वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने देश का आर्थिक बजट पेश कर दिया है। ये बजट हर किसी के लिए काफी जरूरी था। क्योंकि कोरोना महामारी के बाद ये पहला बजट था। बजट 2021 -2022 को लेकर आम जनता को बहुत सी उम्मीदें थी, लोगों को लग रहा था कि उन्हें सरकार बजट में कुछ राहत देगी।
पहले से ही लोगों की जिंदगी कोरोना ने बर्बाद कर दी है, इसके बाद लोग सरकार से आस लगा रहे थे। लेकिन लोगों को सरकार ने फिर से निराश कर दिया है। किसी भी तरह का फायदा लोगों को वित्त मंत्री की तरफ से नहीं दिया गया है। ऐसा माना जा रहा था कि आर्थिक मंदी में लोगों के हाथ में पैसा देने के लिए उसके प्रत्यक्ष कर की दर में कटौती की जाएगी। लेकिन इसपर कुछ भी नहीं हुआ है, बल्कि सरकार ने अपने भाषण में सरकारी संपत्तियों को लगातर बेचने पर ही जोर दिया है।
वित्त मंत्री ने ऐलान किया है कि बीपीसीएल का विनिवेश अगले वित्त वर्ष में होना है। वित्त मंत्री ने बीमा क्षेत्र में एफडीआई लिमिट को भी 49 फीसदी से बढ़ाकर 74 फीसदी करने का ऐलान कर दिया है। इंश्योरेंस एक्ट 1938 में संशोधन किया जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2022 के लिए 1.75 लाख करोड़ विनिवेश का लक्ष्य रखा है। वित्त मंत्री ने 2021-22 के बजट भाषण में कहा है कि गेल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) और एचपीसीएल की 20 पाइपलाइन को बाजार पर चढ़ाया जाएगा। यानी की आम भाषा में बोले तो सरकार ने इनको बेचने का प्लान बना लिया है, जबकि वहीं राजमार्ग को भी निजी हाथो में दिये जाने की बात की है।
वहीं अगर बात किसानों और किसानी की करें तो इसके लिए भी सरकार की तरफ से कोई राहत नहीं दी गई है। बल्कि कर्ज की सीमा को और ज्यादा बढ़ाने की कोशिश की गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 में एग्री क्रेडिट के लक्ष्य को बढ़ाकर 16.5 लाख करोड़ रुपये करने की घोषणा की है। लेकिन देशभर के किसान लगातर पूर्ण कर्ज माफी की मांग को लेकर कई बार अपनी आवाज उठा चुके हैं, लेकिन इस मुद्दे पर सरकार किसी तरह की बात करने को तैयार नहीं है।
देशभर में किसान अपनी फसल के उचित दाम के लिए हर थोड़े थोड़े वक्त में प्रदर्शन कर रहे हैं और ऐसे में बजट के दौरान वित्त मंत्री का कहना है कि सरकार किसानों के हितों के लिए पूरी तरह कार्यरत है। सभी कमोडिटी के लिए किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दी गई है। लेकिन क्या ये सही है क्योंकि किसानों का कहना है कि उसकी फसल की उसे लागत भी पूरी तरह से नहीं मिल पा रही है। दूसरी तरफ किसानी की लगात में लगातर बढ़ोतरी होती जा रही है। बीज, खाद और डीजल से लेकर सबके दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं और उसकी तुलना में उसे उसकी फसल का दाम नहीं मिल रहा है।
मजदूरों के लिए भी इस बजट में कोई पुख्ता आश्वसन नहीं दिया गया है बल्कि जिसका वो विरोध कर रहे हैं उसका ही गुणगान सरकारी भाषण में किया गया है। लेबर कोड का मजदूर लगातर विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार ने इसकी जमकर तारीफ की है। मजदूर संगठन लगातर सरकारी पीएसयू के विनिवेश का भी विरोध कर रहे हैं लेकिन सरकार इन्हें पूरी तरह से बेचने की तैयारी में है।
साफ जाहिर हो रहा है कि इस बजट से जितनी उम्मीदें जनता को थी, वो सब खोखली हो गई है। बजट पूरी तरह से फ्लॉप शो ही रहा है और कोरोना महामारी के दौर में जिस तरह का बजट जनता को चाहिए था, उसके आधार पर ये खास फायदा नहीं देगा।