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भारत की आजादी के बाद भी गुलाम था गोवा, जानिए कैसे मिली आजादी ?

भारत को अंग्रेजों की दासता से 15 अगस्त, 1947 को आजादी जरूर मिल गई थी, मगर जो गोवा आज एक स्वतंत्र राज्य है, वहां उस वक्त भी पुर्तगाली जमे हुए थे।
Information Anupam Kumari 16 February 2020
भारत की आजादी के बाद भी गुलाम था गोवा, जानिए कैसे मिली आजादी ?

भारत को अंग्रेजों की दासता से 15 अगस्त, 1947 को आजादी जरूर मिल गई थी, मगर जो गोवा आज एक स्वतंत्र राज्य है, वहां उस वक्त भी पुर्तगाली जमे हुए थे। आजादी मिलने 14 वर्षों के बाद गोवा को 1961 में 19 दिसंबर को पुर्तगालियों के चंगुल से आजाद कराया जा सका था। भारत की ओर से इसके लिए सैन्य कार्रवाई करनी पड़ी थी। तब जाकर गोवा के साथ दमन और दीव को पुर्तगालियों की गुलामी से मुक्त कराया जा सका था। गोवा, जो कि वर्तमान में भारत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और पर्यटन के हिसाब से जो दुनियाभर में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है, उसी गोवा को आजाद कराना भारत के लिए इतना भी आसान नहीं रहा था।

ऐसे शुरू हुआ पुर्तगालियों का शासन

सबसे पहले 1498 ईस्वी में पुर्तगाल से वास्कोडिगामा नामक एक यात्री भारत पहुंचा था। इसके बाद भारत में पहली बार जिन यूरोपीय ने अपनी कंपनी शुरू की, वे पुर्तगाली ही थे। फ्रांसिसको डी अल्मेडा उनका पहला गवर्नर था। बाद में गर्वनर करने का मौका अल्फांसो डी अल्बुकर्क को मिला। उसने पुर्तगालियों की ताकत का विस्तार करने का निर्णय ले लिया और अपने इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बीजापुर से उसने 1510 ईस्वी में गोवा को जीत लिया। इस तरह से गोवा पुर्तगालियों के अधीन चला गया और पुर्तगालियों के सांस्कृतिक केंद्र के रूप में भी यह कालांतर में उभरा। अब सवाल उठता है कि आखिर भारत में पुर्तगालियों बसे क्यों? इसकी सबसे प्रमुख वजह यह थी कि अरब देशों का प्रभाव जो भारत के व्यापार पर उस वक्त बना हुआ था, उसे पुर्तगाली कम करना चाह रहे थे। यही नहीं, ईसाई धर्म का भी उन्हें यहां प्रसार करना था। इस तरह से पुर्तगाली सबसे पहले भारत में आये और सबसे बाद में भी वही यहां से गये।

अंग्रेजों का दोहरा रवैया

प्राचीनकाल से ही गोवा की अहमियत रही है। चाहे सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक स्थिति की बात हो या फिर दर्शन और कला की, हर क्षेत्र में यह आगे रहा है। व्यापारी और यात्री तो यहां मध्यकाल से ही पहुंच रहे थे। कई राजवंशों ने भी गोवा में शासन किया था। करीब 400 वर्षों तक पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना कब्जा जमाये रखा था। जब भारत आजाद हो रहा था तो जवाहर लाल नेहरू ने गोवा को भारत को सौंपे जाने की मांग अंग्रेजों के समक्ष रखी थी, मगर उस वक्त पुर्तगाल की ओर से गोवा पर अपना दावा जता दिया गया था। अंग्रेजों ने भी इस दौरान दोहरा रवैया अपनाया। भारत को आजादी जरूर दी, लेकिन पुर्तगाल के दबाव में उसने पुर्तगालियों का ही पक्ष लिया और गोवा को उनके हवाले कर दिया। पुर्तगालियों को गोवा को सौंपे जाने के पीछे अंग्रेजों का तर्क यह था कि भारत गणराज्य तब अस्तित्व में नहीं था, जब पुर्तगालियों ने इस पर अपना अधिकार जमाया था।

