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सियाचिन ग्लेशियर को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती है। एक ओर भारत की सेना तो दूसरी ओर पाकिस्तान की सेना यहां हमेशा आंख गड़ाए बैठी हुई नजर आ जाती है।

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1688 ईस्वी का इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति, जिससे बढ़ी थी संसद की ताकत

Information Anupam Kumari 17 January 2021
1688 ईस्वी का इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति, जिससे बढ़ी थी संसद की ताकत

यह 1688 ईस्वी का समय था। इंग्लैंड में एक क्रांति हुई थी। इसे गौरवपूर्ण क्रांति के नाम से जाना जाता है। उस वक्त जेम्स द्वितीय का शासनकाल था। उसके शासन से लोग खुश नहीं थे। असंतोष बढ़ता जा रहा था। वह रोमन कैथोलिक चर्च की ताकत को बढ़ाने के पक्ष में था। राज्य के महत्वपूर्ण पदों पर वह उनकी नियुक्ति चाहता था। न्यायालय में भी अपने ही समर्थकों को उसने न्यायाधीश के पद पर नियुक्त कर दिया था।

जनता को नहीं हुआ बर्दाश्त

जनता अब इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। जनता समझ गई थी कि उसका मरना जरूरी है। तभी कैथोलिक शासन का उन्मूलन हो पाएगा। 1688 ईस्वी के जून में जेम्स द्वितीय को एक बेटा हुआ था। यह उसकी दूसरी कैथोलिक पत्नी से हुआ था। लोग अब इससे डरने लगे थे। उन्हें लग रहा था कि अब इसका शासन आगे भी चलता रह जाएगा। इसीलिए इस वक्त क्रांति हो गई थी।

हटना पड़ा गद्दी से

जेम्स द्वितीय को गद्दी से हटना पड़ा था। विलियम तृतीय को इंग्लैंड का सम्राट घोषित कर दिया गया था। मेरी इंग्लैंड की साम्राज्ञी बन गई थी। अधिकारों का घोषणा पत्र तब बनाया गया था। जितने भी काम जेम्स द्वितीय ने किए थे, सभी अवैध घोषित कर दिए गए थे। प्रजा सर्वोपरि हो गई थी। संसद को सर्वोपरि कर दिया गया था।

क्रूर शासक था जेम्स द्वितीय

जेम्स द्वितीय बहुत ही क्रूर शासक था। विरोधियों का वह दमन कर रहा था। हाई कमीशन नाम से एक न्यायालय की उसने स्थापना की थी। कोई कैथोलिक धर्म की आलोचना नहीं कर सकता था। कैथोलिक धर्म का प्रचार-प्रसार भी वह खूब कर रहा था। फ्रांस के साथ उसने दोस्ताना संबंध बनाकर रखा था। वह सोचता था कि जरूरत पड़ने पर वहां का राजा लुई 14वां से उसे मदद मिलेगी।

टेस्ट एक्ट

उस वक्त टेस्ट एक्ट बना हुआ था। यह जेम्स द्वितीय को पसंद नहीं था। इसकी वजह से राज्य कर्मचारी के तौर पर अंग्रेजी चर्च के अनुयायियों को नियुक्त करने में उसे दिक्कत हो रही थी। टेस्ट एक्ट को वह रद्द करना चाह रहा था। संसद ने उसे इसकी मंजूरी नहीं दी। ऐसे में संसद को भी जेम्स द्वितीय ने तब स्थगित कर दिया था।

कैथोलिक को अधिकार

कैथोलिक को वह अधिकार प्रदान किए जा रहा था। कैथोलिक के खिलाफ जितने भी कानून बने थे, उन्हें वह रद्द कर रहा था। ऐसे में जनता का गुस्सा फूटने लगा था। विश्वविद्यालयों के भी काम को वह बाधित कर रहा था। यहां भी उसने कैथोलिक धर्म के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था कर दी थी। इससे भी इंग्लैंड की जनता में नाराजगी फैल रही थी। धार्मिक न्यायालय की स्थापना से भी जनता गुस्से में थी। वह चाहता था कि पादरी उसकी इच्छा के मुताबिक काम करें। कैथोलिक धर्म के विरोधियों को धार्मिक न्यायालय बहुत कड़ी सजा दे रही थी।

बढ़ाना चाह रहा था सेना

जेम्स द्वितीय अपनी सेना को भी बढ़ाना चाह रहा था। सेना में उसने ज्यादातर कैथोलिक को शामिल कर लिया था। ऐसे में लोग डरने लगे थे। लोग समझ रहे थे कि जेम्स द्वितीय का मनोबल इससे बढ़ता जाएगा। वह और भी क्रूरतापूर्वक शासन करेगा। लोग जान रहे थे कि कैथोलिक धर्म का वह खूब प्रचार-प्रसार करेगा। ऐसे में लोगों के बीच आतंक बढ़ता जा रहा था। रोमन कैथोलिक को ज्यादा तवज्जो देने से इंग्लैंड की जनता में असंतोष बढ़ रहा था। यही बाद में क्रांति में तब्दील हो गया।

उत्साहजनक परिणाम

इंग्लैंड की गौरवपूर्ण क्रांति इंग्लैंड के लिए बड़ी फायदेमंद रही। इसके उत्साहजनक परिणाम सामने आए। न्यायालय इससे स्वतंत्र हो गए। धार्मिक सहिष्णुता भी बढ़ने लगी। संसद के अधिकार भी इससे बढ़ गए। फ्रांस को इंग्लैंड ने हरा दिया। नई यूरोपीय नीति भी इसके बाद अपना ली गई। फिर आया 1689 ईस्वी का वक्त। अधिकार विधेयक तब इंग्लैंड में पारित किया गया था। संसद की सहमति के बिना राजा किसी कानून को स्थगित नहीं कर सकता था। किसी कानून को लागू करने के लिए भी संसद की मंजूरी चाहिए थी।।

बढ़ती गई संसद की ताकत

इस तरह से इंग्लैंड में संसद की ताकत बढ़ने लगी थी। धीरे-धीरे राजतंत्र खत्म होता चला गया। राज्य सत्ता पर उसका पूरा नियंत्रण हो गया। सेना भी उसके अधिकार में आ गई। इस तरह से संसद सर्वोपरि हो गई। इंग्लैंड के लोगों को इससे बड़ी राहत मिली। गौरवपूर्ण क्रांति इंग्लैंड के लोगों के लिए इस तरह से जीवनदायिनी साबित हुई।

Anupam Kumari

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