नई दिल्ली: जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार जितनी पब्लिसिटी शायद ही किसी युवा नेता को मिली हो| दिन भर टेलीविजन में छाये रहना, बड़े बड़े सामाजिक आयोजनों में जाना और टीवी चैनलों की डिबेट में जाकर बीजेपी प्रवक्ता से भिड़ना कन्हैया का रोज का काम था| इसका परिणाम रहा कि सीपीआई ने कन्हैया कुमार को बेगुसराय से उम्मीदवार बना दिया| उम्मीदवारी घोषित होने के बाद ऐसा दिखाया जा रहा है जैसे कि सामने वाले नेता कन्हैया के सामने खड़े हुए हैं जबकि ऐसा नहीं है, कन्हैया उनके सामने खड़े होकर खुद का आस्तित्व तलाश रहे हैं|
आसान नही है राह- बामपंथ ने अपने ढहते किले को बचाने के लिए कन्हैया को उतारा है लेकिन उनके सामने कई सारी मुश्किलें हैं;
कन्हैया कुमार के सामने सबसे बड़ा है जातीय समीकरण जिसे पार करना उनके लिए बहुत मुश्किल है| बेगूसराय ने 19 प्रतिशत भूमिहार, 15 प्रतिशत मुस्लिम और 12 प्रतिशत यादव समाज है| ऐसे में वोट बटने तय है और सभी वर्गों के वोट कन्हैया को मिलेंगे ऐसा हो नही सकता है| गिरिराज सिंह भी खुद को भूमिहार कह रहे हैं तो ऐसे में उनके वोट बटने तय है| वही मुस्लिम और यादव समाज तनवीर हसन को वोट करेगा| तो कन्हैया के हिस्से में छुटपुट वोट आते दिखाई दे रहे हैं| किसी एक विशेष वर्ग के वोट उन्हें मिलेंगे ये कहा नहीं जा सकता है|
कन्हैया कुमार को महागठबंधन से उम्मीदवार नहीं बनाया गया जो कि उनके लिए सबसे बड़ी मुश्किल है| बामपंथ का ढहता किला अब उतना मजबूत नहीं है कि पार्टी के नाम पर वोट मिले| ऐसे में अगर आरजेडी, कांग्रेस, रालोद और सीपीआई मिलकर कन्हैया की उतारते तो उनकी एकतरफा जीत होती| लेकिन महागठबंधन का बिगाड़ कन्हैया कुमार के लिए मुश्किल है|
साबित हो या नहीं लेकिन आज भी बहुत सारे लोग कन्हैया कुमार को “टुकड़े-टुकड़े गैंग” का सरदार कहते हैं| आमजन में ये बात बहुत बारीकी से बैठाई गई है कि कन्हैया देशद्रोही बातें करता हैं| ऐसे में कन्हैया की ये छवि भी उनके लिए मुश्किल बन जाएगी|
जब बात पैसे खर्च करने की आएगी तो लाख कोशिशो के बाद भी कन्हैया कुमार कभी भी आरजेडी के तनवीर हसन और बीजेपी के गिरिराज सिंह से आगे नहीं जा सकते हैं| वर्तमान समय में पैसा चुनाव जिताने में अहम् योगदान रखता है इस बात को कोई नकार नहीं सकता है| ऐसे में कन्हैया कुमार पीछे होते दिखाई दे रहे हैं क्योकि वो सिर्फ खर्च के लिए पैसा इकट्टा कर पाए हैं| ये कन्हैया कुमार के लिए एक बड़ी समस्या है|
तो ऐसे में कन्हैया कुमार का जीतना एक विशेष वर्ग को ही लग रहा है| बीते दो सालों में कन्हैया को मीडिया ने दलितों का पोस्टर बॉय बनाया है लेकिन कन्हैया ने इस दौरान कोई जमीनी काम नहीं किया है| बीजेपी के गिरिराज सिंह और आरजेडी के तनवीर हसन के पास केंद्र स्तर तक के बड़े नेताओ का सपोर्ट है लेकिन कन्हैया के साथ ऐसा नहीं है|