आजाद भारत में राम मनोहर लोहिया का नाम ऐसे राजनेता के रूप में लिया जाता है, जो बिना किसी भय के खुलकर अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे। लोहिया ही वे नेता थे, जिन्होंने इंदिरा गांधी को गूंगी गुड़िया तक कह दिया था और जवाहरलाल नेहरू के बारे में कहा था कि वे रोजाना 25 हजार रुपये खर्च कर देते हैं। लोहिया क्या थे, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत की राजनीति में एक वक्त यह नारा हर युवा की जुबां पर हुआ करता था कि जब-जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता लेता है। शुरू से ही क्रांतिकारी विचार रखने वाले राम मनोहर लोहिया ने तो भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ भी चुनाव में ताल ठोंक दी थी। वर्ष 1962 में वे जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए फूलपुर सीट से खड़े हो गए थे और यहां तक कह दिया था कि मुझे मालूम है कि पहाड़ से टकराने मैं जा रहा हूं। मुझे यह भी मालूम है कि पहाड़ से पार नहीं पा सकता, लेकिन मैं यह जानता हूं कि यदि पहाड़ में मैंने एक दरार भी कर दी तो मेरा चुनाव लड़ना तो सफल हो ही जाएगा।
उस दौर में जब नेहरू की राजनीति में धाक जमी हुई थी और उनके कद के आगे किसी का भी खड़ा होना नामुमकिन दिखता था, उस वक्त बीमार देश के बीमार प्रधानमंत्री को इस्तीफा देने की बात कहने वाले लोहिया को मालूम होता था कि राजनीति में आगे क्या होने वाला है। तभी तो वर्ष 1967 में जब चुनाव हो रहे थे तो लोहिया ने पहले ही कह दिया था कि अब कांग्रेस के दिन लदने जा रहे हैं। लोहिया की बात सही भी हुई थी और उस वक्त कांग्रेस को नौ राज्यों में हार का मुंह देखना पड़ा था। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव ने एक बार बीबीसी के साथ बातचीत में लोहिया को याद करते हुए उन दिनों को याद किया था, जब वे एक चुनाव प्रचार में लोहिया के साथ थे। उन्होंने बताया था कि वर्ष 1963 में फर्रुखाबाद सीट पर उपचुनाव हो रहे थे। उस वक्त प्रचार के दौरान अपने साथियों के साथ वे लोहिया के साथ थे। उसी दौरान लोहिया ने उनसे सवाल किया था कि प्रचार के दौरान वे क्या खाते हैं और कहां रहते हैं। मुलायम ने बताया था कि इस दौरान वे लइया चना खाते हैं। जहां रात होती है, उसी गांव में वे सो भी जाते हैं। मुलायम ने कहा था कि यह सुनने के बाद लोहिया ने उनकी जेब में 100 रुपये का नोट डाल दिया था।
असली वारिस कौन?
लोहिया की मौत के बाद भारत की राजनीति में बहुत से राजनेताओं ने खुद को उनका वारिस बताना शुरू कर दिया। मुलायम सिंह यादव से लेकर लालू प्रसाद यादव, शरद यादव और रामविलास पासवान तक ने खुद के उनका वारिस होने का दावा ठोंक दिया। यह बात जरूर रही कि चाहे वे लालू प्रसाद यादव हों या फिर शरद यादव या फिर रामविलास पासवान, सभी की राजनीति में बहुत हद तक लोहिया की छाप देखने को मिली थी, मगर लोहिया के विचार और लोहिया के दर्शन पूरी तरह से ये लोग अपनी राजनीति में नहीं उतार पाए, क्योंकि धीरे-धीरे इनकी राजनीति जातिगत राजनीति की सीमा में ही बंद कर रह गई। वही जातिगत राजनीति, जिसके लोहिया कट्टर विरोधी रहे थे।
भाषाओं के राजा
जर्मनी से डॉक्टरेट की डिग्री हासिल करने वाले और अंग्रेजी के साथ मराठी, बांग्ला, फ्रेंच और जर्मन जैसी भाषाएं धाराप्रवाह बोलने वाले लोहिया जनता से अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए हमेशा हिंदी में ही बात करते रहे। समाज और राजनीति में उन्होंने हमेशा महिलाओं को भी बराबरी का हक देने का समर्थन किया। अपने निजी जीवन में भी राम मनोहर लोहिया बेहद बिंदास रहे। बताया जाता है कि एक बार महात्मा गांधी ने जब उन्हें सिगरेट छोड़ने की सलाह दी थी तो लोहिया ने उन्हें यह जवाब दिया था कि चलिए मैं आपको सोचकर बताऊंगा। कहा जाता है कि इसके तीन महीने बाद वे महात्मा गांधी से मिले थे और उन्हें कहा था कि मैंने सिगरेट पीना बंद कर दिया है। अपनी दोस्त रमा मित्रा के साथ भी लोहिया ने कभी अपने संबंधों को नहीं छिपाया और आजीवन उनके साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहते रहे।
लापरवाही ने ले ली जान
ऐसा माना जाता है कि लोहिया की मौत अस्पताल में डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से हुई थी। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी आत्मकथा बियोंड द लाइंस में भी इस बात का जिक्र करते हुए कहा है कि वे जब लोहिया से अस्पताल में मिलने के लिए गए थे तो लोहिया ने उनसे कहा था कि मैं कुलदीप इन डॉक्टरों की लापरवाही की वजह से मर रहा हूं। दिल्ली में जिस अस्पताल को आज डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल के नाम से जाना जाता है, इसी अस्पताल में लोहिया ने अंतिम सांस ली थी।