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मोदी सरकार द्वारा भारतीय शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव

भारतीय शिक्षा प्रणाली को लेकर मोदी सरकार ने बड़ा बदलाव किया है। इसे आप भारतीय शिक्षा प्रणाली में क्रांतिकारी बदलाव के रूप में देख सकते हैं। मोदी सरकार ने पिछले 7 सालों में कई मास्टर स्ट्रोक मारे हैं, जो हालांकि बुद्दिजीवियों के समझ में अभी तक नहीं आए। जैसे कि नोटबंदी क्यों हुई थी? अर्थशास्त्रियों के पास आज भी इसका जवाब नहीं है। इसके अलावा मोदी सरकार के हर महीने जो मास्टर स्ट्रोक हमारी मीडिया दिखाता रहा है, उसमें अगर कुछ अच्छा और सच में मास्टर स्ट्रोक जैसा है तो वो ये बदलाव है।

नई शिक्षा प्रणाली में छात्रों को फायदा

नई शिक्षा प्रणाली के तहत छात्रों को अपने विषय चुनने की आजादी दी गई है। पहले ऐसा नहीं होता था, साइंस का छात्र आर्ट्स के विषय नहीं पड़ सकता था, लेकिन अब एक छात्र साइंस, कॉमर्स, आर्ट्स तीनों के विषय पढ़ सकता है। जो कि उनके अपनी रूचि पर निर्भर करेगा। यानी की एक छात्र हिस्ट्री के साथ साइंस भी पढ़ सकता है।

10+2 होगा खत्म

इन नए बदलावों में 10+2 का तरीका भी बदल दिया गया है। अब नई शिक्षा प्रणाली के तहत 5+3+3+4 के सिस्टम में बदल दिया है, जो कि पश्चिमी देशों से मेल खाता है। पुरानी शिक्ष प्रणाली में 10+2 में 6 साल से शिक्षा शुरु होती थी, लेकिन अब 3 साल से होगी। 3 से लेकर 6 साल तक बच्चा प्री स्कूल में पढ़ेगा और उसके बाद 2 साल के लिए क्लास 1 और 2 होगी। जिसके बाद 3-5 की पढ़ाई में बच्चों को इंटरैक्टिव शिक्षा दी जाएगी, और इसके बाद क्लास 6-8 तक मिडिल स्टेज होगी, जिसमें साइंस, सोशल साइंस जैसे विषयों पर ध्यान दिया जाएगा।

इसके बाद 9-12 में बच्चों की रूचि के हिसाब से पढ़ाया जाएगा। इससे जिन नौकरियों को हम निचले स्तर का मानते हैं उनके लिए पढ़ाया जाएगा और उसे भी सम्मानजनक नौकरी कहा जाएगा। इसमें बच्चों को वोकेश्नल ट्रेनिंग मिलेगी, जो कि पश्चिमी देशों में काफी फायदेमंद होता है।

छात्रों के लिए हैं कई अच्छे बदलाव

बच्चों को नई शिक्षा प्रणाली के तहत कक्षा 6 से ही इंटर्नशिप कराई जाएंगी, इसमें उन्हें वोकेशनल ट्रेनिंग दी जाएगी। साथ ही अब बोर्ड की परिक्षाओं का महत्व कम किया जाएगा। नई शिक्षा प्रणाली में एक और अच्छा बदलाव रिपोर्ट कार्ड को लेकर भी है। पहले सिर्फ टीचर ही बच्चों की प्रोग्रेस बताते थे, लेकिन अब छात्र भी खुदको परखेंगे की उन्होंने कितनी सीखा है और क्या सुधार आया है। बल्कि साथी छात्र भी दुसरे छात्र को जज करेंगे। इससे क्रिटिकल थिंकिंग को बढ़ावा मिलेगा।

