साल 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी। यह कहानी उससे भी पहले की है। भारतीय एयरप्लेन कैरियर INS Vikrant को ध्वस्त करने की पाकिस्तानी नौसेना ने साजिश रची थी।
पाकिस्तान के पास तब सबसे आधुनिक पनडुब्बी गाजी मौजूद थी। उसने इसके लिए इसे ही भेजा था। बंगाल की खाड़ी पर पाकिस्तान कब्जा करना चाहता था। ऐसे में आईएनएस विक्रांत को ध्वस्त करना उसके लिए बहुत जरूरी था।
यूएसएस डिआबलो (USS Diablo) था गाजी पनडुब्बी का असली नाम। अमेरिका से पाकिस्तान ने इसे खरीदा था। पाकिस्तानी नौसेना ने इसे 1964 में अपनाया था। यह रडार में आए बिना 11 हजार नॉटिकल माइल्स तक यात्रा कर सकता थी। यही नहीं पानी के अंदर लगभग एक माह तक यह रह सकती थी।
कराची से रडार से छिपते हुए गाजी (Ghazi) पनडुब्बी बंगाल की खाड़ी में पहुंचा दी गई। भारतीय नौसेना को इसका पता भी नहीं चला। पाकिस्तानी हेडक्वार्टर को इसी दौरान एक खास तरह के लुब्रिकेशन तेल से जुड़ा हुआ एक संदेश पाकिस्तानी नौसेना ने भेजा।
इस संदेश को हालांकि भारतीय नौसेना ने पकड़ लिया था। भारतीय नौसेना समझ गई थी कि गाजी पनडुब्बी उसकी सीमा के अंदर है। गाजी पनडुब्बी के अलावा और कोई भी पनडुब्बी रडार से बचते हुए भारतीय सीमा में नहीं आ सकती थी।
वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी टीम को जमा किया। गाजी से कैसे निपटा जाए, इसके लिए उन्होंने योजना बनाई। गाजी में मौजूद पाकिस्तानी नौसैनिकों को अब गुमराह करना था। ऐसे में भारतीय नौसेना ने रेडियो पर झूठे संदेश भेजे।
इसमें कहा गया कि वाईजैग यानी कि विशाखापत्तनम के इलाके के आईएनएस विक्रांत नजदीक है। इसमें भारतीय नौसेना सफल भी रही। पाकिस्तानी नौसैनिक गुमराह हो गए। गाजी को उन्होंने वाईजैग की और बढ़ाना शुरू कर दिया।
गाजी बहुत ही तेजी से विशाखापत्तनम की ओर बढ़ रही थी। आईएनएस विक्रांत को भारतीय नौसेना अंडमान के नजदीक लेकर चली गई। वहां एक्स-रे तट पर एक गुप्त स्थान पर उसे खड़ा कर दिया गया। भारतीय नौसेना की योजना का पहला चरण कामयाब हो गया था।
भारतीय नौसेना इससे खुश थी। उधर गाजी पनडुब्बी तेजी से विशाखापत्तनम की ओर बढ़ रही थी। आईएनएस विक्रांत पर कब्जा जमाने के लिए सागर के तल में पाकिस्तानी नौसेना माइंस का जाल बिछा रही थी।
आईएनएस विक्रांत अब सुरक्षित जगह पर था। इधर भारतीय नौसेना ने दूसरे चरण की योजना पर काम करना शुरू कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध में आईएनएस राजपूत (INS Rajput) नामक जहाज का इस्तेमाल हुआ था। गाजी का सामना करने के लिए इसी को उतार दिया गया। पूरी तरीके से यह जहाज सेवा से बाहर था।
इसी जहाज से लगातार सिग्नल भेजे गए। इससे गाजी को लग रहा था कि वह आईएनएस विक्रांत की ओर ही बढ़ रही है। आईएनएस राजपूत विक्रांत बनकर उसी जगह पर मौजूद था। इसी जगह पर गाजी पनडुब्बी पहुंचने वाली थी।
सिग्नल लगातार राजपूत से भेजे जा रहे थे। गाजी इसका अनुसरण कर रही थी। आखिरकार वह वहां पर पहुंच ही गई। कैप्टन इंदर सिंह आईएनएस राजपूत में कमान संभाले हुए थे। उन्होंने सभी नेवीगेशन सिस्टम को बंद करने को कहा। इसके बाद ऐसा ही किया गया। अब आमने-सामने की लड़ाई होने जा रही थी।
यह 3 से 4 दिसंबर की आधी रात थी। एक सिग्नल मिल रहा था। यह सुनार पर एक पनडुब्बी के होने का इशारा कर रहा था। कैप्टन इंदर आश्वस्त थे कि यह गाजी पनडुब्बी ही है। ऐसे में उन्होंने तत्काल एक मिसाइल फायर करने का आदेश दे दिया था।
आईएनएस राजपूत से दो मिसाइलें दागी गईं। इसके तुरंत बाद एक बड़े धमाके का एहसास राजपूत में उपस्थित नौसैनिकों को हुआ। उनकी पनडुब्बी बुरी तरीके से हिल गई थी। कुछ समय के बाद मालूम हुआ कि राजपूत में यह धमाका नहीं हुआ था। क्या हुआ उस अंधेरे में, कोई जान नहीं सका।
अगली सुबह पनडुब्बी के कुछ टूटे हुए मलबे तैरते दिखे थे। तेल भी पानी की सतह पर दिखा था। मछुआरों ने इसे देखा था और भारतीय नौसेना को बताया था। यूएसएस डिआबलो यानी कि गाजी के कुछ हिस्से भी मलबे में थे। ऐसे में माना गया कि गाजी इसमें मौजूद पाकिस्तानी नौसैनिकों के साथ डूब गई थी।
कहा जाता है कि भारतीय मिसाइलें सही जगह पर जाकर लगी थीं। गाजी के असली स्टोर से यह टकराई थी। इससे गाजी में विस्फोट हो गया था और वह डूब गई थी।
गाजी जैसे भी डूबी, भारतीय सैनिकों ने बहादुरी की इबारत लिख दी। सेवा से बाहर हो चुके एक जहाज से उन्होंने गाजी को मार गिराया। वह गाजी जो कि नेवीगेशन सिस्टम के अत्याधुनिक तकनीकों से लैस थी।