दुनियाभर में भारत की प्रसिद्धि है। भारत के लोग भी दुनिया के कोने-कोने में रह रहे हैं। कई देशों में तो भारतीय बहुत बड़ी तादाद में मौजूद हैं। यही कारण है कि कई देश बिल्कुल हिंदुस्तान की तरह नजर आते हैं। ऐसे देश छोटे भारत भी कहे जाएं तो यह गलत नहीं होगा। फिजी नाम का भी एक ऐसा ही देश है।
यह प्रशांत महासागर में स्थित है। यह एक द्वीपीय देश है। दक्षिण प्रशांत महासागर के मेलानेशिया में यह स्थित है। यहां लोग हिंदी बोलते हैं। यहां की राजभाषा में भी इसे शामिल किया गया है। अवधी के तौर पर यहां इसका विकास हुआ था। इस देश की आबादी में 37 फ़ीसदी हिस्सा भारतीयों का है। आज से नहीं सैकड़ों वर्षो से वे यहां रह रहे हैं।
यहां की हिंदी को फिजी हिंदी के नाम से जानते हैं। फिजियन हिंदी और फिजियन हिंदुस्तानी भी इसे कहते हैं। देवनागरी लिपि में भी और रोमन लिपि में भी लोग फिजी हिंदी को लिखते हैं। भारतीयों की पहली पीढ़ी ने इसे यहां शुरू किया था। पहले यह बोलचाल में इस्तेमाल में आती थी। फिजी हिंदी की भी व्याकरण और शब्दावली बनी हुई है।
फिजी भी अंग्रेजों का उपनिवेश रहा था। शुरू में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार से अंग्रेज श्रमिकों को फिजी ले गए थे। ये लोग यहां हिंदी ही बोलते थे। इनमें से बहुत से लोग भोजपुरी बोलते थे। वहीं बहुत से लोग अवधी बोलते थे। ऐसे में भाषाएं मिश्रित हो गईं। इस तरह से फिजी में एक नई भाषा ने जन्म ले लिया। यह फिजी हिंदी के नाम से जानी जाने लगी।
फिजी वास्तव में एक बहुत ही खूबसूरत देश है। प्रशांत महासागर के सबसे विकसित देशों में से यह एक है। यहां की समृद्धि देखते ही बनती है। खनिजों की यहां भरमार है। जलीय स्रोत में भी यह बहुत ही अमीर है। वन भी यहां प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। पर्यटन के हिसाब से भी यह दुनियाभर में मशहूर है।
विदेशी मुद्रा का यह बहुत बड़ा स्रोत है। बड़े पैमाने पर फिजी चीनी का निर्यात करता है। फिजी द्वीप समूह अपनी खूबसूरती के लिए जाने जाते हैं। दुनियाभर से पर्यटक यहां पहुंचते हैं। पर्यटन से भी फिजी को बड़ी आमदनी होती है।
अंग्रेजों ने यहां भी अपना शासन चलाया था। वर्ष 1874 में ब्रिटेन ने इस पर कब्जा जमा लिया था। इस तरह से यह ब्रिटेन का उपनिवेश बन गया था। अंग्रेज यहां हजारों की तादाद में भारतीय मजदूरों को लेकर आए थे। गन्ने के खेतों में वे ठेके पर काम करते थे। यह ठेका 5 वर्षों का होता था।
उनके सामने एक शर्त भी अंग्रेजों ने रखी थी। पांच साल पूरा होने के बाद वे चाहें तो जा सकते थे। यह इतना आसान नहीं था। कहीं जाने के लिए उन्हें इसका खर्च खुद वहन करना होता था। एक शर्त और भी थी। पांच साल यदि वे और काम कर लेते तो ब्रिटिश जहाज उन्हें भारत पहुंचाते थे।
इस तरह से अधिकतर मजदूर यहां लंबे अरसे तक काम करना चाहते थे। बहुत से मजदूर यहीं रह गए। कभी भारत वे वापस आ ही नहीं पाए। फिजी में ही वे हमेशा के लिए बस गए। वैसे, बहुत से भारतीय खुद यहां जाकर बसे थे। ऐसा 1920 और 1930 के दशकों में हुआ था।
आधिकारिक तौर पर फिजी को फिजी द्वीप समूह गणराज्य के नाम से जानते हैं। इसकी दूरी न्यूजीलैंड के नॉर्थ आईलैंड से लगभग 2000 किलोमीटर की है। यह इसके उत्तर पूर्व में बसा हुआ है। डच और अंग्रेजी खोजकर्ताओं ने इसे 17वीं और 18वीं शताब्दी के दौरान खोजा था। फिजी 1970 तक एक अंग्रेजी उपनिवेश हुआ करता था। फ़िजी डॉलर यहां की मुद्रा है।
द्वीप समूहों की संख्या यहां 322 है। वैसे, इनमें से 106 द्वीपों पर ही आबादी बसती है। यहां दो द्वीप बड़े ही प्रमुख हैं। इनके नाम वनुवा लेवु और विती लेवु हैं। इन द्वीपों पर पूरे देश की 87 प्रतिशत आबादी बसती है। ज्वालामुखी विस्फोटों से फिजी के अधिकांश द्वीप बने थे। ऐसा लगभग 15 करोड़ साल पहले हुआ था।
नादी शहर में यहां का सबसे बड़ा मंदिर बना हुआ है। श्री शिव सुब्रमण्य हिंदू मंदिर के नाम से यह प्रख्यात है। भारत की तरह यहां रामनवमी मनाई जाती है। लोग यहां होली का त्योहार भी मनाते हैं। दीवाली भी लोग यहां मनाते हैं। बताया जाता है कि प्राचीन काल में यहां के निवासी आदमखोर थे। हालांकि, वे प्राकृतिक तौर से मरने वालों को नहीं खाते थे। केवल युद्ध में मरने वालों का वे मांस खाते थे।