली शिवसेना के साथ कैसे और कब तक ये सरकार चल सकेगी।