महीनों की सियासी उठापटक के बाद आखिरकार कर्नाटक के मुख्यमंत्री (Chief Minister of Karnataka) बी एस येदियुरप्पा (B S Yediyurappa) ने 26 जुलाई को अपना इस्तीफा राज्यपाल थावरचंद गहलोत को सौंप दिया। जुलाई 2019 में राज्य के 14 महीने की कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार के तख्तापलट के बाद मुख्यमंत्री बनने वाले येदियुरप्पा खुद भी 2 साल बाद आउट हो गए हैं।
राज्य सरकार में कथित तौर पर “ऑपरेशन कमल” (Operation kamal) की मदद से मुख्यमंत्री बनने वाले येदियुरप्पा को ही भाजपा ने बाहर कर दिया है। मुख्यमंत्री के तौर पर येदियुरप्पा के लिए अपनी गद्दी बनाए रखना हमेशा से मुश्किल रखा। उन्हें साल 2007 में एक हफ्ते, साल 2008 में साढ़े तीन साल, साल 2018 में 3 दिन और साल 2021 में 2 साल के कार्यकाल के बाद इस्तीफा सौंपना पड़ा है।
हालांकि इस बार तख्त छिनने के पीछे साल 2019 के तख्तापलट से संबंधित आरोपों का भरा-पूरा इतिहास है। विपक्षी विधायकों में सेंध, सदन में सोना, कोर्ट कचहरी, ऑडियो लीक और हाल ही में पेगासस खुलासे तक से उन्हें इस तख्त के लिए निपटना पड़ा है और क्या-क्या तिकड़म करने के आरोप लगे हैं?
31 मार्च 2021 को कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने येदियुरप्पा को झटका देते हुए जुलाई 2019 में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार को गिराने के लिए ‘ऑपरेशन कमल’ में उनकी भूमिका की जांच को मंजूरी दे दी थी। दरअसल ये कार्रवाई तब हुई थी जब एक ऑडियो लीक हुआ जिसमें येदियुरप्पा कथित तौर पर एक विधायक के बेटे को इस बात के लिए राजी करा रहे थे कि वो अपने पिता से इस्तीफा दिलवाये और फिर पार्टी बदल लें।
साल 2018 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था। 224 सीटों वाली विधानसभा में भाजपा को 104 सीटें मिली थी और इसके साथ ही वो सबसे बड़ी पार्टी बन कर सामने आई थी। जबकि कांग्रेस के पास 80 और जेडीएस के पास 37 सीटें थी। राज्यपाल ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया लेकिन कांग्रेस और जेडीएस ने भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए हाथ मिलाया और येदियुरप्पा को विश्वासमत साबित करने के पहले ही इस्तीफा देना पड़ा।
वहीं जून 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायक विधानसभा से इस्तीफा देकर मुंबई चले गए थे और इस्तीफे के तुरंत बाद तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने बागी विधायकों को अयोग्य ठहरा दिया था। इस कारण कांग्रेस-जेडीएस की 14 महीने पुरानी सरकार 23 जुलाई 2019 को सदन में बहुमत साबित करने में असफल रही और उसके पक्ष में 99 वोट जबकि विपक्ष में 105 वोट पड़े थे।
पूरे ड्रामे में कांग्रेस और जेडीएस शुरू से ही येदियुरप्पा पर आरोप लगाते रहे कि उन्होंने ‘ऑपरेशन कमल’ के तहत विधायकों को तोड़कर अपने पाले में मिलाया था। खासकर ऑडियो लीक के बाद इस आरोप को और बल मिला। हालांकि ये पहली बार नहीं था जब येदियुरप्पा ने कथित तौर पर ‘ऑपरेशन कमल’ के तहत अपनी स्थिति मजबूत की थी। साल 2008 विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा की अगुवाई में भाजपा को 110 सीटें मिली और वो बहुमत से 3 सीटें दूर रह गई थी।
ऐसे में उन्होंने 6 निर्दलीय विधायकों की मदद से सरकार बनाई। लेकिन फिर उन पर आरोप लगा कि उन्होंने ‘ऑपरेशन कमल’ के इस्तेमाल से विरोधी पार्टियों के विधायकों को तोड़ा और भाजपा विधायकों की संख्या 124 तक पहुंच गई।
साल 2019 में विधायकों के इस्तीफे के बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा विधायकों ने अपनी कवायद तेज कर दी और 19 जुलाई को कांग्रेस-जेडीएस सरकार पर विश्वास मत साबित करने को दबाव बनाने के लिए येदियुरप्पा ने पूरी टोली के साथ विधानसभा में सोकर रात गुजारी।
साल 2019 में कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिरने के पॉलिटिकल ड्रामे के बीच सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा था और पहले बागी विधायकों ने कुमारस्वामी से सुरक्षा के लिए Supreme courtका दरवाजा खटखटाया। 17 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया कि 15 बागी विधायकों को कर्नाटक सरकार विश्वास मत में शामिल होने के लिए बाध्य नहीं कर सकती।
आखिरकार 23 जुलाई को येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद पर वापसी का मौका तब मिला जब कांग्रेस-जेडीएस की सरकार बहुमत साबित करने में नाकाम रही। हालांकि येदियुरप्पा को विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप से छुटकारा नहीं मिला और ऑडियो लीक होने के बाद 31 मार्च 2021 को कर्नाटक हाईकोर्ट ने ऑपरेशन कमल में उनकी भूमिका की जांच का आदेश दिया। ऐसे में इतनी तिकड़म बाजी और कांग्रेस-जेडीएस सरकार के तख्तापलट के बाद अब खुद के तख्त चले जाने से येदियुरप्पा के हाथ निराशा लगी है।