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क्या जानते हैं आप कि ‘महिंद्रा एंड मोहम्मद’ से ‘महिंद्रा एंड महिंद्रा’ कैसे बन गयी ?

महिंद्रा एंड महिंद्रा का नाम भला कौन नहीं जानता? भारत की सबसे बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनियों में से यह एक है। दुनिया की यह सबसे बड़ी कंपनी है, जो ट्रैक्टर बनाती है। अरबों डॉलर का इस कंपनी का कारोबार है, मगर शायद आपको यह मालूम नहीं होगा कि जिस कंपनी को आज आप महिंद्रा एंड महिंद्रा के नाम से जान रहे हैं, यह कंपनी कभी महिंद्रा एंड मोहम्मद के नाम से जानी जाती थी।

बंटवारे का असर

बिल्कुल, जब कंपनी स्थापित हुई थी, यानी कि जब से यह कंपनी शुरू हुई, तब से इसका नाम महिंद्रा एंड मोहम्मद ही था। ऐसे मैं आपके जेहन में यह सवाल आ रहा होगा कि आखिर ऐसा क्या हो गया कि इसका नाम महिंद्रा एंड मोहम्मद से बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा हो गया? इसका संबंध दरअसल भारत के बंटवारे से है।।भारत के बंटवारे का गहरा असर इस कंपनी पर पड़ा। इतना गहरा असर पड़ा कि कंपनी ने अपने नाम को बदलकर महिंद्रा एंड मोहम्मद से महिंद्रा एंड महिंद्रा हमेशा के लिए कर दिया।

यूं हुई थी शुरुआत

जिस वक्त 1945 में कंपनी की शुरुआत हुई थी, उस वक्त यह कंपनी स्टील का कारोबार किया करती थी। कंपनी को केसी महिंद्रा, जेसी महिंद्रा एवं मलिक गुलाम मोहम्मद ने मिलकर शुरू किया था। इस तरह से यह इन तीनों की कंपनी थी। कंपनी महिंद्रा एंड मोहम्मद के नाम से जानी जाती थी। कंपनी की शुरुआत लुधियाना में हुई थी। करीब दो साल पहले कंपनी के चेयरमैन केशब महिंद्रा ने बीबीसी के साथ बातचीत में यह बताया था कि कंपनी को शुरू केसी महिंद्रा और जेसी महिंद्रा ने ही मिलकर किया था, मगर उन्होंने मलिक गुलाम मोहम्मद को भी इसमें अपना पार्टनर इसलिए बना लिया था, ताकि इसके जरिए हिंदू-मुस्लिम एकता का संदेश दिया जा सके। उनके मुताबिक मलिक गुलाम मोहम्मद की इस कंपनी में साझेदारी बहुत छोटी सी थी। फिर भी कंपनी का नाम महिंद्रा एंड मोहम्मद रखा गया था।

ऐसे बदला नाम

भारत को आजादी मिलने से पहले ही बंटवारे की मांग ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया था। इस दौरान भी महिंद्रा परिवार और गुलाम मोहम्मद की दोस्ती में कोई दरार नहीं आई। ये लोग साथ में मिलकर काम करते रहे। हालांकि, जब भारत का बंटवारा हो गया और पाकिस्तान एक अलग मुल्क बन गया तो इसके बाद मलिक गुलाम मोहम्मद पाकिस्तान चले गए। पाकिस्तान में उन्हें वहां का वित्त मंत्री बनने का मौका मिल गया। इस तरह से केवल देश का ही बंटवारा इस दौरान नहीं हुआ, बल्कि इनके कारोबार का भी बंटवारा हो गया। अब चूंकि गुलाम मोहम्मद का कंपनी में कोई हिस्सा नहीं रह गया था और इनकी साझेदारी भी समाप्त हो गई थी, ऐसे में महिंद्रा एंड मोहम्मद का नाम बदलकर महिंद्रा एंड महिंद्रा रख दिया गया। केशब महिंद्रा ने बीबीसी को बताया था कि बंटवारा हो जाने के बाद गुलाम मोहम्मद के परिवार के पाकिस्तान चले जाने के बाद भी गुलाम मोहम्मद के परिवार और महिंद्रा परिवार के बीच रिश्ता कायम रहा था। दोनों परिवार बंटवारे के बाद भी बातचीत किया करते थे। उनके बीच का केवल कारोबारी रिश्ता खत्म हुआ था।

कायम रहा रिश्ता

गुलाम मोहम्मद का परिवार पाकिस्तान जरूर चला गया था, लेकिन उसे इसका गहरा सदमा लगा था। परिवार इस बात से बेहद आहत था कि आखिर गुलाम मोहम्मद ने अपने इरादों के बारे में कभी भी महिंद्रा परिवार को क्यों नहीं बताया? मलिक गुलाम मोहम्मद को पाकिस्तान में और कामयाबी मिली। वर्ष 1951 में उन्हें पाकिस्तान का गवर्नर जनरल बना दिया गया। बताया जाता है कि भले ही वे पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बन गए थे, लेकिन महिंद्रा परिवार के साथ अपने रिश्ते को गुलाम मोहम्मद कभी भूल नहीं पाए थे। गणतंत्र दिवस की परेड जब 1955 में हो रही थी तो इस दौरान मुख्य अतिथि के तौर पर मलिक गुलाम मोहम्मद ही आए थे। केशब महिंद्रा के अनुसार यहां आने पर सबसे पहला फोन उन्होंने उनकी दादी को घुमाया था। इस तरह से गुलाम मोहम्मद के परिवार का रिश्ता महिंद्रा परिवार से अगली पीढ़ी तक भी चलता रहा था।

क्या चाहते हैं लोग?

महिंद्रा परिवार और गुलाम मोहम्मद के परिवार के बीच के रिश्ते की यह कहानी यह दर्शाने के लिए काफी है कि भले ही भारत और पाकिस्तान आज दो अलग मुल्क बने हुए हैं, लेकिन इन्होंने अपनी संस्कृतियों को हमेशा से आपस में साझा किया है। दोनों देशों के बीच संबंध थोड़े कड़वे जरूर हैं, लेकिन अब भी दोनों देशों के अमन पसंद करने वाले लोग दोनों देशों के बीच एक अच्छे रिश्ते की वकालत करते हैं। इसकी उम्मीद करते हैं।