सरकार ने बढ़ाया खर्च 

सरकार ने 6% जीडीपी शिक्षा क्षेत्र में खर्च करने की बात कही है, जो कि पहले 3 फीसदी होता था। ज्यादातर विकसित देशों की तुलना में भारत कम पैसे खर्च करता था शिक्षा क्षेत्र में। इसके अलावा सरकार ने परीक्षाओं में भी बदलाव किया है जिससे बच्चों को ज्यादा रट्टा न मारना पड़ा बल्कि समझने की जरूरत हो। अकसर परीक्षा के वक्त रट्टा मारकर पास हो जाना हमारे शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ी खामी है।

12वीं के बाद की शिक्षा में भी किए हैं कई बदलाव

कक्षा 12वीं के बाद की शिक्षा में भी काफी बदलाव किए गए हैं। अभी तक आप अगर अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ते थे तो वो खराब हो जाती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है। अब जो बदलाव किए गए हैं उसके मुताबिक 4 साल के डिग्री कोर्स में अगर आप 1 साल में पढ़ाई छोड़ते हैं तो आपको सर्टिफिकेट मिलेगा, दूसरे साल के बाद पढ़ाई छोड़ने पर डिप्लोमा और तीसरे साल के बाद पढ़ाई छोड़ने पर बैचलर डिग्री मिलेगी।

तो वहीं पूरे 4 साल का कोर्स करने पर बैचलर्स-रिसर्च डिग्री मिलेगी।अगर आपने 4 साल की बैचलर्स की है तो मास्टर्स में एमए, एमएससी 1 ही साल की होगी। जबकि 3 साल की डिग्री पर 2 साल के मास्टर्स कोर्स होंगे। विश्व के बड़े कॉलेज भी अब भारत में आ सकते हैं। सरकार की मानें तो अगले 10 सालों में वोकेशनल कोर्स को चरणबद्ध तरीके से जोड़ा जाएगा। 

विरोध भी हो रहा है

भाषा को लेकर इस नई शिक्षा प्रणाली में विवाद हो रहा है। सरकार का कहना है कि कक्षा 5 तक छात्रों की पढ़ाई लोकल या मातृ भाषा में होनी चाहिए। हालांकि ये कंपलसरी नहीं कहा गया है। इससे स्कूलों पर दबाव पड़ेगा कि वो बच्चों को अंग्रेजी में न पढ़ाएं, जिससे आगे आने वाले वक्त में उसे दिक्कत होगी। इतना ही नहीं एक राज्य से दूसरे राज्य जाने पर लोकल भाषा में पढ़ाई का भी काफी असर पड़ेगा। हालांकि ये थोपा नहीं जाएगा, साथ ही 9वीं कक्षा के बाद से बच्चों को विदेशी भाषाओं को सीखने का अवसर भी मिलेगा।

राज्य सरकारों से हक लिया गया

इन नए प्रावधानों में राज्य सरकारों समेत कई राजनीतिक दलों ने विरोध किया है। विरोधी दलों का कहना है कि राज्य सरकारों से इस बारे में कोई सलाह नहीं ली गई है। जबकि शिक्षा एक ऐस विषय है जिसमें राज्य सरकार का बेहद अहम रोल होता है। इसका विरोध कई राजनीतिक दलों के द्वारा किया गया है। साथ ही ऐसे आरोप भी लगाया जा रहा है कि इससे सारे अधिकार राज्यों से चीन लिए गए हैं और सभी फैसले केंद्र सरकार की तरफ से होंगे।

वास्तविक नहीं लगता

साथ ही ये भी कहा जा रहा है कि भारत में ये वास्तविक नहीं है। खासकर सरकारी स्कूलों में इस तरह की शिक्षा प्रणाली को लागू करने में परेशानी होगी। इसके अलावा हम साक्षरता दर को भी नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं। वहीं जो छात्र बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं चाहे फिर गरीबी की वजह से हो या किसी अन्य कारण से तो उनके लिए इसमें कुछ नहीं है। इन छात्रों को आप कैसे वोकेशनल कोर्स कराओगे। ये ऊपर से तो अच्छा लगता है लेकिन वास्तविकता से हट सकता है। हालांकि उम्मीद की जा सकती है कि ऐसा न हो और ये असल में जिस तरह से है वैसा ही लागू हो।