वर्तमान में जब कोरोना महामारी ने दुनियाभर में अपने पांव पसार लिये हैं । अब तक लगभग 15 लाख लोग जहां इसके संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं । मरने वालों की तादाद भी लगभग 86 हजार तक पहुंच गई है, तो ऐसे में छोटी-छोटी लापरवाही भी भारी पड़ सकती है । यह महामारी इसी रफ्तार से बढ़ती रही तो करीब 100 साल पहले जिन लापरवाहियों की वजह से 5 करोड़ लोगों की जान चली गई थी । संभवतः इस बार दुनिया उस आंकड़े को भी पीछे छोड़ सकती है। जी हां, 100 साल पहले वर्ष 1918 से 1920 तक दुनिया के लगभग हर हिस्से को प्रभावित करने वाली महामारी स्पेनिश फ्लू के फैलने के दौरान भी विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों की चेतावनियों को नजरअंदाज करने का कई देशों की सरकारों ने किया था । जिसकी वजह से बीमारी ने वीभत्स रूप ले लिया था और इसे संभालना मुश्किल हो गया था।
जिस तरह से इस बार कोरोना वायरस के मामले में इटली व स्पेन जैसे देशों के लोगों ने गलती की । उन्होंने कोरोना वायरस को गंभीरता से नहीं लिया और इसके कारण अंततः यहां की स्थिति प्रलयंकारी हो गई । वैसी ही गलती स्पेनिश फ्लू के फैलने के दौरान स्पेन के लोगों द्वारा की गई थी। उस वक्त जबकि संसाधन कम थे और यातायात के साधन भी ज्यादा विकसित नहीं थे ।
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इसके बावजूद महामारी ने स्पेन को बुरी तरह से प्रभावित किया था। सबसे बड़ी यहां के लोगों ने डाॅक्टरों की सलाह को नजरअंदा करके की थी। धार्मिक नेताओं की बात उन्होंने इसके विपरीत अधिक मानी थी। स्थानीय पादरियों की ओर से जमोरा नामक स्पेन के एक शहर में लोगों से अपील की गई थी कि, वे शाम के वक्त प्रार्थना सभा में जुटें। डाॅक्टरों ने ऐसा न करने की चेतावनी दी थी, मगर किसी ने डाॅक्टरों की एक न सुनी।
इस तरह से प्रार्थना सभा सेंट रोको के सम्मान में नौ दिनों तक लगातार होती रही थी। इस दौरान लोगों ने अवशेषों को चूमना जारी रखा था। इसका नतीजा आखिरकार यह हुआ कि स्पेन में स्पेनिश फ्लू का संक्रमण सबसे तेजी से फैला। सबसे अधिक लोग स्पेन में जमोरा शहर में ही मारे गये। यही नहीं, यूरोप में स्पेनिश फ्लू के कारण जिस देश में सबसे अधिक मौतें हुईं, वह स्पेन ही था। इसी तरह की लापरवाही कोरोना वायरस के संक्रमण के फैलने के दौरान भी बीते दिनों ईरान में भी देखने को मिली थी । जहां लोगों को मस्जिदों की दीवारों को चूमते हुए देखा गया था। यहां भी अब तक कोरोना महामारी की वजह से 4 हजार से अधिक लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं।
भारत में भी जब स्पेनिश फ्लू ने दस्तक दी, तो इसकी वजह से यहां भी मरने वालों की लाइन लग गई थी। वर्ष 1918 के जून में इस बीमारी का पहला मामला सात पुलिसकर्मियों में पाया गया था । उसके बाद तो इसका संक्रमण इतनी तेजी से टेलीग्राफ ऑफिस, बॉम्बे पोर्ट ट्रस्ट, मिंट व रेचल मिल और हांगकांग शंघाई बैंक आदि में भी फैला की मरने वालों की लाइन लग गई। आमजन भी तेजी से इसका शिकार होने लगे।
वर्ष 1918 के जुलाई में ऐसे हालात हो गये थे कि हर दिन भारत में ढाई सौ से अधिक लोग स्पेनिश फ्लू के कारण दम तोड़ रहे थे। बार-बार अखबारों के माध्यम से, पोस्टर के जरिये और पंफलेट बंटवाकर लोगों से एक-दूसरे से दूर रहने की सलाह दी जा रही थी । मगर लोग मानने को तैयार ही नहीं थे।
एक तो लोगों की लापरवाही भारी पड़ी और ऊपर से ब्रिटिश सरकार की भारतीयों के प्रति उदासीनता ने भी हालात को भारतीयों के लिए और बिगाड़ने का काम किया।
पेल राइडर- द स्पेनिश फ्लू ऑफ 1918 के नाम से एक किताब है, जिसे लिखा है लॉरा स्पिनी ने।
उन्होंने इसमें लिखा था कि
“अपने ब्रिटिश सैनिकों को बचाने के लिए तो ब्रिटिश सरकार की ओर से तमाम इंतजाम किये गये थे।”
जो भारतीय सफाईकर्मी के तौर पर काम करते थे, उन्हें ब्रिटिश सैनिकों से दूर कर दिया गया था, ताकि ब्रिटिश सैनिकों में स्पेनिश फ्लू का संक्रमण न फैले । मगर स्थानीय लोगों की ब्रिटिश अधिकारियों की ओर से पूरी अनदेखी की गई थी, जिसके कारण भारतीयों की जान पर बन आई। डाॅक्टरों की भी उस वक्त भारी कमी थी |जिसकी वजह से हालात और खराब हो गये। बताया जाता है कि भारत में उस वक्त महामारी स्पेनिश फ्लू के कारण करीब पौने दो करोड़ लोग मारे गये थे।
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जिस क्वारंटीन की आज आवश्यकता कोरोना वायरस से लड़ने के लिए जताई जा रही है । इसे लेकर अमेरिका के लॉयोला विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक ई पैम्बुसियन और अन्य वैज्ञानिकों की एक टीम ने अपने शोध में पाया है कि स्पेनिश फ्लू के दौरान भी दुनिया के उन शहरों जैसे कि सैन फ्रांसिस्को, सेंट लुइस, मिलवाकी और कंसास आदि में मौतें कम हुई थीं, जहां पहले ही क्वारंटीन और लाॅकडाउन जैसे कदम उठा लिये गये थे। अनिवार्य रूप से लोगों को मास्क पहनने को कहा गया था। भीड़ के जमा होने पर रोक लगा दी गई थी ।
भारत में महात्मा गांधी ने भी लोगों से सोशल डिस्टेंसिंग बरतने की अपील उस वक्त की थी। साथ ही बाद में भारत में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का टीका जब लोगों को लगाया गया, तो काफी हद तक स्पेनिश फ्लू नियंत्रण में आ गया था।
इसलिए आज भी यह जरूरी है कि कोरोना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए विशेषज्ञों और सरकार के निर्देशों का पूरी गंभीरता से पालन किया जाए।