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पहली बार अयोध्या राम जन्मभूमि मंदिर का ताला ऐसे खुला था

1 फरवरी, 1986 को पहली बार यहां 37 वर्षों से लटके ताले को खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा दिया गया था।
Information Anupam Kumari 3 November 2019

अयोध्या में राम जन्मभूमि और बाबरी मस्जिद मामले में बहस और सुनवाई अब पूरी हो चुकी है। कुछ बचा है तो वह है फैसला, जिस पर केवल देश ही नहीं, बल्कि दुनियाभर की निगाहें टिकी हैं, क्योंकि इस फैसले से आने वाले समय में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीतिक से लेकर धार्मिक, आर्थिक और नीतिगत निर्णय तक प्रभावित हो सकते हैं। अब जब राम जन्मभूमि बाबरी मजिस्द के विवादित स्थल का मामला इस कदर चर्चा में है कि जहां देखो वहीं लोग इसकी चर्चा कर रहे हैं, तो इससे संबंधित कुछ बातें भी जाननी जरूरी हो जाती हैं, जिनमें से एक यह भी है कि राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद के विवादित स्थल का ताला पहली बार कब खुला था ?

दरअसल 1 फरवरी, 1986 को पहली बार यहां 37 वर्षों से लटके ताले को खोलने का आदेश फैजाबाद के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा दिया गया था। इतने वर्षों तक यहां पूजा-अर्चना नहीं हो पा रही थी, मगर न्यायालय के इस आदेश के आने के बाद यहां फिर से भक्तों को पूजा-अर्चना करने का मौका मिल गया था, क्योंकि न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि श्रद्धालु यहां पूजा कर सकते हैं।

मुकदमे की सुनवाई 1 फरवरी, 1986 को पूरी होने के बाद इसी दिन शाम सवा चार बजे न्यायाधीश ने अपना फैसला भी सुना दिया और फैसला सुनाये जाने के सिर्फ 40 मिनट के बाद ही फैजाबाद के सिटी मजिस्ट्रेट ने यहां पहुंचकर ताले को खोल दिया।

फैजाबाद के मुंसिफ (सदर) हरिशंकर द्विवेदी की अदालत मेें अयोध्या के एक अधिवक्ता उमेश चंद्र पांडेय की ओर से 25 जनवरी, 1986 को एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें यह कहते हुए राम जन्मभूमि का ताला खोलने की मांग की गई थी कि विवादित ढांचा राम जन्मभूमि मंदिर है और यहां पूजा-अर्चना करने का उनके पास बुनियादी अधिकार है। उस वक्त न्यायालय ने इसलिए आदेश पारित नहीं किया, क्योंकि उच्च न्यायालय में वाद तब विचाराधीन था। अदालत ने कहा कि बिना मुख्यवाद के रिकाॅर्ड के उनके द्वारा आदेश पारित किया जाना संभव नहीं है।

ऐसे में उमेश चंद्र पांडेय ने बिना देरी किये यह दलील देते हुए कि पूर्व में मंदिर में ताला लगाने का आदेश जिला प्रशासन द्वारा दिया गया था न कि न्यायालय द्वारा, जिला एवं सत्र न्यायाधीश फैजाबाद की अदालत में उन्होंने 31 जनवरी, 1986 को इसके खिलाफ अपील कर दी। उनकी इस अपील को 1 फरवरी, 1986 को स्वीकारते हुए जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्ण मोहन पांडेय की ओर से जब तत्कालीन जिलाधिकारी इंदु कुमार पांडेय के साथ एसएसपी कर्मवीर सिंह को न्यायालय में तलब किया गया तो इन दोनों की ओर से न्यायालय को यही बताया गया कि यदि ताला खोला जाता है, तो इससे कानून व्यवस्था की स्थिति के बिगड़ने का कोई अंदेशा नहीं है। हालांकि, न्यायाधीश की ओर से इस दौरान बाबरी मस्जिद के मुख्य मुद्दई मोहम्मद हाशिम एवं एक अन्य पक्षकार के तर्कों पर भी गौर फरमाया गया।

जब राज्य सरकार की ओर से जिला एवं सत्र न्यायाधीश के न्यायालय में यह कहते हुए राम जन्मभूमि के गेट पर लगे ताले को खोलने की अधिवक्ता उमेश चंद्र पांडेय की याचिका का विरोध किया गया कि इससे कानून-व्यवस्था के हालात बिगड़ सकते हैं, तो इस पर न्यायाधीश की ओर से यह कहते हुए दलील को ठुकरा दिया गया कि किसी भी अदालत ने पूर्व में राम जन्मभूमि पर ताला लगाने का आदेश जारी नहीं किया था।

इस तरह से न्यायाधीश की ओर से न केवल ताले को खोलने का आदेश दिया गया, बल्कि अपने आदेश में उनकी ओर से यह भी साफ कर दिया गया कि न तो राज्य सरकार की ओर से किसी को इस मामले में अपील दायर करने से रोका जा सकेगा और न ही राम जन्मभूमि में हिंदुओं द्वारा पूजा-अर्चना व दर्शन आदि में किसी तरह की बाधा डाली जायेगी। इस पर राज्य सरकार की ओर से प्रतिबंध लगाये जाने पर भी अदालत की ओर से रोक लगा दी गई थी। इस तरह से यह पहला ऐसा मौका था, जब राम जन्मभूमि का ताला खोला गया था और इसके बाद से ही इसे लेकर सभी पक्षकारों की सक्रियता भी बढ़ गई थी।

अब तीन दशक बीत जाने के बाद देश के सर्वोच्च न्यायालय में फैसले की घड़ी निकट आ गई है। हर पक्ष अपने हक में फैसले को लेकर आशान्वित है, मगर फैसला किसके पक्ष में आने वाला है, इसके लिए अब भी थोड़ा इंतजार तो करना ही पड़ेगा।

Anupam Kumari

Anupam Kumari

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