राम मनोहर लोहिया का योगदान

जिस तरह से पराधीन भारत में देश की आजादी के स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था, उसी तरह से 1928 में गोवा की आजादी के लिए भी अभियान शुरू हो गया था। मुंबई में 1928 में गोवा कांग्रेस समिति का भी गठन राष्ट्रवादियों द्वारा इस दौरान किया गया था और डॉ. टी.बी. कुन्हा इसके अध्यक्ष बने थे। दरअसल गोवा में जो आजादी पाने के लिए अभियान की शुरुआत हुई और वहां जो राष्ट्रवाद का उदय हुआ, उसके जनक के तौर पर डॉ. टी.बी. कुन्हा का ही नाम लिया जाता है। डॉ.राम मनोहर लोहिया जो एक प्रमुख समाजवादी नेता थे, वे जब गोवा पहुंचे थे, तो गोवा में चल रहे आंदोलन को और ताकत मिल गई थी। नागरिक अधिकारों का जो हनन गोवा में हो रहा था, उसके खिलाफ लोहिया ने आवाज बुलंद करनी शुरू कर दी। गोवा की पुर्तगाली सरकार को अपने पैरों तले जमीन खिसकने का एहसास होने लगा तो उन्होंने दमनकारी प्रवृत्ति अपनाई। लोहिया गिरफ्तार भी कर लिये गये।

भारत सरकार का वो आदेश

बार-बार भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ रक्षामंत्री कृष्ण मेनन ने भी पुर्तगालियों से गोवा पर अपना दावा छोड़ने का अनुरोध किया, लेकिन पुर्तगाली पीछे हटने को तैयार ही नहीं हो रहे थे। गोवा के साथ दमन और दीव पर भी पुर्तगालियों ने अपना कब्जा जमा रखा था। ऐसे में भारत ने जब देखा कि पुर्तगालियों के सामने आग्रह करना भैंस के आगे बीन बजाने जैसा साबित हो रहा है तो आखिरकार भारतीय सेना के तीनों अंगों को युद्ध के लिए 1961 में तैयार होने का आदेश भारत सरकार ने दे दयिा। फिर क्या, मेजर जनरल के.पी. कैंडेथ को ने 17 इन्फैंट्री डिवीजन और 50 पैरा ब्रिगेड का प्रभार संभाल लिया। अब भारतीय सेना एकदम तैयार थी, फिर भी पुर्तगाली पीछे नहीं हट रहे थे। छह हंटर स्क्वॉड्रन और चार कैनबरा स्क्वाड्रन उस दौरान भारतीय वायुसेना के पास थे।

चखा आजादी का स्वाद

आखिरकार गोवा मुक्ति अभियान की शुरुआत 1961 में दो दिसंबर को शुरू कर दिया गया। एयर वाइस मार्शल एरलिक पिंटो को हवाई कार्रवाई की जिम्मेवारी इस दौरान दी गई थी। पुर्तगालियो के ठिकानों पर भारतीय वायुसेना ने 8 और 9 दिसंबर को बम बरसाये। भारतीय थल सेना भी धावा बोल दिया। इससे पुर्तगाली सहम गये। इतने भयभीत हो गये कि आखिरकार 19 दिसंबर, 1961 को पुर्तगाली गवर्नर मैन्यू वासलो डे सिल्वा को भारत के सामने घुटने टेकते हुए समर्पण समझौते पर हस्ताक्षर करना ही पड़ा। इस तरह से केवल गोवा ही नहीं, बल्कि दम और दीव भी आजाद हो गये और यहां से 451 साल पुराना विदेशी शासन हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो गया। इसके बाद गोवा केंद्रशासित प्रदेश के तौर पर था, मगर भारत सरकार ने आखिरकार 1987 में 30 मई को इसे पूर्ण राज्य का भी दर्जा प्रदान कर दिया। इस तरह से गोवा भारत के 25वें राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

Anupam Kumari

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