कोरोना वायरस का प्रकोप सिर चढ़ कर बोल रहा है। भारत में भी अब ये काफी बढ़ चुका है, माना जा रहा है कि भारत में भी कोरोना तीसरी स्टेज पर पहुंच रहा है और अगर वक्त रहते इस पर काबू नहीं पाया गया, तो भारत में इटली से भी खराब हालात हो सकते हैं। जिसके मद्देनजर केंद्र की मोदी सरकार और तमाम राज्य सरकारें कई कदम उठा रहे हैं। जिसमें ज्यादातर राज्यों में लॉकडाउन कर दिया गया है। तो वहीं केंद्र सरकार की तरफ से एक दिन का जनता कर्फ्यू लगाया गया था। जिसका असर काफी सकारात्मक दिखा। हालांकि सब कुछ बंद कर देने के बावजूद भी मामलों में गिरावट नहीं आई है।ऐसे में सरकार को अब ठोस कदम उठाने की जरूरत है। जैसे कि ज्यादा से ज्यादा टेस्ट की सुविधा कराना और ज्यादा लोगों को आइसोलेट करने की व्यवस्था करना।
कोरोना टेस्ट के लिए सरकार ने उठाया ठोस कदम
जहां सरकारें लोगों को आश्वासन दे रही हैं कि हम तैयार हैं तो वहीं लॉकडाउन कर डर भी दिखा रही है। इसमें कोई शक नहीं है कि अगर कोरोना वायरस से सुरक्षित रहना है तो घर में रहने के अलावा और कोई तरीका अभी तक सामने नहीं आ पाया है, लेकिन ये कब तक चलेगा। कभी तो लोग घरों से निकलेंगे, कब तक लोगों के धंधे खराब होते रहेंगे। खैर इसका जवाब तो सरकारों के पास अभी नहीं होगा लेकिन केंद्र सरकार की तरफ एक ठोस कदम उठाया है और वो कोरोना के टेस्ट से जुड़ा हुआ है।
केंद्र सरकार ने शनिवार को सिफारिश की है कि निजी प्रयोगशालाओं की ओर से हर एक कोरोना वायरस परीक्षण के लिए अधिकतम शुल्क 4,500 रुपये से अधिक नहीं लिया जाना चाहिए। निजी प्रयोगशालाओं में कोरोना के परीक्षण के लिए भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, एनएबीएल मान्यता प्राप्त सभी निजी प्रयोगशालाओं को कोरोना के टेस्ट करने की अनुमति भी दे दी गई है। इसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से अधिसूचित किया गया है।
नेशनल टास्क फोर्स की सिफारिश के मुताबिक, टेस्ट का अधिकतम शुल्क 4,500 रुपये से ज्यादा नहीं हो सकता है। वहीं संदिग्ध मरीजों की स्क्रीनिंग टेस्ट के लिए 1500 रुपये और कनफर्मेशन टेस्ट के लिए अतिरिक्त 3 हजार रुपये निर्धारित किए गए हैं। कोई भी निजी लैब इससे ज्यादा पैसा नहीं ले सकती है। केंद्र सरकार के निर्देशों में ये भी बताया गया है कि जांच की फीस सब्सिडी रेट पर ली जा सकती है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी इस निर्देश में ये भी कहा गया है कि इस नियम का उल्लंघन करते पकड़े जाने पर कड़ी कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
दिए गए हैं दिशा-निर्देश
दिशा-निर्देशों में सैंपल जुटाने के दौरान बेहद एहतियात बरते जाने की सलाह दी गई है। आईसीएमआर ने कहा है कि मरीजों के सैंपल लेते वक्त बायोसेफ्टी और बायोसिक्योरिटी का पूरा ख्याल किया जाना चाहिए। इसके लिए कोरोना के मरीजों के लिए अलग से सैंपल कलेक्शन सेंटर बनाए जाने की बात भी कही गई है। वहीं निजी प्रयोगशालाएं घरों से सैंपल भी ले सकती हैं, ताकि कोई मरीज दूसरे लोगों के संपर्क में न आ सके। दिशानिर्देशों में कहा गया है कि कोरोना वायरस का टेस्ट किट यूएस एफडीए से अनुमोदित या यूरोपीय सीई प्रमाणित होना चाहिए और इसकी पूरी सूचना भारत में ड्रग कंट्रोलर जनरल को होनी चाहिए। इसके साथ ही प्रयोगशाला के कर्मचारियों को इसके लिए उचित रूप से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। वहीं सभी बायोमेडिकल कचरे को राष्ट्रीय दिशानिर्देशों के अनुसार निपटाया जाना चाहिए।
बिना कारण के न कराएं टेस्ट
हालांकि सरकार ने लोगों से बिना कारण जांच न कराने की भी अपील की है। जांच कराने के लिए आपको क्वालिफाइड फिजिशियन से लिखवाना होगा। इस पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि ये जांच हर किसी को कराने की जरूरत नहीं है और जो लोग विदेश से यात्रा करके लौटे हैं या फिर जो लोग किसी विदेश से लौटने वाले नागरिक के संपर्क में आए हैं, उन्हीं लोगों को ये जांच करानी चाहिए।
गरीब कैसे कराएगा टेस्ट
ये टेस्ट निजी लैब में हो तो सकता है लेकिन क्या सरकार को इसे मुफ्त नहीं कर देना चाहिए था। क्योंकि एक गरीब इंसान को अगर कोरोना के लक्ष्ण नजर आएंगे तो वो इस टेस्ट का भार नहीं उठा पाएगा और सरकारी अस्पताल में पहले से ही काफी भीड़ है। तो ऐसे में सरकार को इस महामारी के दौरान ये टेस्ट मुफ्त कर देना चाहिए, ताकि हर कोई इसका पता लगा सके और ज्यादा से ज्यादा सतर्कता बरती जा सके। भारत में लगातार कोरोना वायरस के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं, ऐसे में जितने ज्यादा लोग अपना टेस्ट करवा सकेंगे (लक्ष्ण होने पर ही) और अपने घरों में रहेंगे तभी हम इस आपदा से बाहर निकल सकेंगे।