Headline

सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

TaazaTadka

गोदी मीडिया भी तो किसान आंदोलन का बैरिकेड बना हुआ है

Logic Taranjeet 29 December 2020
गोदी मीडिया भी तो किसान आंदोलन का बैरिकेड बना हुआ है

दिल्ली की सीमाओं पर किसान आंदोलन को एक महीने से ज्यादा हो गया है। इस दौरान किसानों ने काफी कुछ झेला है। शुरुआती दिनों में तो पानी की बौछार से लेकर आंसू गैस और सीमेंट के बैरिकेड के जरिये इन्हें रोका गया लेकिन इन रुकावटों से भी बढ़ी एक रुकावट है जो की गोदी मीडिया है। गोदी मीडिया ने इन किसानों को खालिस्तानी, दलाल, बिचौलिये, विपक्ष के बहकावे में आए लोग कह दिया। सरकार को लेकर तो किसानों ने पूरा धीरज रखा हुआ है, लेकिन गोदी मीडिया के लिए वो धीरज खत्म हो गया है। आंदोलन के अंदर गोदी मीडिया के बहिष्कार के तरह-तरह के पोस्टर लगे हैं, इसके अलावा कई पत्रकारों को कुत्ता, दलाल तक कहा गया है। वहीं रिपोर्टरों ने अपनी माइक आईडी तक हटा दी है, ताकि वो अपना कम कर सके और चैनल का नाम ना पता चले।

सिर्फ 1-2 चैनल नहीं पत्रकारिता की छवि खराब कर दी है

स्टूडियो से जब किसानों को आतंकवादी कहा जाएगा तो रिपोर्टरों का विरोध तो किया ही जाएगा। मीडिया संस्थानों का कारोबार अरबों रुपये का है लेकिन कर्जे में डूबे किसानों के बीच उनकी साख मिट्टी में मिल गई है। सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि बेहद ऐसे लोग है जो अब मीडिया को बेहद गंदी निगाहों से देखते एक पत्रकार की अहमियत को गोदी मीडिया ने पूरी तरह से धूमिल कर दिया है। किसानों ने यूट्यूब में स्वतंत्र पत्रकारों को और कई छोटे चैनलों को जमकर अपनी बात बताई लेकिन बड़े चैनलों का पूर्ण रूप से बहिष्कार किया।

किसान आंदोलन को लेकर इन कॉर्पोरेट चैनलों की रिपोर्टिंग पर अलग से लेख लिखा जा सकता है। लेकिन किसान आंदोलन जल्दी ही गोदी मीडिया को लेकर अपनी समझ बदलने लगा और इस आंदोलन में पहली बार एक अखबार ने जन्म लिया जिसका नाम है ट्रॉली टाइम्स। किसान एकता मोर्चा के नाम से ट्विटर हैंडल और यू ट्यूब चैनल बना लिया जिसके अब 10 लाख से ज्यादा सब्सक्राइबर हो गए हैं। किसानों का ये आंदोलन मीडिया से लड़ने के आंदोलन के रूप में भी आगे के वक्त में जाना जाएगा। उन्होंने कोई हिंसा नहीं की लेकिन आदर के साथ अपने विरोध से जता दिया कि उनका विश्वास गोदी मीडिया में नहीं रहा।

सरकार भी मीडिया स्पेस के लिए लड़ने लगा

अगर किसान गोदी मीडिया से अपने स्पेस के लिए लड़ रहा था तो सरकार भी अपने स्पेस के लिए लड़ रही थी। सरकार ने भी मीडिया स्पेस पर अपनी दावेदारी बढ़ा दी। किसानों को लेकर तरह-तरह के पोस्टर और दावे ट्वीट किए गए। एक महीने से लगेगा कि इस देश में एक ही मंत्रालय है कृषि मंत्रालय और सारे मंत्री कृषि मंत्री ही हैं। कृषि मंत्री किस किसान नेता से मिल रहे हैं इसकी तस्वीर रेल मंत्री ट्वीट कर रहे थे। खेती को लेकर सरकारी दावे की कहानी वैध और जरूरी स्टोरी लगे इसके लिए सरकार मैदान में उतर गई। मीडिया को कवर करना ही था, कई बार प्रधानमंत्री संबोधित जो करने लग गए।

भारत के इतिहास में किसानों के कानून को लेकर सरकार की तरफ से इतना बड़ा प्रचार युद्ध कभी नहीं लड़ा गया है। इतनी चर्चा अगर संसद में हो गई होती तो इस बिल को लेकर कई बातें बेहतर तरीके से सामने आ जातीं। वीडियो कांफ्रेंसिंग से पूरे देश के किसानों से बात करने का दावा हो रहा है तो दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों से भी बात हो सकती थी। संदेश साफ है जो भी आंदोलन करेगा, उसे सरकारी आयोजनों से छोटा कर दिया जाएगा।

1-2 साल इस्तेमाल कर लो फिर बदल देंगे

इस बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एक नई बात कह दी है। उन्होंने कहा है कि इस कानून को एक दो साल के लिए लागू हो जाने दीजिए, फिर कोई कमी नजर आएगी तो प्रधानमंत्री संशोधन कर देंगे। उधर प्रधानमंत्री ने कहा कि मुद्दों पर बात करने के लिए तैयार हैं लेकिन बात तथ्यों और तर्कों पर होगी। इन बयानों से साफ है कि सरकार कानून के विरोध से बिल्कुल विचलित नहीं है। आंदोलन को तय करना है कि वो संवाद का कौन सा रास्ता तय करता है।

विपक्ष का भी धीला रवैया

संसद में मदन मोहन मालवीय, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को याद किया गया। वहां पर आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह और भगवंत मान ने किसान बिलों की वापसी को लेकर नारे लगाए। लेकिन विपक्ष के विरोध को भी आप ठीक से देखिए। एक किस्म की औपचारिकता दिखेगी। और सरकार अपना पक्ष रखने के लिए कार्यक्रम कर रही हैं, पर्चे और पोस्टर बांट कर कही हुई बातों को दोहराया जा रहा है। दूसरी तरफ विपक्ष वापस लो के अलावा आम जनता तक ये पहुंचा पा रहा है कि क्यों इस कानून को वापस लेना चाहिए। लेकिन बहुत ही धीले रवैये से।

Taranjeet

Taranjeet

A writer, poet, artist, anchor and journalist.