कोरोना वायरस ने सबकुछ हिला कर रख दिया है। पिछले एक साल से भारत ही नहीं बल्कि पूरा देश चुनौतियों का सामना कर रहा है। अब ऐसा लग रहा है कि शायद हम कोरोना वायरस महामारी से बाहर आ जाएंगे। लेकिन हम उस बीमारी से कब बाहर आएंगे जो कोरोना से भी पहले से चली आ रही है। भारत समेत दुनियाभर में पहले से मौजूद कई तरह की असमानताओं को COVID-19 महामारी ने और भी ज्यादा बढ़ा दिया। ऑक्सफैम की एक रिपोर्ट से ये बात सामने आई है।
द इनइक्वैलिटी वायरस शीर्षक वाली ऑक्सफैम की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस महामारी की वजह से अर्थव्यवस्था को काफी चोट आई है। इसके चलते लाखों गरीब भारतीयों की नौकरियां चली गईं, लेकिन अरबपतियों की संपत्ति में बढ़ोतरी हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारतीय अरबपतियों की संपत्ति में लॉकडाउन के दौरान 35 फीसदी और 2009 से 90 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। सोचिये जब भारत में आम इंसान एक एक दाने का मोहताज हो गया है तब भी उद्योगपतियों की कमाई में इजाफा हो रहा है।
इस पर ऑक्सफैम ने कहा है कि भारत के 100 अरबपतियों ने मार्च 2020 से अपनी किस्मत में 1297822 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी देखी है, जो 138 मिलियन सबसे गरीब भारतीय लोगों में से हर एक को 94045 रुपये का चेक देने के लिए पर्याप्त है। असल में महामारी के दौरान भारत के शीर्ष 11 अरबपतियों की संपत्ति में हुई बढ़ोतरी 10 साल के लिए NREGS योजना या 10 साल तक स्वास्थ्य मंत्रालय को चला सकती है।
ऑक्सफैम ने महामारी के चलते भारत में गरीब बच्चों के सामने स्कूली शिक्षा को लेकर पैदा हुई चुनौतियों का भी जिक्र किया है। उसने शिक्षा के डिजिटल तरीके को लेकर कहा है कि केवल 4 फीसदी ग्रामीण परिवारों के पास कंप्यूटर था और 15 फीसदी से कम ग्रामीण परिवारों के पास इंटरनेट कनेक्शन था।
वहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में असमानता को लेकर भी ऑक्सफैम का कहना है कि सबसे गरीब 20 फीसदी में से केवल 6 फीसदी के पास ही बेहतर स्वच्छता के नॉन-शेयर्ड स्रोतों तक पहुंच है, जबकि टॉप की 20 फीसदी आबादी में ये आंकड़ा 93.4 फीसदी का है। भारत की 59.6 फीसदी आबादी एक कमरे या उससे कम जगह में रहती है।
इस तरह बताया गया है कि कोरोना वायरस महामारी से निपटने को लेकर, बहुत बड़ी आबादी के लिए हाथ धोने और सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने जैसे उपायों को अपनाना संभव नहीं था। रिपोर्ट में कहा गया है कि गरीब परिवारों से संबंधित गर्भवती महिलाओं को अक्सर स्वास्थ्य मदद नहीं मिल पाती थी क्योंकि ज्यादातर सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों को COVID-19 टेस्टिंग सुविधाओं और अस्पतालों में बदल दिया गया था।
कोरोना वायरस महामारी के बीच में दुनिया के कई हिस्सों ने इससे निपटने के लिए वैक्सीन का इस्तेमाल शुरु कर दिया है। हालांकि इस बात को लेकर चिंता जताई जा रही है कि COVID-19 वैक्सीन तक पहुंच के मामले में अमीर और गरीब देशों के बीच असमानता की बड़ी खाई है। ये मसला इतना गंभीर है कि हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन तक ने इसे लेकर भारी चिंता जताई थी।
WHO के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस ने कहा था कि कुछ देशों में कोरोना वायरस वैक्सीन को पहले अपने ही लोगों को दिए जाने के चलन से वैक्सीन की पहुंच सब तक नहीं हो पाएगी। घेबरेयेसस का कहना है कि दुनिया एक विनाशकारी नैतिक विफलता की कगार पर है और इस विफलता की कीमत दुनिया के सबसे गरीब देशों में जिंदगियों और आजीविकाओं से चुकाई जाएगी।
हालांकि, यह असमानता वैक्सीन तक पहुंच रखने वाले और अभी भी उससे दू- दोनों तरह के देशों के लिए खतरा मानी जा रही है क्योंकि इससे कोरोना वायरस के नए और ज्यादा खतरनाक स्ट्रेन के पैदा होने को बढ़ावा मिल सकता है। जिसके चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी आगे और मार पड़ सकती है।