लंबे वक्त से देश की सबसे पुरानी और सत्ता में सबसे ज्यादा रहने वाली कांग्रेस पार्टी अपने नेता के लिए संघर्ष कर रही है। ऐसे में इस पार्टी पर लोगों का विश्वास भी खत्म होता जा रहा है, क्योंकि जो पार्टी अपना अध्यक्ष नहीं चुन पा रही हैं वो देश को एक मजबूत सरकार कैसे देगी। राहुल गांधी अध्यक्ष बने नहीं काम बना फिर से सोनिया गांधी अध्यक्ष बन गई, लेकिन अब कांग्रेस पार्टी के अंदर स्थाई अध्यक्ष की मांग उठी है।
पार्टी के कई बड़े नेताओं ने एक पत्र लिख, अपनी चिंता व्यक्त की है। इस चिट्ठी को कांग्रेस के 23 नेताओं ने लिखा है और इस खत के जरिये कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल खड़े किए गए हैं। साथ ही ये भी कहा गया था कि पार्टी को एक ऐसा अध्यक्ष चाहिए जो पूर्ण रूप से पार्टी को वक्त दे सके।
इस चिट्ठी ने सोनिया गांधी को आहत किया और सोनिया ने अपने इस्तीफे की पेशकश की और कहा कि पार्टी अपना नया अध्यक्ष चुन सकती है। हालांकि CWC की लंबी मीटिंग के बाद नतीजा यही निकला कि सोनिया ही फिलहाल अध्यक्ष रहेंगी। अब सोचिए कि अगर सोनिया अपने फैसले पर टिकी रहती और इस्तीफा दे देतीं तो क्या होता? ऐसा ही कुछ साल 2019 में चुनाव हारने के बाद राहुल गांधी ने किया था। अब अगर सोनिया भी नहीं तो कौन है वो जो पार्टी का अध्यक्ष बन सकता है।
अहमद पटेल
अब क्योंकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं और मार्गदर्शक मंडल में शुमार कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद राहुल गांधी की आंख की किरकिरी बन गए हैं और बात जब पार्टी छोड़ने की आ गयी है तो ऐसे में पार्टी में अच्छे दिन किसी के आए हैं तो वो अहमद पटेल हैं। पटेल लगातार यही प्रयास कर रहे हैं कि वो अपने को सोनिया गांधी और राहुल गांधी का विश्वासपात्र दिखा सकें।
पटेल में सबसे आगे निकलने की होड़ कितनी जबरदस्त है इसे CWC बैठक से समझ सकते हैं। बैठक में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने आनंद शर्मा पर पत्र लिखने का आरोप लगाया। इसके साथ ही पटेल ने खेद व्यक्त किया कि आजाद, मुकुल वासनिक और आनंद शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता उस पत्र पर हस्ताक्षर करने वाले लोगों में शामिल थे।
इन बातों के अलावा बात अगर पटेल की पॉलिटिक्स पर पकड़ की हो तो पटेल का शुमार कांग्रेस के उन नेताओं में है जिन्हें 3 को 13 करने की कला बखूबी आती है। कई ऐसे मौके आ चुके हैं जिनमें पटेल ने बताया है कि उनके सौम्य चेहरे के पीछे एक शातिर रणनीतिकार है जिसके अंदर ये खूबी है कि वो अध्यक्ष बन कांग्रेस पार्टी की दशा और दिशा बदल सकता है।
प्रियंका गांधी
एक वर्ग वो है जो ये मानता है कि कांग्रेस में अध्यक्ष गांधी परिवार से ही होना चाहिए। तो ऐसे में लोगों का कहना है कि अगर सोनिया और राहुल निकल जाते हैं तो ये पद प्रियंका गांधी के पास जाए। तो अगर कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष प्रियंका गांधी बनती है, तो वैसे ये कोई हैरान करने वाली बात नहीं होगी। क्योंकि यूपी में योगी सरकार की नाक में दम करने वाली प्रियंका ही है।
अगर प्रियंका एक राज्य की जिम्मेदारी जब कुछ इस तरह निभा रही हैं तो अगर उन्हें पार्टी राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दे तो उनके तेवर कुछ और ही होंगे। इसके अलावा जैसे राजस्थान में उन्होंने सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा निपटाया उसने भी इस बात की तरफ इशारा कर दिया कि उनमें अध्यक्ष बनने की काबिलियत है।
अशोक गहलोत
भले ही राजस्थान में उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट से हुए गतिरोध के बाद अशोक गहलोत सुर्खियों में रहे हों और राज्य में नौबत सरकार गिरने की आ गयी हो मगर जिस तरह बीच भंवर में फंसी अपनी खुद की कश्ती को अशोक गहलोत ने सूझ बूझ से निकाला कहीं न कहीं इससे गृह मंत्री अमित शाह और पीएम मोदी भी सकते में पड़ गए होंगे।
राजस्थान में जिस शातिर अंदाज में अशोक गहलोत ने अपनी कुर्सी बचाई साफ हो गया कि ये सब केवल और केवल अनुभव के कारण ही हुआ है। अशोक गहलोत का जैसा कांग्रेस में रुख है ये कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि वो एकमात्र ऐसे नेता हैं जो आपदा को अवसर में बदलना बखूबी जानते हैं।
शशि थरूर
वो तमाम लोग जो आज कांग्रेस की आलोचना करते हैं और उसे एक ही परिवार की पार्टी बताते हैं उनका मानना है कि जब जब बात ऑरा या पॉलिटिकल प्रेजेंस की आएगी तो वो शख्स जो राहुल और प्रियंका गांधी की बराबरी कर सकता है वो सिर्फ और सिर्फ शशि थरूर हैं।
इसमें कोई शक नहीं कि वर्तमान में थरूर का शुमार देश के इंटीलेक्चुअल्स में है वहीं जब हम उनके ट्वीट्स का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि थरूर जिन मुद्दों को उठाते हैं वो न केवल देश के आम आदमी से जुड़े मुद्दे होते हैं बल्कि थरूर अपने ट्वीट्स के जरिये ये भी बताते हैं कि सत्तापक्ष पर चोट कैसे और किस जगह करनी है।
कुल मिलाकर अगर थरूर अपने ट्वीट्स में विटी और सर्कास्टिक हैं तो वहीं सदन में भी तीखे सवाल पूछ कर वो सत्तापक्ष का मुंह बंद कर देते हैं। जैसी राजनीति की जरूरत है कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए शशि थरूर एक परफेक्ट चॉइस हैं।
कैप्टन अमरिंदर सिंह
राजनीति अवसर का खेल है और अगर हम पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को देखते हैं तो मिलता है कि दबंगई और निर्णय लेने के मामले में पूरी कांग्रेस पार्टी एक तरफ है जबकि कैप्टन अमरिंदर सिंह दूसरी तरफ। बात सीधी और साफ है जो आदमी पार्टी के गलत और सही को सही कहने में नहीं हिचकता अगर उसे पार्टी की कमान दे दी जाए तो वो अवश्य ही उन कमियों को दूर करेगा जिनके चलते कांग्रेस लगातार बैक फुट में आ रही है।
वहीं बात कैप्टन और राहुल गांधी के रिश्तों की हो तो कैप्टन को नहीं लगता है कि राहुल गांधी इस निर्णायक वक्त में कांग्रेस पार्टी की कमान संभाल सकते हैं। यदि कैप्टन कांग्रेस के अध्यक्ष बनते हैं तो भले ही फैसले सख्त हों लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान की अपेक्षा कांग्रेस मजबूत होगी और वो करिश्मा करेगी जो शायद ही किसी ने सोचा हो।