कांग्रेस में सब चंगा है ये जो लोग सोच रहे हैं वो बहुत मासूम हैं। कांग्रेस में कुछ बड़े नेताओं ने एक पत्र लिखा और पार्टी के लिए सुझाव दिए। लेकिन इसके बाद इन नेताओं पर भाजपा के साथ मिले होने, कांग्रेस से मोह भंग होने जैसे आरोप लगे। ये इन नेताओं के लिए अपमान ही होगा क्योंकि इन्होंने पूरी जिंदगी कांग्रेस के साथ बिता दी। गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, कपिल सिब्बल जैसे नेताओं के लिए ये शब्द अपमानजनक थे, लेकिन अब इन नेताओं के पद बदले जाना इससे भी ज्यादा अपमानजनक है।
ओल्ड गार्ड को किनारे लगा दिया
व्यापक फेरबदल के नाम पर जिस तरह से ओल्ड गार्ड को किनारे कर कांग्रेस ने अपने युवराज राहुल गांधी के वफादारों को भाव दिया है। ये वही लोग है जो चाहते हैं कि अध्यक्ष पद पर राहुल गांधी की दोबारा ताजपोशी हो। माना भी जा रहा है कि अब राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष बनाया जा सकता है। उससे पहले सोनिया गांधी ने फेरबदल कर उन नेताओं के पर कतर दिए हैं, जिनसे राहुल अपने पहले कार्यकाल में भी सहज नहीं थे।
गांधी परिवार की ही रहेगी पार्टी
इससे ये भी जाहिर है कि कांग्रेस पार्टी को गांधी परिवार से मुक्ति नहीं मिलेगी, जो लेटर लिखने वाले लोग थे वो यही चाहते थे। उन्हें साल 2019 में मिली हार के बाद चिंता थी। 2019 चुनावों में करारी शिकस्त के बाद जब राहुल ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, लेकिन माना जा रहा था कि वो दोबारा तो जरूर लौटेंगे, लेकिन सवाल था कब? और इस ओल्ड गार्ड का क्या होगा? अब जो फेरबदल किए गए हैं इससे लग रहा है कि जल्दी राहुल बाबा दोबारा अध्यक्ष बनेंगे।
23 कांग्रेसी नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी और एक फुलटाइम असरदार नेतृत्व की मांग की थी। इसके बाद 11 सितंबर को पार्टी संगठन में बड़ा फेरदबल करते हुए सोनिया ने जिन नामों को किनारे लगाया है, उनमें पत्र लिखने वाले 23 नेताओं में शामिल रहे गुलाम नबी आजाद सबसे प्रमुख हैं। आजाद जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे हैं। फिलहाल राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं।
उनकी महासचिव पद से छुट्टी कर ये संकेत भी दे दिया गया है कि अगले साल उच्च सदन में कार्यकाल खत्म होने के बाद उन्हें वापसी का मौका शायद नहीं दिया जाएगा। उनसे हरियाणा का प्रभार भी ले लिया गया है, जहां के एक वरिष्ठ नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा भी पत्र लिखने वालों में थे। हालांकि पार्टी की कार्यसमिति में उन्हें रखा गया है। इसी तरह आनंद शर्मा को भी वर्किंग कमेटी में ही समेट दिया गया। कपिल सिब्बल का भी कद छोटा कर दिया गया है।
आजाद के अलावा मोतीलाल वोहरा, अंबिका सोनी, मल्लिकार्जुन खड़गे और लुइजिन्हो फैलेरियो को भी महासचिव पद से हटाया गया है। ये सभी परिवार के पुराने वफादार हैं। इनको उम्र का हवाला दिया गया है। दूसरी तरफ पत्र लिखने वाले नेताओं में से जो राहुल की पसंद के थे वो प्रमोट भी कर दिए गए हैं। इनमें सबसे बड़ा उदाहरण जितिन प्रसाद का है।
वो तो लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी छोड़कर भी जा रहे थे। चिट्ठी भी लिखी लेकिन इसे बावजूद उन्हें पश्चिम बंगाल जैसे राज्य का प्रभार दिया गया है, जहां पर अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। लेकिन जो पार्टी के साथ हमेशा रहे और कभी छोड़ने का सोचा नहीं, उनका पद छोटा किया जा रहा है।
हैरान करने वाला है सुरजेवाला का प्रमोशन
इन सबके बीच रणदीप सिंह सुरजेवाला का प्रमोशन सबसे हैरान करने वाला है। उन्हें उस 6 सदस्यों में शामिल किया गया है जो पार्टी संगठन और कामकाज से जुड़े मामलों में सोनिया गांधी की मदद करेगी। पार्टी में बदलाव और आगे का रास्ता तय करने की जिम्मेदारी भी इसी कमेटी की होगी। इस कमेटी में सुरजेवाला के अलावा एके एंटनी, अहमद पटेल, अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल, मुकुल वासनिक हैं।
इन सभी की परिवार के प्रति वफादारी संदेह से परे मानी जाती है। राहुल गांधी के पसंदीदा माने जाने वाले सुरजेवाला को हरियाणा विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था, लेकिन फिर भी उनका कद बढ़ता जा रहा है। मुख्य प्रवक्ता के बाद, पार्टी महासचिव, वर्किंग कमेटी के सदस्य, अध्यक्ष को परामर्श देने वाली समिति के सदस्य और कर्नाटक का प्रभार भी।
वो शायद कांग्रेस के पहले नेता है जो एक साथ इतना कुछ पाने वाले है। इस पूरी कवायद में दो चीजें सबसे ज्यादा अहम है। राजस्थान में सचिन पायलट को सारे पदों से हटा दिया गया था, इसके बाद भी उन्हें कोई भूमिका नहीं दी गई। वहीं किसी जमाने में राहुल के राजनीतिक गुरु रहे दिग्विजय सिंह की कांग्रेस वर्किंग कमेटी में दो साल के बाद वापसी हुई है।